वर्ष - 2, सत्ताईसवाँ सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ :गलातियों 1:13-24

13) आप लोगों ने सुना होगा कि जब मैं यहूदी धर्म का अनुयायी था, तो मेरा आचरण कैसा था। मैं ईश्वर की कलीसिया पर घोर अत्याचार और उसके सर्वनाश का प्रयत्न करता था।

14) मैं अपने पूर्वजों की परम्परओं का कट्टर समर्थक था और अपने समय के बहुत-से यहूदियों की अपेक्षा अपने राष्ट्रीय धर्म के पालन में अधिक उत्साह दिखलाता था।

15) किन्तु ईश्वर ने मुझे माता के गर्भ से ही अलग कर लिया और अपने अनुग्रह से बुलाया था;

16) इसलिए उसने मुझ पर- और मेरे द्वारा- अपने पुत्र को प्रकट करने का निश्चय किया, जिससे मैं गैर-यहूदियों में उसके पुत्र के सुसमाचार का प्रचार करूँ। इसके बाद मैंने किसी से परामर्श नहीं किया।

17) और जो मुझ से पहले प्रेरित थे, उन से मिलने के लिए मैं येरूसालेम नहीं गया; बल्कि मैं तुरन्त अरब देश गया और बाद में दमिश्क लौटा।

18) मैं तीन वर्ष बाद केफ़स से मिलने येरूसालेम गया और उनके साथ पंद्रह दिन रहा।

19) प्रभु के भाई याकूब को छोड़ कर मेरी भेंट अन्य प्रेरितों में किसी से नहीं हुई।

20) ईश्वर मेरा साक्षी है कि मैंने आप को जो लिखा है, वह एकदम सच है।

21) इसके बाद मैं सीरिया और किलिकिया प्रदेश गया।

22) उस समय यहूदिया की मसीही कलीसियाएं मुझे व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती थीं।

23) उन्होंने इतना ही सुना था कि जो व्यक्ति हम पर अत्याचार करता था, वह अब उस विश्वास का प्रचार कर रहा है, जिसका वह सर्वनाश करने का प्रयत्न करता था

24) और वे मेरे कारण ईश्वर की स्तुति करती थीं।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 10:38-42

38) ईसा यात्रा करते-करते एक गाँव आये और मरथा नामक महिला ने अपने यहाँ उनका स्वागत किया।

39) उसके मरियम नामक एक बहन थी, जो प्रभु के चरणों में बैठ कर उनकी शिक्षा सुनती रही।

40) परन्तु मरथा सेवा-सत्कार के अनेक कार्यों में व्यस्त थी। उसने पास आ कर कहा, ’’प्रभु! क्या आप यह ठीक समझते हैं कि मेरी बहन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मुझ पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि वह मेरी सहायता करे।’’

41) प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ’’मरथा! मरथा! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और व्यस्त हो;

42) फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा।’’

📚 मनन-चिंतन

ईश्वर हमसे प्यार करता है। जैसा कि संत पौलुस आज का पहला पाठ में कहता है, "उसने मुझ पर - और मेरे द्वारा - अपने पुत्र को प्रकट करने का निश्चय किया, जिससे मैं गैर यहूदियों में उसके पुत्र के सुसमाचार का प्रचार करूं"। उसने स्वयं प्रभु येसु से सुसमाचार का संदेश सीखा; किसी भी मानव स्रोत से नहीं। ईश्वर अपनी उदारता में अपने आपको हमारे सामने प्रकट करता है और चाहता है कि हम सभी लोगों के साथ सुसमाचार का आनंद का साझा करें।

आज का सुसमाचार का पाठ येसु के द्वारा मरथा और मरियम कों उनके घर में भेंट करने के बारे में है। मारथा ने येसु का उनके घर में स्वागत किया। मरियम ने प्रभु के चरणों में बैठकर उनकी शिक्षा सुनती रही। येसु ने मरथा से कहा, "तुम बहुत सी बातों के विषय में चिंतित और व्यस्त हो; फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सबसे उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा"।

येसु के साथ व्यक्तिगत प्रार्थना में समय बिताने से और उनकी बात मौन-साधना और पवित्र वचन में सुनने से ही कोई येसु के साथ अपने सम्बन्ध में बढ़ सकता है। प्रार्थना में येसु के साथ समय बिताने से ही आध्यात्मिक जीवन का विकास होता है। प्रार्थना में प्रभु के साथ पहले समय बिताए बिना सुसमाचार की सच्ची घोषणा नहीं हो सकती है - येसु के संग रहना, उनकी शिक्षा सुनना, और सुसमाचार की घोषणा करना।

हम अपने आपसे पूछें: क्या मेरा प्रभु येसु के साथ व्यक्तिगत संबंध है? प्रभु से मेरा सम्बन्ध में बढ़ने के लिए मुझे क्या करना चाहिए ? क्या मैं इसे दैनिक व्यक्तिगत प्रार्थना और पवित्र वचन के पढ़न के द्वारा पोषण करता हूँ?

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

God loves us. As Paul says in today’s reading, “God revealed his son to me, so that I might preach the good news about him to the pagans.” He learned the truth of the gospel from the Lord Jesus himself; not from any human source. In his goodness God reveals himself to us and wants us to share the joy of the gospel with all people.

The gospel passage is about the visit of Jesus to the house of Martha and Mary. Martha welcomed Jesus into their house. Mary sat down at the Lord’s feet and listened to him speaking. About his Jesus said, “Mary has chosen the better part; and it is not to be taken from her”.

It is by spending time with Jesus in personal prayer and listening to him - in silence as well as in the Scriptures - that one grows in relationship with him. There can be no spiritual life without time spent with Jesus in prayer. And there can be no proclamation of the gospel without first spending time with the Lord in prayer. Spend time with Jesus, listen to him, and then proclaim the Gospel to others.

Let us ask ourselves: Do I have a personal relationship with the Lord? What must I do to grow in my relationship with him? Do I nourish it with daily personal prayer and reading of the Holy Scripture?

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)


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Praise the Lord!