वर्ष - 2, सत्ताईसवाँ सप्ताह, बुधवार

पहला पाठ : गलातियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:1-2,7-14

1) इसके चैदह वर्ष बाद मैं बरनाबस के साथ फिर येरुसालेम गया। मैं तीतुस को भी अपने साथ ले गया।

2) ईश्वर ने मुझ पर प्रकट किया था कि मुझे जाना चाहिए मैंने उन लोगों के सामने अर्थात प्रतिष्ठित व्यक्तियों के सामने एकान्त में वह सुसमाचार प्रस्तुत किया, जिसका प्रचार मैं गैर-यहूदियों के बीच करता हूँ, जिससे ऐसा न हो कि मैं व्यर्थ परिश्रम करूँ या कर चुका होऊँ।

7) उल्टे, उन्होंने मान लिया कि मुझे उसी तरह गैर-यहूदियों में सुसमाचार का प्रचार-कार्य सौंपा गया था, जिस तरह पेत्रुस को यहूदियों में;

8) क्योंकि जिस ईश्वर ने, पेत्रुस को यहूदियों का धर्मप्रचारक बनने की शक्ति प्रदान की थी, उसी ने मुझे गै़र-यहूदियों का धर्मप्रचारक बनने की शक्ति प्रदान की थी।

9) जो व्यक्ति कलीसिया के स्तम्भ समझे जाते थे- अर्थात् याकूब, केफ़स और योहन-उन्होंने कृपा का वह वरदान पहचाना, जो मुझे मिला है। उन्होंने मुझे और बरनाबस को अपने सहयोगी समझ कर हम से हाथ मिलाया। वे इस बात के लिए सहमत हुए कि हम गैर-यहूदियों के पास जायें और वे यहूदियों के पास।

10) उनका आग्रह इतना ही था कि हमें दरिद्रों की सुध लेनी चाहिए और इसके लिए मैं स्वयं उत्सुक था।

11) जब कैफ़स अन्ताखिया आये, तो मैंने उनके मुँह पर उनका विरोध किया, क्योंकि वह गलत रास्ते पर थे।

12) वह पहले गैर-यहूदियों के साथ खाते थे, किन्तु जब याकूब के यहाँ से कुछ व्यक्ति आये, तो यहूदियों के भय से गैर-यहूदियों से किनारा करने और उन से अलग रहने लगे।

13) दूसरे यहूदी भाइयों ने भी इस प्रकार का ढोंग रचा, यहाँ तक कि बरनाबस भी उनके ढोंग के कारण भटक गये।

14) जब मैंने देखा कि उनका आचरण सुसमाचार के सत्य के अनुकूल नहीं है, तो मैंने सबों के सामने कैफ़स से यह कहा, ’’यदि आप, जो जन्म से यहूदी हैं, यहूदी रिवाज के अनुसार नहीं, बल्कि गैर-यहूदी रिवाज के अनुसार जीते है, तो आप गैर-यहूदियों को यहूदी रिवाज अपनाने के लिए कैसे बाध्य कर सकते हैं?”

सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 11:1-4

1) एक दिन ईसा किसी स्थान पर प्रार्थना कर रहे थे। प्रार्थना समाप्त होने पर उनके एक शिष्य ने उन से कहा, ‘‘प्रभु! हमें प्रार्थना करना सिखाइए, जैसे योहन ने भी अपने शिष्यों को सिखाया’’।

2) ईसा ने उन से कहा, ’’इस प्रकार प्रार्थना किया करोः पिता! तेरा नाम पवित्र माना जाये। तेरा राज्य आये।

3) हमें प्रतिदिन हमारा दैनिक आहार दिया कर।

4) हमारे पाप क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने सब अपराधियों को क्षमा करते हैं और हमें परीक्षा में न डाल।’’


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