वर्ष - 2, पच्चीसहाँ सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ : उपदेशक 3:1-11

1) पृथ्वी पर हर बात का अपना वक्त और हर काम का अपना समय होता है:

2) प्रसव करने का समय और मरने का समय; रोपने का समय और पौधा उखाड़ने का समय;

3) मारने का समय और स्वस्थ करने का समय; गिराने का समय और उठाने का समय;

4) रोने का समय और हँसने का समय; विलाप करने का समय और नाचने का समय;

5) पत्थर बिखेरने का समय और पत्थर एकत्र करने का समय; आलिंगन करने का समय और आलिंगन नहीं करने का समय;

6) खोजने का समय और खोने का समय; अपने पास रखने का समय और फेंक देने का समय;

7 फाड़ने का समय और सीने का समय; चुप रहने का समय और बोलने का समय;

8) प्यार करने का समय और बैर करने का समय; युद्ध का समय और शान्ति का समय।

9) मनुष्य को अपने सारे परिश्रम से क्या लाभ ?

10) ईश्वर ने मनुष्यों को जो कार्य सौंपा है, मैंने उस पर विचार किया।

11) उसने सब कुछ उपयुक्त समय के अनुसार सुन्दर बनाया है। उसने मनुष्य को भूत और भविष्य का विवेक दिया है; किन्तु ईश्वर ने प्रारम्भ से अन्त तक जो कुछ किया, उसे मनुष्य कभी नहीं समझ सका।


सुसमाचार :लूकस 9:18-22

18) ईसा किसी दिन एकान्त में प्रार्थना कर रहे थे और उनके शिष्य उनके साथ थे। ईसा ने उन से पूछा, "मैं कौन हूँ, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?"

19) उन्होंने उत्तर दिया, "योहन बपतिस्ता; कुछ लोग कहतें-एलियस; और कुछ लोग कहते हैं-प्राचीन नबियों में से कोई पुनर्जीवित हो गया है"।

20) ईसा ने उन से कहा, "और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?" पेत्रुस ने उत्तर दिया, "ईश्वर के मसीह"।

21) उन्होंने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि वे यह बात किसी को भी नहीं बतायें।

22) उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "मानव पुत्र को बहुत दुःख उठाना होगा; नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों द्वारा ठुकराया जाना, मार डाला जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा"।

📚 मनन-चिंतन

किसी भी अन्य सुसमाचार लेखक की तुलना में, संत लूकस येसु को एक प्रार्थनामय व्यक्ति के रूप में अधिक चित्रित करता है, जिसने नियमित रूप से प्रार्थना की, विशेष रूप से अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में। आज के सुसमाचार की शुरुआत में हम येसु को प्रार्थना में पाते हैं। प्रभु येसु ने हमें प्रार्थना करने की न केवल हमें शिक्षा दी पर उन्होंने हमें अपने प्रार्थनामय जीवन द्वारा यह बतलाया कि प्रार्थना के बिना हमें हमारे जीवन में कुछ भी कार्य नहीं करना चाहिए। वे ईश पुत्र थे परन्तु फिर भी उन्होंने बिना प्रार्थना के कुछ भी काम नहीं किया: चाहे वह उनकी सेवकाई हो, प्रेरितों को चुनना हो, कोई चिन्ह अथवा चमत्कार करना हो, दुःख भोगना हो या फिर क्रूस पर मरना हर बार उन्होंने प्रार्थना की। प्रार्थना के बाद किये हर काम में प्रभु येसु को विजय मिली। चाहे वह कोई निर्णय हो, कोई कार्य हो, कोई चमत्कार हो या फिर उनकी मौर ही हो वे हर बार विजय ही रहे।

प्रभु येसु, प्रार्थना की इसी ताकत से हमें रूबरू कराते हैं और हमारा आह्वान करते हैं कि हम हमारे जीवन में उनकी ही तरह प्रार्थना को अपना हथियार और जीवन की ताकत बना लें और प्रार्थना के बिना कुछ की भी शुरुआत न करें। तब हम चीज़ों को बदलते हुए देखेंगे, हमारे जीवन में ईश्वर के सामर्थ्य को देखेंगे और प्रार्थना में ईश्वर हमारे जीवन की अगुवाई अपनी राहों पर करेंगे। आमेन

- फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

Compared to any other gospel writer, St. Luke portrays Jesus as more of a prayerful person who prayed regularly, especially at key moments of his life. At the beginning of today's Gospel we find Jesus in prayer. Lord Jesus not only prayed, but he taught us through his prayerful life that without prayer we should not do anything in our life. He was the son of God, but yet he did nothing without prayer: whether it was his ministry, choosing the Apostles, performing signs or miracles, suffering or dying on the cross each time He prayed. Jesus got victory in everything he did after praying; whether it is a decision, a task, or a miracle.

Jesus, makes us aware of the power of prayer, and invites us to make pray our spiritual weapon and strength of life and do not start anything without prayer. Then we will see things changing, we will see the power of God in our life and in prayer God will lead our life in our own way. Amen.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!