वर्ष - 2, तेईसवाँ सप्ताह, बुधवार

📒 पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 7:25-31

25) कुँवारियों के विषय में मुझे प्रभु की ओर से कोई आदेश नहीं मिला है, किन्तु प्रभु की दया से विश्वास के योग्य होने के नाते मैं अपनी सम्मति दे रहा हूँ।

26) मैं समझता हूँ कि वर्तमान संकट में यही अच्छा है कि मनुष्य जिस स्थिति में है, उसी स्थिति में रहे।

27) आपने किसी स्त्री से विवाह किया है? तो उस से मुक्त होने का प्रयत्न न करें। आपकी पत्नी का देहान्त हुआ है? तो दूसरी की खोज न करें।

28) यदि आप विवाह करते हैं, तो इस में कोई पाप नहीं और यदि कुँवारी विवाह करती है, तो वह पाप नहीं करती। किन्तु ऐसे लोग अवश्य ही विवाहित जीवन की झंझटें मोल लेते हैं- इन से मैं आप लोगों को बचाना चाहता हूँ।

29) भाइयो! मैं आप लोगों से यह कहता हूँ - समय थोड़ा ही रह गया है। अब से जो विवाहित हैं, वे इस तरह रहे मानो विवाहित नहीं हों;

30) जो रोते है, मानो रोते नहीं हो; जो आनन्द मनाते हैं, मानो आनन्द नहीं मनाते हों; जो खरीद लेते हैं, मानो उनके पास कुछ नहीं हो;

31) जो इस दुनिया की चीज़ों का उपभोग करते है, मानो उनका उपभोग नहीं करते हों; क्योंकि जो दुनिया हम देखते हैं, वह समाप्त हो जाती है।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 6:20-26

20) ईसा ने अपने शिष्यों की ओर देख कर कहा, ’’धन्य हो तुम, जो दरिद्र हो! स्वर्गराज्य तुम लोगों का है।

21) धन्य हो तुम, जो अभी भूखे हो! तुम तृप्त किये जाओगे। धन्य हो तुम, जो अभी रोते हो! तुम हँसोगे।

22) धन्य हो तुम, जब मानव पुत्र के कारण लोग तुम से बैर करेंगे, तुम्हारा बहिष्कार और अपमान करेंगे और तुम्हारा नाम घृणित समझ कर निकाल देंगे!

23) उस दिन उल्लसित हो और आनन्द मनाओ, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। उनके पूर्वज नबियों के साथ ऐसा ही किया करते थे।

24) ’’धिक्कार तुम्हें, जो धनी हो! तुम अपना सुख-चैन पा चुके हो।

25) धिक्कार तुम्हें, जो अभी तृप्त हो! तुम भूखे रहोगे। धिक्कार तुम्हें, जो अभी हँसते हो! तुम शोक मनाओगे और रोओगे।

26) धिक्कार तुम्हें, जब सब लोग तुम्हारी प्रशंसा करते हैं! उनके पूर्वज झूठे नबियों के साथ ऐसा ही किया करते थे।

📚 मनन-चिंतन

आज,येसु हमें बताते हैं कि हमारे जीवन में सच्ची खुशी हमें कहाँ से मिलती है। आशीर्वचन और धिक्कार के द्वारा प्रभु येसु दो मार्गों के सिद्धांत को लागू करते है: जीवन का मार्ग और मृत्यु का तथ्य। तीसरी और तटस्थ संभावना नहीं है: वह जो जीवन के मार्ग का अनुसरण नहीं करता है वह मृत्यु के मार्ग की ओर अग्रसर है; जो प्रकाश का पालन नहीं करता, वह अंधकार में रहता है।

आशीर्वचन में येसु कहते हैं धन्य हो तुम, जो दरिद्र हो ! स्वर्ग राज्य तुम लोगों का है। (लूकस 6:29)। यह आशीर्वचन अन्य सभी का आशीर्वचन आधार है, क्योंकि जो गरीब है वह उपहार के रूप में ईश्वर का राज्य प्राप्त करने में सक्षम होगा। वह जो गरीब है उसे एहसास होगा कि उसे भूखा और प्यासा होना चाहिए: भौतिक चीजों का नहीं, बल्कि परमेश्वर के वचन के लिए; सत्ता के लिए नहीं, पर प्रेम और न्याय के लिए । जो गरीब है वह दुनिया की तकलीफों को अपने जीवन में अनुभव कर सकता है। जो दरिद्र है, उसे पता होगा कि ईश्वर ही उसकी सारी दौलत है और ईश्वर की वजह से दुनिया उसे नहीं समझेगी और उसे परेशान करेगी।

धिक्कार तुम्हें जो धनी हो ! तुम अपना सुख चैन पा चुके हो। (लूकस 6:24)। यह धिक्कार भी अन्य सभी धिक्कारों के लिए आधार है: क्योंकि जो समृद्ध और आत्मनिर्भर है,वह दूसरों की सेवा में अपना धन नहीं लगाना चाहता, वह सिर्फ अपने स्वार्थ की पूर्ति पर ही ध्यान देता है। जो संसार पर भरोसा करता है उसका हृदय ईश्वर से विमुख हो जाता है। जिसने इस संसार में अपनी दौलत का सुख भोगा और ईश्वर को भूलाया है वह आने वाले संसार में कुछ भी हासिल नहीं करेगा।

आइये हम स्वर्ग राज्य को हासिल करना अपनी प्राथमिकता माने और सांसारिक चीजों के मोह से बचें।

- फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

Today, Jesus explains how we get the true happiness in our lives. Through beatitudes and woes, Lord applies the principle of two paths: the way of life and the fact of death. There is no third and neutral possibility: He who does not follow the path of life is leading to the path of death; He, who does not follow light, lives in darkness. In blessings or beatitudes, Jesus says - blessed are you who are poor! The kingdom of heaven belongs to you. (Luke 6:29). This beatitude is the basis of all others, because the poor one will be able to receive the kingdom of God as a gift. He, who is poor, will realize that he must be hungry and thirsty: not for material things, but for the word of God; not for power, but for love and justice. One who is poor can experience the sufferings of the world in his life. He, who is poor, will know that God is all his wealth and because of God the world will not understand him and persecute him.

‘But woe to you who are rich, for you have received your consolation.(Luke 6:24). This woe is also like vice the basis for all other woes: because he who is rich and self-sufficient does not want to invest his wealth in the service of others, he only pays attention to the fulfillment of his selfishness. Who trusts the world his heart turns away from God. Whoever has enjoyed the happiness of his wealth in this world and has forgotten God, will not achieve anything in the world to come.

Let us make the kingdom of heaven our priority and avoid the temptation of worldly things.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)


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Praise the Lord!