वर्ष - 2, अठारहाँ सप्ताह, शनिवार

📒 पहला पाठ : हबक्कूक 1:12-2:4

12) प्रभु! क्या तू प्राचीन काल से मेरा परमपावन अमत्र्य ईश्वर नहीं है? प्रभु! तूने अपनी दण्डाज्ञा को पूरा करने के लिए उस खल्दैयी जाति को नियुक्त किया है। हमारी चटटान! तूने हमें दण्डित करने के लिए उसे खडा किया है।

13) बुराई तेरी पवित्र आँखों में गडती हैं, अन्याय तुझ से नहीं देखा जाता। तो, तू दुष्टों का विश्वासघात क्यों सहता है? जब वे धमियों को निगल जाते हैं, तो तू यह देख कर क्यों चुप रहता है?

14) तू मनुष्यों के साथ ऐसा व्यवहार करता है, मानों वे समुद्र की मछलियाँ हों अथवा रेंगेने वाले जीव-जन्तु, जिनका कोई स्वामी नहीं।

15) खल्दैयी उन्हें कँटिया से निकलता, जाल से खींच लेता और अपने टोकरे में जमा करता है।

16) तब वह उल्लसित हो कर आनन्द मनाता है, अपने जाल की पूजा करता और अपने टोकरे को धूप चढाता है; क्योंकि इनके सहारे वह श्किार फँसाता और अपनी जीविका चलाता है।

17) क्या वह सदा अपनी तलवार खींच कर निर्दयतापूर्वक राष्ट्रों का वध करता रहेगा?

2:1) मैं अपनी चैकी पर खड़ा हो जाऊँगा, मैं चारदीवारी पर चढ कर प्रतीक्षा करता रहूँगा कि प्रभु मुझ से क्या कहेगा और मेरी शिकायतों का क्या उत्तर देगा।

2) प्रभु ने उत्तर में मुझ से यह कहा, "जो दृश्य तुम देखने वाले हो, उसे स्पष्ट रूप से पाटियों पर लिखो, जिससे सब उसे सुगमता से पढ सकें;

3) क्योंकि वह भविय का दृश्य है, जो निश्चित समय पर पूरा होने वाला है। यदि उस में देर हो जाये, तो उसकी प्रतीक्षा करते रहो, क्योंकि वह अवश्य ही पूरा हो जायेगा। जो दृष्ट है, वह नष्ट हो जायेगा।

4) जो धर्मी है, वह अपनी धार्मिकता के कारण सुरक्षित रहेगा।

📙 सुसमाचार :मत्ती 17:14-20

14) जब वे जनसमूह के पास पहुँचे, तो एक मनुष्य आया और ईसा के सामने घुटने टेक कर बोला,

15) प्रभु! मेरे बेटे पर दया कीजिए। उसे मिरगी का दौरा पड़ा करता है। उसकी हालत बहुत ख़राब है और वह अक्सर आग या पानी में गिर जाता है।

16) मैं उसे आपके शिष्यों के पास लाया, किन्तु वे उसे चंगा नहीं कर सके।’’

17) ईसा ने कहा, ’’अविश्वासी और दुष्ट पीढ़ी! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हें सहता रहूँ? उस लड़के को यहाँ ले आओ।’’

18) ईसा ने अपदूत को डांटा और वह लड़के से निकल गया। वह लड़का उसी घड़ी चंगा हो गया।

19) बाद में शिष्यों ने एकान्त में ईसा के पास आ कर पूछा, ’’हम लोग उसे क्यों नहीं निकाल सके?

20) ईसा ने उन से कहा, ’’अपने विश्वास की कमी के कारण। मैं तुम से यह कहता हूँ- यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो और तुम इस पहाड़ से यह कहो, ’यहाँ से वहाँ तक हट जा, तो यह हट जायेगा; और तुम्हारे लिए कुछ भी असम्भव नहीं होगा।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में हम एक अपदूतग्रस्त लड़के को, जो खुद को कभी में झोंक देता था तो कभी पानी में डूबना चाहता था, उसको चंगा ना कर पाने की शिष्यों की असमर्थता को देखते हैं। प्रभु येसु उनकी इस असमर्थता को उन्हें समझाते हैं और उसका कारण बताते हैं। उसका कारण था- उनमें विश्वास की कमी। विश्वास की कई परिभाषाएँ और मायने हो सकते हैं । ईश शास्त्र में विश्वास की परिभाषा है कि ‘यह ईश्वर के प्रकटिकरण के प्रति हमारा प्रत्युत्तर है” कुछ लोगों के अनुसार विश्वास का मतलब ईश्वर पर भरोसा रखने से है, और कुछ लोगों के अनुसार ईश्वर के साथ हमारा सम्बन्ध ही हमारा विश्वास कहलाता है। विश्वास के चाहे जो भी मायने हों, लेकिन एक बात साफ़ है कि विश्वास ‘व्यक्तिगत’ है, अर्थात् अलग-अलग लोगों का विश्वास अलग-अलग है।

आइए हम आज के सुसमाचार की घटना को गहराई से समझें। वह लड़का बड़ी हिंसक बीमारी से पीड़ित था। उसको नियंत्रित करना मुश्किल था, वह आग में कूदकर और पानी में डूबकर अपने आप को नष्ट करना चाहता था। ऐसा काफ़ी लम्बे समय से उसके साथ चल रहा था और उस लड़के के परिवार वालों के लिए यह बहुत ही दुःखद परिस्थिति थी। यह अन्य दूसरी समान्य बीमारियों जैसे कोढ़, बुख़ार, और अपंगता आदि बीमारियों से अलग थी। यह शिष्यों के लिए कठिन परीक्षा थी। ऐसी विकट परिस्थिति को देखकर शिष्य यह भूल गए कि वे प्रभु येसु के शिष्य थे, जो सारी सृष्टि का स्वामी है, उसने उन्हें हर प्रकार की बीमारी को चंगा करने का सामर्थ्य दिया है, फिर भी उन्हें खुद पर पर्याप्त भरोसा नहीं था। अपने जीवन में हम बड़ी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करेंगे और हो सकता है ऐसी परिस्थितियों का भी जो हमारे नियंत्रण से भी बाहर हों, लेकिन प्रभु येसु हमें याद दिलाते हैं कि हमें ईश्वर में विश्वास करना है, वही सब कुछ को वश में कर सकता है। आमेन।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

In the gospel today we see the inability of the disciples to heal an epileptic boy, who threw himself in fire, and water, and was terribly troubled. Jesus answers about their inability do the miracle, and that reason was the lack of their faith. Faith has got many definitions and understandings. Theological definition of faith would say, ‘faith is our response to God’s revelation,’ some would say it is trusting God, and some others would say it is our relationship with God. Whatever may be the understanding, but one thing is clear that faith is something ‘personal.’

Let us evaluate today’s incident. The boy was suffering with very violent sickness. He was difficult to control, he was ready to destroy himself by throwing himself into fire or trying to get drowned in the water. This was going on for long time, and it was terrible. It was different from routine sicknesses like fever, or leprosy or handicap. It was a test for the disciples. Seeing this terrible situation, the disciples forgot that they were the disciples of Jesus, the master of everything, they were given the power to heal anything, yet they had no sufficient confidence. We may face very challenging situations in our lives, and very often impossible ones, but Jesus reminds us that we need to have faith in God, He can control and take care of everything. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!