वर्ष - 2, चौबीसवाँ सप्ताह, शनिवार

📒 पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 15:35-37, 42-49

35) अब कोई प्रश्न पूछ सकता है, "मृतक कैसे जी उठते हैं? वे कौन-सा शरीर ले कर आते हैं?"

36) अरे मूर्ख! तू जो बोता है, वह जब तक नहीं मरता तब तक उस में जीवन नहीं आ जाता।

37) तू जो बोता है, वह बाद में उगने वाला पौधा नहीं, बल्कि निरा दाना है, चाहे वह गेहूँ का हो या दूसरे प्रकार का।

42) मृतकों के पुनरुत्थान के विषय में भी यही बात है। जो बोया जाता है, वह नश्वर है। जो जी उठता है, वह अनश्वर है।

43) जो बोया जाता है, वह दीन-हीन है। जो जी उठता है, वह महिमान्वित है। जो बोया जाता है, वह दुर्बल है। जो जी उठता है, वह शक्तिशाली है।

44) एक प्राकृत शरीर बोया जाता है और एक आध्यात्मिक शरीर जी उठता है। प्राकृत शरीर भी होता है और आध्यात्मिक शरीर भी।

45) धर्मग्रन्थ में लिखा है कि प्रथम मनुष्य आदम जीवन्त प्राणी बन गया और अन्तिम आदम जीवन्तदायक आत्मा।

46) जो पहला है, वह आध्यात्मिक नहीं, बल्कि प्राकृत है। इसके बाद ही आध्यात्मिक आता है।

47) पहला मनुष्य मिट्टी का बना है और पृथ्वी का है, दूसरा स्वर्ग का है।

48) मिट्टी का बना मनुष्य जैसा था, वैसे ही मिट्टी के बने मनुष्य हैं और स्वर्ग का मनुष्य जैसा है, वैसे ही सभी स्वर्गी होंगे;

49) जिस तरह हमने मिट्टी के बने मनुष्य का रूप धारण किया है, उसी तरह हम स्वर्ग के मनुष्य का भी रूप धारण करेंगे।


सुसमाचार :लूकस 8:4-15

4) एक विशाल जनसमूह एकत्र हो रहा था और नगर-नगर से लोग ईसा के पास आ रहे थे। उस समय उन्होंने यह दृष्टान्त सुनाया,

5) "कोई बोने वाला बीज बोने निकला। बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे। वे पैरों से रौंदे गये और आकाश के पक्षियों ने उन्हें चुग लिया।

6) कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे। वे उग कर नमी के अभाव में झुलस गये।

7) कुछ बीज काँटों में गिरे। साथ-साथ बढ़ने वाले काँटों ने उन्हें दबा दिया।

8) कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे। वे उग कर सौ गुना फल लाये।" इतना कहने के बाद वह पुकार कर बोले, "जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले"।

9) शिष्यों ने उन से इस दृष्टान्त का अर्थ पूछा।

10) उन्होंने उन से कहा, "तुम लोगों को ईश्वर के राज्य का भेद जानने का वरदान मिला है। दूसरों को केवल दृष्टान्त मिले, जिससे वे देखते हुए भी नहीं देखें और सुनते हुए भी नहीं समझें।

11) "दृष्टान्त का अर्थ इस प्रकार है। ईश्वर का वचन बीज है।

12) रास्ते के किनारे गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सुनते हैं, परन्तु कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करें और मुक्ति प्राप्त कर लें, इसलिए शैतान आ कर उनके हृदय से वचन ले जाता है।

13) चट्टान पर गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करते हैं, किन्तु जिन में जड़ नहीं है। वे कुछ ही समय तक विश्वास करते हैं और संकट के समय विचलित हो जाते हैं।

14) काँटों में गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सुनते हैं, परन्तु आगे चल कर वे चिन्ता, धन-सम्पत्ति और जीवन का भोग-विलास से दब जाते हैं और परिपक्वता तक नहीं पहुँच पाते।

15) अच्छी भूमि पर गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सच्चे और निष्कपट हृदय से वचन सुन कर सुरक्षित रखते और अपने धैर्य के कारण फल लाते हैं।

📚 मनन-चिंतन

यीशु ने आज जो दृष्टांत सुनाया है, उसमे जितना बीज बोया गया वह पूरा का पूरा फल नहीं ला पाता। वास्तव में बीज का एक बड़ा हिस्सा बेकार चला जाता है। केवल कुछ सही मिट्टी पाता है और अच्छी फसल प्रदान करता है। इस बार मालवा क्षेत्र में सोयाबीन की फसल में अफलन की शिकायत बहुत आ रही है और मक्का की फसल में कीड़े लगने की शिकायत। फसल उगाना और अच्छी पैदावार पाना उतना आसान नहीं यह एक चुनौती है । बीज एक कमजोर व नाज़ुक चीज़ होती है; इसके खिलाफ काम करने वाले बहुत सारे तत्व अथवा ताकतें हो सकती हैं। वातावरण हमेशा बीज का समर्थन नहीं करता है। यही हमारे जीवन के बारे में कहा जा सकता है।

बपतिस्मा के समय हमारे दिल में जो विश्वास व वचन का बीज बोया जाता है, वह कमजोर होता है। जिस वातावरण में हम रहते हैं वह हमेशा हमारे विश्वास का समर्थन नहीं करता है। परीक्षा की घडी में हमारा विश्वास डाँवाँडोल हो सकता है। जीवन की चिंताएं और धन का सुख इसे दबा सकते हैं। हमें उस विश्वास के बीज को जो हमें प्राप्त हुआ है, पोषित करने की आवश्यकता है । हमें विश्वास और वचन रूपी बीज के लिए अच्छी मिट्टी प्रदान करने के की जरूरत है। ऐसी अच्छी मिट्टी का एक तत्व प्रार्थना है, हमारी अपनी व्यक्तिगत प्रार्थना और विश्वासियों के समुदाय की प्रार्थना दोनों।

आज का सुसमाचार वचन सुनने और उसे हृदय में उतारने के बारे में बतलाता है। प्रार्थना, विशेष रूप से वचन रुपी बीज को बढ़ने के लिए उचित वातावरण बनाती है। हम प्रार्थनामय जीवन बिताएं और वचन को बढ़ने के लिए उचित वातावरण प्रदान करें।

- फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

All the seed sown in Jesus' parable today does not bring the full fruit. In fact a large part of the seed goes waste. Only some of those which fell on the good soil provide good crops. This year, the soya bean and corn crop has failed in the Malwa region. Growing crops and getting good yields is not an easy task, it is a challenge. The seed is a vulnerable thing; there can be many elements or forces working against it. The environment does not always support seeds.

The same can be said about our lives. The seed of faith and the Word that is sown in our heart at the time of baptism is vulnerable. The environment in which we live does not always support our faith. Our faith in the hour of temptations can be shaken. The worries of life and the pleasures of wealth can suppress it. We need to nurture the seed of faith that we have received. We need to provide good soil for seeds of faith and the Word of God. One element of such good soil is prayer, both personal prayer and the community prayer.

Today's Gospel speaks about hearing the word and bringing it to heart. Prayer, very especially, creates an environment for the seed to grow. Let us lead a prayerful life and provide the right environment for Word to grow inside of us.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)


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Praise the Lord!