वर्ष - 2, बीसवाँ सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 28:1-10

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,

2) “मानवपुत्र तीरुस के शासक से कहो, ’प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः तुमने अपने घमण्ड में कहाः “मैं ईश्वर हूँ। मैं समुद्र के बीच एक दिव्य सिंहासन पर विराजमान हूँ।“ किन्तु तुम ईश्वर नहीं, बल्कि निरे मनुय हो। फिर भी तुम अपने को ईश्वर के बराबर समझते हो।

3) हाँ, तुम दानेल से भी बुद्धिमान हो और कोई भी रहस्य तुम से छिपा हुआ नहीं है।

4) तुमने अपनी बुद्धिमानी और सूझ-बूझ से धन कमाया और अपने कोषों में चाँदी-सोना एकत्र किया है।

5) तुम अपने व्यापार-कौशल के कारण बड़े धनी बन गये हो और इस धन के साथ-साथ तुम्हारा घमण्ड भी बढ़ गया है।

6) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है: तुम अपने को ईश्वर के बराबर समझते हो,

7) इसलिए मैं विदेशियों को, सब से निष्ठुर राष्ट्रों को तुम्हारे पास भेजूँगा। वे तलवार खींच कर तुम्हारी अपूर्व बुद्धिमानी पर आक्रमण करेंगे और तुम्हारा घमण्ड चकनाचूर कर देंगे।

8) “वे तुम्हें अधोलोक पहुँचा देंगे और तुम समुद्र के बीच तलवार के घाट उतार दिये जाओगे।

9) जब तुम हत्यारों का सामना करोगे, तो क्या तुम ईश्वर होने का दावा करोगे? जब तुम अपने हत्यारों के हाथों पड़ जाओगे, तो तुम जान जाओगे कि तुम ईश्वर नहीं बल्कि निरे मनुय हो।

10) तुम विदेशियों के हाथों पड़ कर बेख़तना लोगों की मौत मरोगे, क्योंकि मैंने ऐसा कहा है। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 19:23-30

23) तब ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, ’’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- धनी के लिए स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना कठिन होगा।

24) मैं यह भी कहता हूँ कि सूई के नाके से हो कर ऊँट का निकलना अधिक सहज है, किन्तु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कठिन है।’’

25) यह सुनकर शिष्य बहुत अधिक विस्मित हो गये और बोले, ’’तो फिर कौन बच सकता है।’’

26) उन्हें स्थिर दृष्टि से देखते हुए ईसा ने कहा, ’’मनुष्यों के लिए तो यह असम्भव है। ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है।’’

27) तब पेत्रुस ने ईसा से कहा, ’’देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़ कर आपके अनुयायी बन गये हैं। तो, हमें क्या मिलेगा?’’

28) ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, ’’मैं तुम, अपने अनुयायियों से यह कहता हूँ- मानव पुत्र जब पुनरुत्थान में अपने महिमामय सिहांसन पर विराजमान होगा, तब तुम लोग भी बारह सिंहासनों पर बैठ कर इस्राएल के बारह वंशों का न्याय करोगे।

29) और जिसने मेरे लिए घर, भाई-बहनों, माता-पिता, पत्नी, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड दिया है, वह सौ गुना पायेगा और अनन्त जीवन का अधिकारी होगा।

30) बहुत-से लोग, जो अगलें हैं, पिछले हो जायेंगे और जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे।

📚 मनन-चिंतन

आज हम सांसारिक सम्पत्ति की व्यर्थता और स्वर्गीय सम्पत्ति यानी ईश्वर के साथ अनन्त जीवन की आवश्यकता पर मनन-चिंतन करते हैं। पहले पाठ में तिरुस के राजकुमार को देखते हैं जिसे नबी एजेकिएल के द्वारा धिक्कारते हैं क्योंकि वह उसने अकूत सांसारिक सम्पत्ति जमा की और अपनी बुद्धिमानी और दौलत का घमण्ड करता था।(एजेकिएल 28:4-5)। सुसमाचार में प्रभु धन-सम्पत्ति के बारे में चेतावनी देते हैं कि धनी व्यक्ति के लिए स्वर्गराज्य में प्रवेश करना बहुत मुश्किल होगा।

क्या धन-सम्पत्ति इतनी बुरी है? हाँ, यदि वह ईश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध में अवरोधक बनती है (जो कि वह अक्सर बनती है), तो वह बुरी है। यदि एक व्यक्ति के पास पर्याप्त धन-दौलत है, तो वह खुश और संतुष्ट जीवन जिएगा, लेकिन यदि उसके मन में लालच प्रवेश कर गया तो वह और अधिक धन-सम्पत्ति पाने के लिए लालायित हो उठेगा। जब उसे अधिक धन-दौलत मिल जाएगी तो वह और भी अधिक धन-दौलत के लिए भूखा हो जाएगा। और अगर आपको बहुत अधिक दौलत चाहिए तो या तो आपको बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ेगी या फिर ग़लत कार्यों के द्वारा अधिक दौलत कमानी पड़ेगी। लोग अक्सर दूसरा विकल्प ही चुनते हैं, क्योंकि पहला विकल्प कठिन और बहुत धीमा तरीक़ा है। प्रभु कहते हैं कि हमें स्वर्ग की सम्पत्ति कमानी है (मत्ती 6:19-20) जो हमारे स्वर्गीय निवास के लिए बहुत ज़रूरी है।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today we reflect upon the worthlessness of the worldly riches and necessity to focus on the heavenly riches, i.e., eternal life with God. In the first reading we see the prince of Tyre being condemned by God through prophet Ezekiel for amassing wealth and becoming proud of his wisdom and wealth (Ez.28:4-5). In the gospel also Jesus warns against being rich, it will be almost impossible for the rich to enter the kingdom of heaven.

Are the riches so bad? Yes, if they become hurdle in our relationship with God, and very often they do become hurdle. When a man has only sufficient riches, he may be living a life better satisfied and happy, but when greed enters his heart, he longs for more wealth. When he gets more wealth he longs for all the more wealth. And for getting more wealth either you have to work hard or acquire more wealth through immoral ways. People often tend to choose the second option because the first one is very hard and often less fruitful. But the Lord says our aim should be to acquire heavenly riches (Mt.6:19-20) Which are very much required for our eternal abode.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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