वर्ष - 2, उन्नीसवाँ सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 2:8-3:4

8) “मानवपुत्र! मैं जो कहने जा रहा हूँ, उसे सुनो। इस विद्रोही प्रजा की तरह विद्रोह मत करो। अपना मुँह खोलो और जो दे रहा हूँ, उसे खा लो।“

9) मैंने आँखें ऊपर उठा कर देखा कि एक हाथ मेरी ओर बढ़ रहा है और उस में एक लपेटी हुई पुस्तक थी।

10) उसने उसे खोल दिया। काग़ज पर दोनों ओर लिखा हुआ था- उस पर विलाप, मातम और शोक गीत अंकित थे।

1) उसने मुझ से कहा, “मानवपुत्र! जो अपने-सामने हैं, उसे खा लो। यह पुस्तक खा जाओ और तब इस्राएल की प्रजा को सम्बोधित करो।“

2) मैंने अपना मुँह खोला और उसने मुझे यह पुस्तक खिलायी।

3) उसने मुझ से कहा “मानवपुत्र! मैं जो पुस्तक दे रहा हूँ, उसे खाओ और उस से अपना पेट भर लो“। मैंने उसे खा लिया; मेरे मुँह में उसका स्वाद मधु-जैसा मीठा था।

4) उसने मुझ से कहा, “मानवपुत्र! इस्राएल की प्रजा के पास जा कर उसे मेरे शब्द सुनाओ।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 18:1-5,10,12-14

1) उस समय शिष्य ईसा के पास आ कर बोले, ’’स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा कौन है?’’

2) ईसा ने एक बालक को बुलाया और उसे उनके बीच खड़ा कर

3) कहा, ’’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- यदि तुम फिर छोटे बालकों-जैसे नहीं बन जाओगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करोगे।

4) इसलिए जो अपने को इस बालक-जैसा छोटा समझता है, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा है।

5) और जो मेरे नाम पर ऐसे बालक का स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है।

10) ’’सावधान रहो, उन नन्हों में एक को भी तुच्छ न समझो। मैं तुम से कहता हूँ- उनके दूत स्वर्ग में निरन्तर मेरे स्वर्गिक पिता के दर्शन करते हैं।

12) तुम्हारा क्या विचार है - यदि किसी के एक सौ भेड़ें हों और उन में से एक भी भटक जाये, तो क्या वह उन निन्यानबे भेड़ों को पहाड़ी पर छोड़ कर उस भटकी हुई को खोजने नहीं जायेगा?

13) और यदि वह उसे पाये, तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि उसे उन निन्यानबे की अपेक्षा, जो भटकी नहीं थी, उस भेड़ के कारण अधिक आनंद होगा।

14) इसी तरह मेरा स्वर्गिक पिता नहीं चाहता कि उन नन्हों में से एक भी खो जाये।

📚 मनन-चिंतन

इस दुनिया के किसी भी व्यक्ति ने स्वर्गराज्य को साक्षात नहीं देखा है। प्रभु येसु ही हैं जिन्होंने स्वर्गराज्य के आगमन की घोषणा की। उनके दिए हुए उदाहरणों और स्वर्गराज्य के बारे में उनकी शिक्षाओं से हम अपने मन मंग स्वर्ग और स्वर्गराज्य की कल्पना कर सकते हैं। प्रभु येसु ही स्वर्गराज्य के मूल्यों के बारे में बताते हैं, ईशराज्य की विशेषताओं के बारे में बताते हैं। स्वर्गराज्य के बहुत से मूल्य सांसारिक मूल्यों से विपरीत जान पड़ते हैं। संसार सिखाता है कि महान बनना है तो सबसे आगे आना है, लेकिन प्रभु येसु कहते हैं, “अगर हमें ईश्वर के राज्य के योग्य बनना है तो हमें सबसे पीछे होना है, जीवन बचाए रखना है, तो उसे पहले खोना है।

जो लोग अभी विलाप करते हैं वे स्वर्गराज्य में आनंद मनाएँगे, और जो अभी ख़ुशी मनाते हैं, वे शोक करेंगे।ईश्वर के राज्य के बारे में हम आज के सुसमाचार में एक उदाहरण देखते हैं जो एक बालक के समान बनने का उदाहरण है।सांसारिक अर्थ में बच्चे बड़ों के सामने कोई महत्व नहीं रखते, उनकी कोई नहीं सुनता, वे दूसरों पर निर्भर रहते हैं, वे बुद्धिमान या होशियार नहीं होते, ना शक्तिशाली और ना ही समझदार होते। लेकिन ईश्वर के राज्य के अधिकारी बनने के लिए ये विशेषताएँ होनी चाहिए: एक नन्हें बच्चे की भाँति अपने आप को ईश्वर के हाथों में सौंप देना, निर्बल बन जाना, और एक बालक की भाँति साधारण बनना। हे प्रभु हमें नन्हे बच्चों के समान बनाइए ताकि हम आपके राज्य के योग्य बन सकें। आमेन।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

No living human being has seen the heaven or kingdom of heaven. It is Jesus who proclaims the arrival of the kingdom of heaven. From the examples that he gives and glimpses that we get from his teachings, helps us to create a picture of heaven and kingdom of heaven. It is Jesus who explains about the values of the kingdom of heaven, about the characteristics of God’s kingdom. Many of these values seem just the opposite to the worldly values. The world would say being great is to be first, but Jesus says, “to be fit for the kingdom of heaven we need to be last, if you want to save your life, then loose it.

In the kingdom of heaven, those who are mourning will be happy and those who rejoice will be sad. One of such example we see in today’s gospel about being like child. In worldly sense, children are of no significance they have no say, they are dependent, not wise or intelligent, not even powerful, not mature etc. but to be worthy of God’s kingdom, these are the qualities that are required; surrendering to God like a child, becoming weak, and simple like child. Lord make us like children, so that we may become worthy of you. Amen

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!