वर्ष - 2, बाईसवाँ सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 4:1-5

1) लोग हमें मसीह के सेवक और ईश्वर के रहस्यों के कारिन्दा समझे।

2) अब कारिन्दा से यह आशा की जाती है कि वह ईमानदार निकले।

3) मेरे लिए इस बात का कोई महत्व नहीं कि आप लोग अथवा मनुष्यों का कोई न्यायालय मुझे योग्य समझे। मैं स्वयं भी अपना न्याय नहीं करता।

4) मैं अपने में कोई दोष नहीं पाता, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि मैं निर्दोष हूँ। प्रभु ही मेरे न्यायकर्ता हैं।

5) इसलिए प्रभु के आने तक कोई किसी का न्याय नहीं करे। वह अन्धकार के रहस्य प्रकाश में लायेंगे और हृदयों के गुप्त अभिप्राय प्रकट करेंगे। उस समय हर एक को ईश्वर की ओर से यथायोग्य श्रेय दिया जायेगा।


सुसमाचार : लूकस 5:33-39

33) उन्होंने ईसा से कहा "योहन के शिष्य बारम्बार उपवास करते हैं और प्रार्थना में लगे रहते हैं और फरीसियों के शिष्य भी ऐसा ही करते हैं, किन्तु आपके शिष्य खाते-पीते हैं"।

34) ईसा ने उन से कहा, "जब तक दुलहा उनके साथ हैं, क्या तुम बारातियों से उपवास करा सकते हो?

35) किन्तु वे दिन आयोंगे, जब दुलहा उनके स बिछुड़ जायेगा। उन दिनों वे उपवास करेंगे।"

36) ईसा ने उन्हें यह दृष्टान्त भी सुनाया, "कोई नया कपड़ा फाड़ कर पुराने कपड़े में पैबंद नहीं लगाता। नहीं तो वह नया कपड़ा फाड़ेगा और नये कपड़े का पैबंद पुराने कपड़े के साथ मेल भी नहीं खायेगा।

37) और कोई पुरानी मशकों में नयी अंगूरी नहीं भरता। नहीं तो नयी अंगूरी पुरानी मशकों को फाड़ देगी, अंगूरी बह जायेगी और मशकें बरबाद हो जायेंगी।

38) नयी अंगूरी को नयी मशकों में ही भरना चाहिए।

39) "कोई पुरानी अंगूरी पी कर नयी नहीं चाहता। वह तो कहता है, ’पुरानी ही अच्छी है।"

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं शास्त्री और फरीसी येसु से उपवास को लेकर सवाल करते हुए कहते हैं कि योहन के शिष्य और फरीसियों के शिष्य उपवास करते हैं पर उनके शिष्य क्यों खाते - पीते हैं। प्रभु येसु उनके प्रश्न का जवाब अन्य प्रश्न से ही देते हैं। वे उनसे पूछते हैं कि जब तक दूल्हा साथ है क्या तुम बारातियों से उपवास करा सकते हो ? जब दूल्हा उनसे बिछुड़ जायेगा तब वे उपवास करेंगे।

यहाँ पर दो बिंदु मनन-चिंतन के लिए हमारा ध्यान खींचते हैं। 1 ) हमारे उपवास या फिर किसी भी भले कार्य के पीछे एक उद्द्देश्य होना चाहिए। कई बार देखा जाता है कि कई लोगों की धार्मिक क्रियाएं या तो किसी की देखा देखी में की जाती है या फिर दूसरों को दिखने के लिए की जाती है। कुछ - कुछ काम हम बस रिवाज के नाम पर करते रहते हैं जिसका ना हमें अर्थ पता होता है और न कारण ही।

2 ) हर कार्य का अपना एक समय होता है। बारात के समय शोक और मौत के समय जश्न मनाना उचित नहीं है। उपदेशक ग्रन्थ 3:1 में उपदेशक कहता है पृथ्वी पर हर बात का अपना वक्त और हर काम का अपना समय होता है। उस समय जब येसु शरीर रूप में अपने शिष्यों के साथ थे उनका उपवास करना बेवजह था। पर आज, हमें उपवास करने की ज़रुरत है। ये उपवास, प्रार्थना, पश्चाताप और प्रायश्चित का समय है। आइये हम सब विश्वासी मिलकर उपवास प्रार्थना व प्रायश्चित करते हुए कोरोना महामारी, प्राकृतिक आपदायें, दुर्घटनाएँ, और हिंसा झेल रहे हमारे संसार के लिए प्रार्थना करें।

- फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

Today's gospels we read, the scribes and Pharisees question Jesus about fasting, saying that the disciples of John and the disciples of the Pharisees fast but why his disciples eat and drink. Lord Jesus answers the question with another question saying – “You cannot make wedding-guests fast while the bridegroom is with them, can you? The days will come when the bridegroom will be taken away from them, and then they will fast in those days.” Two points here draw our attention for our reflection: (1) There should be a purpose behind our fasting or any good work. Many a times it is seen that some people's religious activities are done either blindly following someone or to make show of their religiosity. We just keep doing some work in the name of custom, of which we neither know the meaning nor the reason. (2) Every work has its own time. It is not appropriate to celebrate mourning and death at the time of marriage procession. The preacher says in Ecclesiastes 3:1- For everything there is a season, and a time for every matter under heaven: At that time when Jesus was with his disciples in body form, it was improper for them to fast, but today we need to fast. It is a time of fasting, prayer, repentance and atonement. Come, let us pray together for the Corona pandemic, natural calamities, accidents, and violence in our world as fast, pray and make atonement.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)


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Praise the Lord!