वर्ष - 2, इक्कीसवाँ सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 1:17-25

17) क्योंकि मसीह ने मुझे बपतिस्मा देने नहीं; बल्कि सुसमाचार का प्रचार करने भेजा। मैंने इस कार्य के लिए अलंकृत भाषा का व्यवहार नहीं किया, जिससे मसीह के क्रूस के सन्देश का प्रभाव फीका न पड़े।

18) जो विनाश के मार्ग पर चलते हैं, वे क्रूस की शिक्षा को ’’मूर्खता’’ समझते हैं। किन्तु हम लोगों के लिए, जो मुक्ति के मार्ग पर चलते हैं, वह ईश्वर का सामर्थ्य है;

19) क्योंकि लिखा है-मैं ज्ञानियों का ज्ञान नष्ट करूँगा और समझदारों की चतुराई व्यर्थ कर दूँगा।

20) हम में ज्ञानी, शास्त्री और इस संसार के दार्शनिक कहाँ हैं? क्या ईश्वर ने इस संसार के ज्ञान को मूर्खता-पूर्ण नहीं प्रमाणित किया है?

21) ईश्वर की प्रज्ञा का विधान ऐसा था कि संसार अपने ज्ञान द्वारा ईश्वर को नहीं पहचान सका। इसलिए ईश्वर ने सुसमाचार की ’’मूर्खता’’ द्वारा विश्वासियों को बचाना चाहा।

22) यहूदी चमत्कार माँगते और यूनानी ज्ञान चाहते हैं,

23) किन्तु हम क्रूस पर आरोपित मसीह का प्रचार करते हैं। यह यहूदियों के विश्वास में बाधा है और गै़र-यहूदियों के लिए ’मूर्खता’।

24) किन्तु मसीह चुने हुए लोगों के लिए, चाहे वे यहूदी हों या यूनानी, ईश्वर का सामर्थ्य और ईश्वर की प्रज्ञा है;

25) क्योंकि ईश्वर की ’मूर्खता’ मनुष्यों से अधिक विवेकपूर्ण और ईश्वर की ’दुर्बलता’ मनुष्यों से अधिक शक्तिशाली है।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 25:1-13

1) उस समय स्वर्ग का राज्य उन दस कुँआरियों के सदृश होगा, जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दुलहे की अगवानी करने निकलीं।

2) उन में से पाँच नासमझ थीं और पाँच समझदार।

3) नासमझ अपनी मशाल के साथ तेल नहीं लायीं।

4) समझदार अपनी मशाल के साथ-साथ कुप्पियों में तेल भी लायीं।

5) दूल्हे के आने में देर हो जाने पर ऊँघने लगीं और सो गयीं।

6) आधी रात को आवाज़ आयी, ’देखो, दूल्हा आ रहा है। उसकी अगवानी करने जाओ।’

7) तब सब कुँवारियाँ उठीं और अपनी-अपनी मशाल सँवारने लगीं।

8) नासमझ कुँवारियों ने समझदारों से कहा, ’अपने तेल में से थोड़ा हमें दे दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं’।

9) समझदारों ने उत्तर दिया, ’क्या जाने, कहीं हमारे और तुम्हारे लिए तेल पूरा न हो। अच्छा हो, तुम लोग दुकान जा कर अपने लिए ख़रीद लो।’

10) वे तेल ख़रीदने गयी ही थीं कि दूलहा आ पहुँचा। जो तैयार थीं, उन्होंने उसके साथ विवाह-भवन में प्रवेश किया और द्वार बन्द हो गया।

11) बाद में शेष कुँवारियाँ भी आ कर बोली, प्रभु! प्रभु! हमारे लिए द्वार खोल दीजिए’।

12) इस पर उसने उत्तर दिया, ’मैं तुम से यह कहता हूँ- मैं तुम्हें नहीं जानता’।

13) इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न तो वह दिन जानते हो और न वह घड़ी।

📚 मनन-चिंतन

आज माता कलीसिया महान संत अगस्तिन का पर्व मनाती है, जो धर्माध्यक्ष एवं कलिसिया के महान विद्वान हैं। धर्माध्यक्ष का कार्य कलिसिया की अगुआई करना है और डॉक्टर अथवा विद्वान वह है जो कलिसिया की शिक्षाओं में त्रुटियों को दूर करता है। संत अगस्टिन अपने समय के एक महान और विख्यात विद्वान थे। वह सब कुछ के बारे में ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे। उनका एकमात्र उद्देश्य हर तरह का ज्ञान प्राप्त करना था, लेकिन बाद में उनकी माता की प्रार्थनाओं द्वारा उनका मन ईश्वर की ओर अभिमुख हुआ और जो ज्ञान वह खोज रहे थे वह उनके लिए मूर्खता बन गया और सुसमाचार उनके लिए अनंत प्रज्ञा का स्रोत बन गया।

आज के सुसमाचार में हम दस कुँवारियों को देखते हैं जिनमें से पाँच मूर्ख थीं और पाँच समझदार। जिन्होंने दूल्हे से मिलने के लिए उचित तैयारी की थे वे समझदार मानी जाती हैं लेकिन जिन्होंने भविष्य के लिए उचित तैयारी नहीं की उन्हें मूर्ख माना जाता है, और वे विवाह भोज में सम्मिलित होने से वंचित हो जाती हैं। इस दुनिया में हमारा जीवन दूल्हे की प्रतीक्षा करने के समान है और हमारे भले कार्य, हमारा पुण्य और अच्छाई वह तेल है जो हमारी मशाल को जलाए रखता है। हमें बिलकुल भी पता नहीं कि हमारा अंत कब आएगा, हो सकता है हमें दूल्हे से मिलने के लिए पर्याप्त तेल ख़रीदने का मौक़ा ही ना मिले। आइए हम समय रहते, रात होने से पहले ही अपने लिए पर्याप्त तेल की व्यवस्था कर लें, अभी भी मौक़ा है।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today Mother Church celebrates the feast of great saint Augustine, Bishop and doctor of the Church. Bishop is the one who leads the Church and doctor is the one who corrects the errors or heals the mistakes. St. Augustine was one of the great and wise scholar of his time. He wanted to know everything about everything. Gaining wisdom was his quest but later through the prayers of his mother, St. Monica he turned to God and the wisdom which he was seeking became foolishness for him and gospel became the source of eternal wisdom for him.

We see ten virgins in the gospel today, five were wise and five foolish. The ones prepared who prepared to meet the bridegroom are considered wise but those who did not prepare for future are considered foolish and they are not allowed to enter the banquet. Our life here on earth is like waiting for the bridegroom and our good works, our charity, our goodness is the oil that keeps our lamps burning. We never know when we shall meet our death, perhaps there will be no time to get more oil when the bridegroom comes. Let us now itself acquire more oil while there is still day, while there is still opportunity.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!