वर्ष - 2, बीसवाँ सप्ताह, बुधवार

📒 पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 34:1-11

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,

2) “मानवपुत्र! इस्राएल के चरवाहों के विरुद्ध भवियवाणी करो। भवियवाणी करो और उन से कहोः चरवाहो! प्रभु-ईश्वर यह कहता है! धिक्कार इस्राएल के चरवाहों को! वे केवल अपनी देखभाल करते हैं। क्या चरवाहों को झुुण्ड की देखवाल नहीं करनी चाहिए।

3) तुम भेड़ों का दूध पीते हो, उनका ऊन पहनते और मोटे पशुओं का वध करते हो, किन्तु तुम भेड़ों को नहीं चराते।

4) तुमने कमजोर भेड़ों को पौष्टिक भोजन नहीं दिया, बीमारों को चंगा नहीं किया, घायलों के घावों पर पटटी नहीं बाँधी, भूली-भटकी हुई भेड़ों को नहीं लौटा लाये और जो खो गयी थीं, उनका पता नहीं लगाया। तुमने भेड़ों के साथ निर्दय और कठोर व्यवहार किया है।

5) वे बिखर गयी, क्योंकि उन को चराने वाला कोई नहीं रहा और वे बनैले पशुओं को शिकार बन गयीं।

6) मेरी भेड़ें सब पर्वतों और ऊँची पहाडियों पर भटकती फिरती हैं: वे समस्त देश में बिखर गयी हैं, और उनकी परवाह कोई नहीं करता, उनकी खोज में कोई नहीं निकलता।

7) “इसलिए चरवाहो! प्रभु की वाणी सुनो।

8) प्रभु-ईश्वर यह कहता है -अपने अस्तित्व की शपथ! मेरी भेड़ें, चराने वालों के अभाव में, बनैले पशुओं का शिकार और भक्य बन गयी हैं: मेरे चरवाहों ने भेडो़ं की परवाह नहीं की - उन्होंने भेडांे की नहीं, बल्कि अपनी देखभाल की है;

9) इसलिए चरवाहो! प्रभु की वाणी सुनों।

10) प्रभु यह कहता हैं; मै उन चरवाहों का विरोधी बन गया हूँ। मैं उन से अपनी भेड़ें वापस माँगूंगा। मैं उनकी चरवाही बन्द करूँगा। वे फिर अपनी ही देखभाल नहीं कर पायेंगे। मैं अपनी भेड़ों को उनके पँजे से छुडाऊँगा और वे फिर उनकी शिकार नहीं बनेंगी।

11) “क्योंकि प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं स्वयं अपनी भेड़ों को सुध लूँगा और उनकी देखभाल करूँगा।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 20:1-16

1) ’’स्वर्ग का राज्य उस भूमिधर के सदृश है, जो अपनी दाखबारी में मज़दूरों को लगाने के लिए बहुत सबेरे घर से निकला।

2) उसने मज़दूरों के साथ एक दीनार का रोज़ाना तय किया और उन्हें अपनी दाखबारी भेजा।

3) लगभग पहले पहर वह बाहर निकला और उसने दूसरों को चैक में बेकार खड़ा देख कर

4) कहा, ’तुम लोग भी मेरी दाखबारी जाओ, मैं तुम्हें उचित मज़दूरी दे दूँगा’ और वे वहाँ गये।

5) लगभग दूसरे और तीसरे पहर भी उसने बाहर निकल कर ऐसा ही किया।

6) वह एक घण्टा दिन रहे फिर बाहर निकला और वहाँ दूसरों को खड़ा देख कर उन से बोला, ’तुम लोग यहाँ दिन भर क्यों बेकार खड़े हो’

7) उन्होंने उत्तर दिया, ’इसलिए कि किसी ने हमें मज़दूरी में नहीं लगाया’ उसने उन से कहा, ’तुम लोग भी मेरी दाखबारी जाओ।

8) ’’सन्ध्या होने पर दाखबारी के मालिक ने अपने कारिन्दों से कहा, ’मज़दूरों को बुलाओ। बाद में आने वालों से ले कर पहले आने वालों तक, सब को मज़दूरी दे दो’।

