वर्ष - 2, तेईसवाँ सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 9:16-19, 22-27

16) मैं इस पर गौरव नहीं करता कि मैं सुसमाचार का प्रचार करता हूँ। मुझे तो ऐसा करने का आदेश दिया गया है। धिक्कार मुझे, यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ!

17) यदि मैं अपनी इच्छा से यह करता, तो मुझे पुरस्कार का अधिकार होता। किन्तु मैं अपनी इच्छा से यह नहीं करता। मुझे जो कार्य सौंपा गया है, मैं उसे पूरा करता हूँ।

18) तो, पुरस्कार पर मेरा कौन-सा दावा है? वह यह है कि मैं कुछ लिये बिना सुसमाचार का प्रचार करता हूँ और सुसमाचार-सम्बन्धी अपने अधिकारों का पूरा उपयोग नहीं करता।

19) सब लोगों से स्वतन्त्र होने पर भी मैंने अपने को सबों का दास बना लिया है, जिससे मैं अधिक -से-अधिक लोगों का उद्धार कर सकूँ।

20) मैं यहूदियों के लिए यहूदी-जैसा बना, जिससे मैं यहूदियों का उद्धार कर सकँू। जो लोग संहिता के अधीन हैं, उनका उद्धार करने के लिए मैं संहिता के अधीन-जैसा बना, यद्यपि मैं वास्तव में संहिता के अधीन नहीं हूँ।

21) जो लोग संहिता के अधीन नहीं है, उनका उद्धार करने के लिए मैं उनके जैसा बना, यद्यपि मैं मसीह की संहिता के अधीन होने के कारण मैं वास्तव में ईश्वर की संहिता से स्वतन्त्र नहीं हूँ।

22) मैं दुर्बलों के लिए दुर्बल-जैसा बना, जिससे मैं उनका उद्धार कर सकूँ। मैं सब के लिए सब कुछ बन गया हूँ, जिससे किसी-न-किसी तरह कुछ लोगों का उद्धार कर सकूँ।

23) मैं यह सब सुसमाचार के कारण कर रहा हूँ, जिससे मैं भी उसके कृपादानों का भागी बन जाऊँ।

24) क्या आप लोग यह नहीं जानते कि रंगभूमि में तो सभी प्रतियोगी दौड़ते हैं, किन्तु पुरस्कार एक को ही मिलता है? आप इस प्रकार दौड़ें कि पुरस्कार प्राप्त करें।

25) सब प्रतियोगी हर बात में संयम रखते हैं। वे नश्वर मुकुट प्राप्त करने के लिए ऐसा करते हैं, जब कि हम अनश्वर मुकुट के लिए।

26) इसलिए मैं एक निश्चित लक्ष्य सामने रख कर दौड़ता हूँ। मैं ऐसा मुक्केबाज़ हूँ, जो हवा में मुक्का नहीं मारता।

27) मैं अपने शरीर को कष्ट देता हूँ और उसे वश में रखता हूँ। कहीं ऐसा न हो कि दूसरों को प्रवचन देने के बाद स्वयं मैं ही ठुकरा दिया जाऊँ।


सुसमाचार : लूकस 6:39-42

39) ईसा ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया, "क्या अन्धा अन्धे को राह दिखा सकता है? क्या दोनों ही गड्ढे में नहीं गिर पडेंगे?

40) शिष्य गुरू से बड़ा नहीं होता। पूरी-पूरी शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह अपने गुरू-जैसा बन सकता है।

41) "जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं, तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो?

42) जब तुम अपनी ही आँख की धरन नहीं देखते हो, तो अपने भाई से कैसे कह सकते हो, ’भाई! मैं तुम्हारी आँख का तिनका निकाल दूँ?’ ढोंगी! पहले अपनी ही आँख की धरन निकालो। तभी तुम अपने भाई की आँख का तिनका निकालने के लिए अच्छी तरह देख सकोगे।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हम सबसे दूसरों में गलतियां तलाशने से पहले अपनी गिरेबाँह में झाँकने के लिए आह्वान करते हैं। दूसरों में दोष देखना बहुत आसान है पर खुद की कमज़ोरियों पर ध्यान देना और उन्हें स्वीकार करना मुश्किल होता है। यदि आज की आधुनिक फोटोग्राफी तकनिकी की भाषा में बोले, तो हम दुसरों की बुराइयों को हाईलाइट अथवा zoom करके दिखाते हैं पर खुद की कमज़ोरियों को blur कर देते हैं।

दुनिया का नजरिया दूसरों में दोष ढूंढकर उस पर स्पॉट लाइट फोकस करने का होता है परन्तु प्रभु येसु हमारे दोषों व गुनाहों को अपने लहू से ढककर हम पर अपनी दया प्रदर्शित करते हैं. योहन 8:1-11 में हम पढ़ते हैं लोगों को उस व्यभिचारिणी नारी में सिर्फ गुनाह ही दिखा, पर येसु ने उसके गुनाहों पर फोकस न करके उसपर दया की और उसे उस पाप के दल-दल से बहार निकाला। वैसे ही लुकस 19 में हम देखते ज़केउस में लोगों ने सिर्फ एक पापी को ही देखा, परन्तु परन्तु येसु ने उसमे इब्राहम के बेटे को देखा और उसका उद्धार किया।

आइये आज हम विचार करें कि उत्तम क्या है दूसरोंको को दोषी ठहराना या उन पर दया दिखना। किसी को बदनाम करके उसे और अधिक बुराई करने के लिए मज़बूर करना या उसके साथ नरमी से पेश आते हुए उसे प्रेम व दया के साथ सही मार्ग पर लाना। आइये हम जो सही व उत्तम है उसका चयन करें व अपने व औरों के जीवन को सुन्दर बनायें.

- फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

In today's gospel, Jesus calls us to look into our own faults, before looking for the faults of others. It is very easy to see faults in others, but it is difficult to focus on our own weaknesses and accept them. If I speak in the language of today's photography, then, we show the evils of others by highlighting or zooming them, but we tend to blur our own weaknesses.

The trend of the world is to focus the spot light on others by finding faults in them, but Lord Jesus shows his mercy to us by covering our faults and sins with his precious blood. In John 8: 1-11, we read that people saw only sin in that adulterous woman, but Jesus did not focus on her sins and took pity on her and drove her out of the sinful situation. Likewise in Luke 19 we see, in the story of Zacchaeus, people saw only a sinner in him, but Jesus saw Abraham's son in him and saved him.

Let us consider today what is best: to blame others or to show compassion; to discredit someone and force him/her to do more evil or to treat him/her tenderly and to bring him/her to the right path with love and kindness. Let us choose what is right and good and make the life of others beautiful.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)


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Praise the Lord!