वर्ष - 2, इक्कीसवाँ सप्ताह, गुरुवार

📒 पहला पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 1:1-9

1) कुरिन्थ में ईश्वर की कलीसिया के नाम पौलुस, जो ईश्वर द्वारा ईसा मसीह का प्रेरित नियुक्त हुआ है, और भाई सोस्थेनेस का पत्र।

2) आप लोग ईसा मसीह द्वारा पवित्र किये गये हैं और उन सबों के साथ सन्त बनने के लिए बुलाये गये हैं, जो कहीं भी हमारे प्रभु ईसा मसीह अर्थात् अपने तथा हमारे प्रभु का नाम लेते हैं।

3) हमारा पिता ईश्वर और प्रभु ईसा मसीह आप लोगों को अनुग्रह तथा शान्ति प्रदान करें।

4) आप लोगों को ईसा मसीह द्वारा ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त हुआ है। इसके लिए मैं ईश्वर को निरन्तर धन्यवाद देता हूँ।

5 (5-6) मसीह का सन्देश आप लोगों के बीच इस प्रकार दृढ़ हो गया है कि आप लोग मसीह से संयुक्त होकर अभिव्यक्ति और ज्ञान के सब प्रकार के वरदानों से सम्पन्न हो गये हैं।

7) आप लोगों में किसी कृपादान की कमी नहीं है और सब आप हमारे प्रभु ईसा मसीह के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

8) ईश्वर अन्त तक आप लोगों को विश्वास में सुदृढ़ बनाये रखेगा, जिससे आप हमारे प्रभु ईसा मसीह के दिन निर्दोष पाये जायें।

9) ईश्वर सत्यप्रतिज्ञ है। उसने ने आप लोगों को अपने पुत्र हमारे प्रभु ईसा मसीह के सहभागी बनने के लिए बुलाया।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 24:42-51

42) ’’इसलिए जागते रहो, क्योकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारे प्रभु किस दिन आयेंगे।

43) यह अच्छी तरह समझ लो- यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर रात के किस पहर आयेगा, तो वह जागता रहता और अपने घर में सेंध लगने नहीं देता।

44) इसलिए तुम लोग भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा।

45) ’’कौन ऐसा ईमानदार और बुद्धिमान् सेवक है, जिसे उसके स्वामी ने अपने नौकर-चाकरों पर नियुक्त किया है, ताकि वह समय पर उन्हें रसद बाँटा करे?

46) धन्य है वह सेवक, जिसका स्वामी आने पर उसे ऐसा करता हुआ पायेगा!

47) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर नियुक्त करेगा।

48) ’’परन्तु यदि वह बेईमान सेवक अपने मन में कहे, मेरा स्वामी आने में देर करता है,

49) और वह दूसरे नौकरों को पीटने और शराबियों के साथ खाने-पीने लगे,

50) तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आयेगा, जब वह उसकी प्रतिक्षा नहीं कर रहा होगा और ऐसी घड़ी, जिसे वह नहीं जान पायेगा।

51) तब वह स्वामी उसे कोड़े लगवायेगा और ढोंगियों का दण्ड देगा। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।

📚 मनन-चिंतन

“इसलिए जागते रहो क्योंकि तुम नहीं जानते कि किस घड़ी प्रभु आएगा।” हम प्रभु के सेवक मात्र हैं। हमारे जन्म लेने से पहले ही ईश्वर ने हमें चुना है और एक ज़िम्मेदारी दी है (यिरमियाह 1:5)। ईश्वर ने हम में से प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योजना पूरी करने के लिए चुना है, लेकिन उसने समय निश्चित नहीं किया कब वह हमसे हमारे काम का लेखा-जोखा लेगा, और कब हमें अपने सामने प्रस्तुत होने के लिए बुलाएगा। आज का सुसमाचार हमारी उससे मुलाक़ात की तैयारी के बारे में ही है।

हमें प्रत्येक को जो ज़िम्मेदारी दी है उसे हमें पूरी वफ़ादारी और ईमानदारी से निभाना है। उदाहरण के लिए यदि मैं एक अध्यापक/अध्यापिका हूँ तो मुझे अपना काम इस तरह करना है मानो ईश्वर मुझसे लेखा-जोखा लेगा कि मैंने अपना काम कितनी ईमानदारी और लगन से किया। यही बात नर्स के कार्य के साथ भी है कि कितनी ईमानदारी और सेवा भाव से मैंने रोगियों के रूप में प्रभु की सेवा की, या फिर हम कोई प्राइवेट नौकरी या सरकारी नौकरी करते हों, क्या हम अपने काम को उसी तरह से करते हैं जैसे ईश्वर चाहते हैं? हम जीवन में अलग-अलग भूमिकाएँ भी निभाते हैं, माता, पिता, बहन, पुत्र/पुत्री, विद्यार्थी, आदि क्या मैं अपनी भूमिका पूर्ण ईमानदारी से निभा रहा हूँ? संत मोनिका एक आदर्श माँ हैं जिसने एक माँ होने की, पत्नी होने की, बहु होने की, आदर्श पड़ौसी होने की अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया और आज वो एक संत हैं।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

“Stay awake then, for you do not know on what day your Lord will come.” We are the servants of the Lord. Each one of us has been entrusted with a responsibility even before we were born (cf. Jer.1:5). God has chosen each one of us for a task and a responsibility to fulfil, but he has not given a deadline so as to when he will ask us to give account or when we will be called to him. The passage of today is certainly about our preparedness.

Each one of us is called to fulfil the role we are assigned with faithfulness and sincerity. If I am a teacher, I have to do my job as if Lord is going to take account of my work, how sincerely and faithfully I do my job so is the case with nurse, how faithfully and sincerely did I serve the Lord as a nurse, or I am in a government or private job, am I doing my job as the Lord would want me to do it? We have various roles to play – a mother, a father, a sister, a child, a student etc., am I fulfilling my responsibility with utmost faithfulness. St. Monica is one of the ideal mother that fulfilled her responsibility faithfully as mother, wife, daughter-in-law, neighbour etc and became a saint.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!