9) जब वे मज़दूर आये, जो एक घण्टा दिन रहे काम पर लगाये गये थे, तो उन्हें एक एक दीनार मिला।

10) जब पहले मज़दूर आये, तो वे समझ रहे थे कि हमें अधिक मिलेगा; लेकिन उन्हें भी एक-एक दीनार ही मिला।

11) उसे पाकर वे यह कहते हुए भूमिधर के विरुद्ध भुनभुनाते थे,

12) इन पिछले मज़दूरों ने केवल घण्टे भर काम किया। तब भी आपने इन्हें हमारे बराबर बना दिया, जो दिन भर कठोर परिश्रम करते और धूप सहते रहे।’

13) उसने उन में से एक को यह कहते हुए उत्तर दिया, ’भई! मैं तुम्हारे साथ अन्याय नहीं कर रहा हूँ। क्या तुमने मेरे साथ एक दीनार नहीं तय किया था?

14) अपनी मजदूरी लो और जाओ। मैं इस पिछले मजदूर को भी तुम्हारे जितना देना चाहता हूँ।

15) क्या मैं अपनी इच्छा के अनुसार अपनी सम्पत्ति का उपयोग नहीं कर सकता? तुम मेरी उदारता पर क्यों जलते हो?

16) इस प्रकार जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे और जो अगले है, पिछले हो जायेंगे।’’

📚 मनन-चिंतन

आज हम प्रभु की असीम उदारता के बारे में मनन-चिंतन करते हैं। पहले पाठ में हम देखते हैं कि जिन चरवाहों को प्रभु ने अपनी भेड़ों को सम्भालने के लिए नियुक्त किया था, वे रक्षक ही उन भेड़ों के भक्षक बन गए, इसलिए प्रभु स्वयं अपनी रक्षा करते हैं और स्वार्थी एवं धोखेबाज़ चरवाहों को दण्ड देते हैं। सुसमाचार में हम प्रभु येसु को देखते हैं जो केवल उन भेड़ों की देखभाल करते हैं जो उनकी अपनी हैं, बल्कि उनकी भी जो उनकी भेडशाला की नहीं हैं। उनकी उदारता यही है कि वह सब की देख-भाल की ज़िम्मेदारी लेते हैं, उनकी भी जो बिना चरवाहे की भेड़ें हैं।

आज के सुसमाचार के दृष्टांत में ज़मींदार पूरे दिन में कम से कम चार बार अलग-अलग समय पर मज़दूर खोजने जाता है, और चारों बार वह कुछ न कुछ मज़दूर काम पर लगा लेता है और अन्त में संध्या समय सभी को बराबर मज़दूरी देता है। शायद उस दाखबारी के स्वामी को बहुत सारे मज़दूरों की आवश्यकता थी और इसलिए वह अलग-अलग समय पर मज़दूर खोजने जाता है। या फिर शायद मज़दूर ही बहुत अधिक थे और अपने परिवार का पेट पालने की ख़ातिर पूरे दिन काम की तलाश में मजबूर थे। स्वामी उन्हें उनके काम के अनुसार भुगतान नहीं करता बल्कि उनकी ज़रूरत के अनुसार भुगतान करता है। एक पिता अपने बच्चों की ज़रूरतों को जानता है और उन्हें पूरा करने की क़ीमत की फ़िक्र नहीं करता। कभी-कभी उदारता और करुणा न्याय से बढ़कर हैं।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today we reflect about the boundless generosity of the Lord. In the first reading we see, the shepherds who were supposed to care for the sheep, they cared for themselves and exploited the sheep for their selfish purpose, therefore God himself takes over and punishes the unfaithful shepherds. In the gospel we see Jesus as responsible shepherd who not only cares for who deserve but also for those who are deprived. His generosity takes care of everyone in need, because he himself has taken the responsibility of taking care of the sheep who are without a shepherd.

In the parable today the landowner goes to hire labourers at least four times in whole day and all four times he brings labourers and at the end he pays them equally. The master perhaps needed more labourers and that’s why he goes out at different hours to hire the labourers. Or there were many labourers looking for work so that they could take care of their family. The master pays them not according to their work but according to their need. A father knows the needs of his children and he doesn’t count the price for fulfilling their needs. Sometimes mercy over takes justice.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!