वर्ष - 2, पच्चीसहाँ सप्ताह, गुरुवार

📒 पहला पाठ : उपदेशक 1:2-11

2) उपदेशक कहता है, "व्यर्थ ही व्यर्थ; व्यर्थ ही व्यर्थ; सब कुछ व्यर्थ है।"

3) मनुष्य को इस पृथ्वी पर के अपने सारे परिश्रम से क्या लाभ?

4) एक पीढ़ी चली जाती है, दूसरी पीढ़ी आती है और पृथ्वी सदा के लिए बनी रहती है।

5) सूर्य उगता है और सूर्य अस्त हो जाता है। वह शीघ्र ही अपने उस स्थान पर जाता है, जहाँ से वह फिर उगता है।

6) हवा दक्षिण की ओर बहती है, वह उत्तर की ओर मुड़ती है; वह घूम-घूम कर पूरा चक्कर लगाती है।

7) सब नदियाँ समुद्र में गिरती हैं; किन्तु समुद्र नहीं भरता। और नदियाँ जिधर बहती है, उधर ही बहती रहती हैं।

8) यह सब इतना नीरस है, कि कोई भी इसका पूरा-पूरा वर्णन नहीं कर पाता। आँखें देखने से कभी तृप्त नहीं होतीं और कान सुनने से कभी नहीं भरते।

9) जो हो चुका है, वह फिर होगा। जो किया जा चुका है, वह फिर किया जायेगा। पृथ्वी भर में कोई भी बात नयी नहीं होती।

10) जिसके विषय में लोग कहते हैं, "देखों, यह तो नयी बात है" वह भी हमारे समय से बहुत पहले हो चुकी है।

11) पहली पीढ़ियों के लोगों की स्मृति मिट गयी है और आने वाली पीढ़ियों की भी स्मृति परवर्ती लोगों मे नहीं बनी रहेगी।


सुसमाचार :लूकस 9:7-9

7) राजा हेरोद उन सब बातों की चर्चा सुन कर असमंजस में पड़ गया, क्योंकि कुछ लोग कहते थे कि योहन मृतकों में से जी उठा है।

8) कुछ कहते थे कि एलियस प्रकट हुआ है और कुछ लोग कहते थे कि पुराने नबियों में से कोई जी उठा है।

9) हरोद ने कहा, "योहन का तो मैंने सिर कटवा दिया। फिर यह कौन है, जिसके विषय में ऐसी बातें सुनता हूँ?" और वह ईसा को देखने के लिए उत्सुक था।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में वर्णित हेरोद, हेरोद एंटिपस है, हेरोद महान का पुत्र है; वह येसु की सेवकाई दौरान गलीलिया में शासन करते थे । लूकस ने उन्हें येसु को लेकर जिज्ञासु व्यक्ति के रूप में उन्हें चित्रित किया है। उसने उन सभी बातों और कार्यों के बारे में सुना है जो येसु द्वारा किए जा रहे हैं और वह हैरान है। वह खुद से पूछता है, यह मैं किसके बारे में ऐसी खबरें सुन रहा हूं? ’वह येसु को देखने के लिए बेचैन है। येसु के बारे में इस तरह की जिज्ञासा और जानने की इच्छा, कुछ लोगों के लिए विश्वास की शुरुआत हो सकती है। फिर भी, यहां तक कि जो लोग जीवन भर विश्वासी रहे हैं, और यीशु के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, वे भी हैरान रहेंगे, और यह मौलिक सवाल पूछना जारी रखेंगे , 'यह कौन है?' येसु के रहस्य की गहराई, ऊंचाई चौड़ाई है वह अनंत है इस रहस्य को हम कभी पूरी तरह से समझ नहीं पाएंगे। पर एक विश्वासियों होने के नाते हम उन्हें आधी से अधिक जानने के की साथ करते रहें, प्रयत्न करते रहें, न केवल दिमाग से पर दिल व आत्मा से भी।

संत रिचर्ड की एक छोटी सी प्रार्थना मुझे याद आ रही है - Day by day, day by day, O, dear Lord, three things I pray: to see thee more clearly, love thee more dearly, follow thee more nearly, day by day. हे प्रभु ! दिन-ब-दिन मैं बस तीन चीज़ों के लिए हूँ: कि मैं तुझे और स्पष्टता से देख सकूँ; तुझे और गहराई से प्यार कर सकूँ , और करीबी से तेरा अनुसरण कर सकूँ।

- फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

The Herod, mentioned in today's gospel, is Herod Antipas, the son of Herod the Great; He ruled in Galilee during Jesus’ ministry. Luke portrays him as a curious person about Jesus. He has heard about all the works which were being done by Jesus and he was surprised. He asked himself, ‘who am I hearing such news about? 'He was restless to see Jesus. Such curiosity and desire to know about Jesus may be the beginning of faith for some people. Yet, even those who have been believers for whole life also will not be able to comprehend Jesus fully. They will continue to ask the fundamental question, 'Who is this?’

The depth, height and breadth of the mystery of Jesus is infinite, we will never fully grasp this mystery. But as believers, we keep the process of knowing Jesus on. We keep exploring the height, depth and width of Jesus. We search Him with all our mind, heart and soul.

I am remember a small prayer from Saint Richard - Day by day, day by day, O, dear Lord, three things I pray: to see You more clearly, love You more dearly, follow You more nearly,

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)


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Praise the Lord!