वर्ष - 2, तेईसवाँ सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 10:14-22

14) प्रिय भाइयो! आप मूर्तिपूजा से दूर रहें।

15) मैं आप लोगों को समझदार जान कर यह कह रहा हूँ। आप स्वयं मेरी बातों पर विचार करें।

16) क्या आशिष का प्याला, जिस पर हम आशिष की प्रार्थना पढ़ते हैं, हमें मसीह के रक्त का सहभागी नहीं बनाता? क्या वह रोटी, जिसे हम तोड़ते हैं, हमें मसीह के शरीर का सहभागी नहीं बनाती?

17) रोटी तो एक ही है, इसलिए अनेक होने पर भी हम एक हैं; क्योंकि हम सब एक ही रोटी के सहभागी हैं।

18) इस्राएलियों को देखिए! क्या बलि खाने वाले वेदी के सहभागी नहीं हैं?

19) मैं यह नहीं कहता कि देवता को चढ़ाये हुए मांस की कोई विशेषता है अथवा यह कि देवमूर्तियों का कुछ महत्व है।

20) किन्तु-धर्मग्रन्थ के अनुसार- गैर-यहूदियों के बलिदान ईश्वर को नहीं, बल्कि अपदूतों को चढ़ाये जाते हैं। मैं यह नहीं चाहता कि आप लोग अपदूतों के सहभागी बनें।

21) आप प्रभु का प्याला और अपदूतों का प्याला, दोनों नहीं पी सकते। आप प्रभु की मेज़ और अपदूतों की मेज़, दोनों के सहभागी नहीं बन सकते।

22) क्या हम प्रभु को चुनौती देना चाहते हैं? क्या हम उस से बलवान् हैं?


सुसमाचार : लूकस 6:43-49

43) "कोई अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं देता और न कोई बुरा पेड़ अच्छा फल देता है।

44) हर पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है। लोग न तो कँटीली झाडि़यों से अंजीर तोड़ते हैं और न ऊँटकटारों से अंगूर।

45) अच्छा मनुष्य अपने हृदय के अच्छे भण्डार से अच्छी चीजे़ं निकालता है और जो बुरा है, वह अपने बुरे भण्डार से बुरी चीज़ें निकालता है; क्योंकि जो हृदय में भरा है, वहीं तो मुँह से बाहर आता है।

46) "जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो ’प्रभु! प्रभु! कह कर मुझे क्यों पुकारते हो?

47) जो मेरे पास आ कर मेरी बातें सुनता और उन पर चलता है-जानते हो, वह किसके सदृश है?

48) वह उस मनुष्य के सदृश है, जो घर बनाते समय गहरा खोदता और उसकी नींव चट्टान पर डालता है। बाढ़ आती है, और जलप्रवाह उस मकान से टकराता है, किन्तु वह उसे ढा नहीं पाता; क्योंकि वह घर बहुत मज़बूत बना है।

49) परन्तु जो मेरी बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता, वह उस मनुष्य के सदृश है, जो बिना नींव डाले भूमितल पर अपना घर बनाता है। जल-प्रवाह की टक्कर लगते ही वह घर ढह जाता है और उसका सर्वनाश हो जाता है।"


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