वर्ष - 2, अट्ठाईसवँ सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 1:11-14

11 (11-12) ईश्वर सब बातों में अपने मन की योजना पूरी करता है। उसके अनुसार उसने निर्धारित किया है कि हम (यहूदी) मसीह द्वारा बुलाये जायें और हम लोगों के कारण उसकी महिमा की स्तुति हो। हम लोगों ने तो सब से पहले मसीह पर भरोसा रखा था।

13) आप लोगों ने भी सत्य का वचन, अपनी मुक्ति का सुसमाचार, सुनने के बाद मसीह में विश्वास किया है और आप पर उस पवित्र आत्मा की मुहर लग गयी, जिसकी प्रतिज्ञा की गयी थी।

14) वह हमारी विरासत का आश्वासन है और ईश्वर की प्रजा की मुक्ति की तैयारी, जिससे उसकी महिमा की स्तुति हो।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 12:1-7

1) उस समय भीड़़ इतनी बढ़ गयी थी कि लोग एक दूसरे को कुचल रहे थे। ईसा मुख्य रूप से अपने शिष्यों से यह कहने लगे, ’’फ़रीसियों के कपटरूपी ख़मीर से सावधान रहो।

2) ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जायेगा और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जायेगा।

3) तुमने जो अँधेरे में कहा है, वह उजाले में सुना जायेगा और तुमने जो एकान्त में फुसफुसा कर कहा है, वह पुकार-पुकार कर दुहराया जायेगा।

4) ’’मैं तुम, अपने मित्रों से कहता हूँ-जो लोग शरीर को मार डालते हैं, परन्तु उसके बाद और कुछ नहीं कर सकते, उन से नहीं डरो।

5) मैं तुम्हें बताता हूँ कि किस से डरना चाहिए। उस से डरो, जिसका मारने के बाद नरक में डालने का अधिकार है। हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, उसी से डरो।

6) ’’क्या दो पैसे में पाँच गोरैया नहीं बिकतीं? फिर भी ईश्वर उन में एक को भी नहीं भुलाता है।

7) हाँ, तुम्हारे सिर का बाल-बाल गिना हुआ है। इसलिए नहीं डरो। तुम बहुतेरी गौरैयों से बढ़ कर हो।

📚 मनन-चिंतन

आज का पहला पाठ जो एफेसियों के नाम पत्र से लिया गया है, बताता है कि ईश्वर ने हमें अपने प्रिय लोगों के रूप में चुना है जिससे हम उन पर भरोसा कर सकें। ईश्वर ने हम लोग पर, जो उनका सुसमाचार का संदेश सुना है और विश्वास किया है, पवित्र आत्मा की मुहर लगाई है। इसका मतलब है कि उसने हमें अपना बना लिया है। यह बात आज का अनुवाक्य में प्रतिबिंबित है - "धन्य हैं वे लोग जिन्हें प्रभु ने अपनई प्रजा बना लिया हैं।"

आज का सुसमाचार में येसु इस महान दिव्य प्रेम के बारे में विस्तार से बताते है और कहते है कि ईश्वर का संरक्षण और दिव्या रक्षा हमेशा उनके लोगों के लिए उपलब्ध है। इतना ही नहीं, ईश्वर आकाश के पक्षियों का भी, जिन्हें हम तुच्छ समझते हैं, ध्यान रखते है। ईश्वर हम में से हर एक को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं; इतना ही नहीं वह हमारे सिर के बालों की संख्या भी जानता है! इतना गहरा ज्ञान और प्रेमपूर्ण संरक्षण केवल ईश्वर के लिए संभव है। इसलिए येसु कहते हैं, डरिये नहीं!

क्या आपको ईश्वर की प्यारी संतान होने का एहसास है? क्या आप अपने जीवन के बारे में चिंतित और परेशान हैं? याद रखें, प्रभु जो गौरैयों की भी परवाह करते हैं, वे ज़रूर आपकी अच्छी देखभाल करेंगे।

आज कलीसिया संत मार्ग्रेट मेरी अलाकोक का पर्व मनाती है, जिसे ईश्वर ने येसु के पवित्र हृदय के प्रेम को प्रकट किया था। येसु के पवित्र हृदय की श्रद्धापूर्वक वंदना करने वाले सभी लोगों को दी जाने वाली सुरक्षा ईश्वर का अनंत प्रेम और दया की एक और अभिव्यक्ति है। आज के पाठ और त्यौहार हमें याद दिलाती है कि हम अपने आपको आत्मविश्वास के साथ प्रभु को सौंपें।

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

The first reading from Ephesians tells us that God has chosen us to be his people who put their trust in him. We who have heard the message of the gospel and have believed it have been stamped with the seal of the Holy Spirit. That means, God has made us his own. This theme is echoed in the responsorial psalm which says, happy the people the Lord has chosen as his own.

Jesus elaborates upon this great divine love and says that God’s protection and providence is always available for his people. God takes care of even the insignificant sparrows. God knows each one of us personally as to know even the number of hair on our head! Such deep knowledge and loving care is possible only for God. Therefore, Jesus says, there is no need to be afraid.

Do you realize the great vocation that God has given you as God’s beloved child? Do you get anxious and worried about your life? Remember, the Lord who cares for even the sparrows, will take good care of you.

Today the Church celebrates the feast of St. Margaret Mary Alacoque, to whom God revealed the love of the Sacred Heart of Jesus. The protection offered to all those who venerate the Sacred Heart of Jesus is another expression of this divine love and providence. Entrust yourself to the Lord. Today’s readings and the feast remind us to entrust ourselves confidently to the Lord.

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)


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Praise the Lord!