वर्ष - 2, बाईसवाँ सप्ताह, गुरुवार

📒 पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 3:18-23

18) कोई अपने को धोखा न दे। यदि आप लोगों में कोई अपने को संसार की दृष्टि से ज्ञानी समझता हो, तो वह सचमुच ज्ञानी बनने के लिए अपने को मूर्ख बना ले;

19) क्योंकि इस संसार का ज्ञान इ्रश्वर की दृष्टि में ’मूर्खता’ है। धर्मग्रन्थ में यह लिखा है- वह ज्ञानियों को उनकी चतुराई से ही फँसाता है

20) और प्रभु जानता है कि ज्ञानियों के तर्क-वितर्क निस्सार हैं।

21) इसलिए कोई मनुष्यों पर गर्व न करे सब कुछ आपका है।

22) चाहे वह पौलुस, अपोल्लोस अथवा कैफ़स हो, संसार हो, जीवन अथवा मरण हो, भूत अथवा भविष्य हो-वह सब आपका है।

23) परन्तु आप मसीह के और मसीह ईश्वर के हैं।


सुसमाचार : लूकस 5:1-11

1) एक दिन ईसा गेनेसरेत की झील के पास थे। लोग ईश्वर का वचन सुनने के लिए उन पर गिरे पड़ते थे।

2) उस समय उन्होंने झील के किनारे लगी दो नावों को देखा। मछुए उन पर से उतर कर जाल धो रहे थे।

3) ईसा ने सिमोन की नाव पर सवार हो कर उसे किनारे से कुछ दूर ले चलने के लिये कहा। इसके बाद वे नाव पर बैठे हुए जनता को शिक्षा देते रहे।

4) उपदेश समाप्त करने के बाद उन्होंने सिमोन से कहा, "नाव गहरे पानी में ले चलो और मछलियाँ पकड़ने के लिए अपने जाल डालो"।

5) सिमोन ने उत्तर दिया, "गुरूवर! रात भर मेहनत करने पर भी हम कुछ नहीं पकड़ सके, परन्तु आपके कहने पर मैं जाल डालूँगा"।

6) ऐसा करने पर बहुत अधिक मछलियाँ फँस गयीं और उनका जाल फटने को हो गया।

7) उन्होंने दूसरी नाव के अपने साथियों को इशारा किया कि आ कर हमारी मदद करो। वे आये और उन्होंने दोनों नावों को मछलियों से इतना भर लिया कि नावें डूबने को हो गयीं।

8) यह देख कर सिमोन ने ईसा के चरणों पर गिर कर कहा, "प्रभु! मेरे पास से चले जाइए। मैं तो पापी मनुष्य हूँ।"

9) जाल में मछलियों के फँसने के कारण वह और उसके साथी विस्मित हो गये।

10) यही दशा याकूब और योहन की भी हुई; ये जेबेदी के पुत्र और सिमोन के साझेदार थे। ईसा ने सिमोन से कहा, "डरो मत। अब से तुम मनुष्यों को पकड़ा करोगे।"

11) वे नावों को किनारे लगा कर और सब कुछ छोड़ कर ईसा के पीछे हो लिये।

📚 मनन-चिंतन

मित्रो, आज के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि येसु सिमोन की नाव में सवार होकर सुसमाचार सुनाते है और बाद में वे उनसे कहते है - "नाव को गहरे पानी में ले जाओ और मछलियाँ पकड़ने के लिए जाल डालो।" पेत्रुस ने ऐसा ही किया और भरपूर मात्रा में उन्हें मछलियाँ मिली। शायद उतनी उन्होंने पहले कभी ना पकड़ी होंगी।

मैं येसु के नाव में आने की तुलना पवित्र यूखरिस्त से करना चाहता हूँ। पवित्र यूखरिस्त में प्रभु येसु हमारे जीवन रूपी नाव में आते हैं। वो हमारे दिल में आते और हमारे दिल में रहते हुए हमें बहुत सारी शिक्षा देते हैं। आज हम अपने आप से ये सवाल करें कि क्या मैं मेरे दिल में आने वाले येसु की बातें सुनता हूँ, जैसे पेत्रुस ने न केवल उनका प्रवचन सुना बल्कि उन्होंने येसु के आदेश का अक्षरसः पालन किया। उन्होंने न भीड़ की परवाह की और न ही खुद की बुद्धि पर भरोसा किया। उन्होंने बस जैसा येसु ने कहा वैसा ही किया और देखो एक बड़ा चमत्कार उनके सामने होता है, जिसके बाद से उनकी पूरी ज़िन्दगी बदल जाती है।

हम येसु को अपने जीवन की नाव में अथवा अपने हृदय में बुलाते तो हैं, पर उनकी बात मानने को तैयार नहीं। उनकी वाणी सुनकर जैसा वे हमें करने को कहते हैं, वैसा करने को तैयार नहीं। हम किनारा छोड़कर गहराई में जाने को तैयार नहीं। येसु हमारे जीवन को भरपूर मात्रा में आशीष व अनुग्रह देना चाहते हैं पर हम उनकी आज्ञा मानकर हमारे जीवन की नाव को गहरे पानी में ले जाना नहीं चाहते। येसु पर पूर्ण भरोसा करके उनकी मर्ज़ी अनुसार निर्णय लेना और कार्य करना हम नहीं चाहते। जब तक हम जीवन में खुद की बुद्धि और खुद की योजनाओं के अनुसार कार्य करेंगे तो हमें या तो बहुत थोड़ा ही मिलेगा या फिर कुछ भी नहीं मिलेगा भले ही हम सारी रात मेहनत कर लें । पर जब येसु की मर्ज़ी के अनुसार चलेंगे तो इतना अनुग्रह मिलेगा की जीवन में समा नहीं पायेगा।

- फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

Friends, in today's gospel we read that Jesus first of all gets into the boat of Simon and preaches the Good News then he tells him - "Take the boat into deep water and put the net to catch the fish." Peter did what Jesus said, and he found fish in plenty. They may have never caught that much before. I would like to compare the coming of Jesus in the boat to the holy Eucharist. In the holy Eucharist, Lord Jesus comes in the boat of our life. He comes to our heart and gives us a lot of teaching while staying in our heart. Today let us ask ourselves whether we listen to the words of Jesus living in our hearts, as Peter did. He not only listened to his preaching but he obeyed Jesus’ order literally. He neither cared for the crowd nor trusted his own intelligence. He did just as Jesus said and see a big miracle happens in front of him, after which his whole life got changed. We do call Jesus in the boat of our lives or in our hearts, but we are not ready to obey him. Hearing his voice, we are not ready to do what he tells us to do. We are not ready to trust our Lord and go deep into the sea of life. Jesus wants to give abundant blessings and graces in our lives, but we do not want to take the risk of taking the boat of our life into the deep water. We do not want to trust and believe in Jesus and act according to his will. As long as we work according to our own intelligence and our own plans in life, we will either get very a little or will get nothing, even if we work hard all night. But when we walk according to the will of Jesus, we will get so much grace that we will not be able to contain it.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)


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Praise the Lord!