वर्ष - 2, अट्ठाईसवँ सप्ताह, शनिवार

📒 पहला पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 1:15-23

15) मैंने प्रभु ईसा में आप लोगों के विश्वास और सभी सन्तों के प्रति आपके भ्रातृप्रेम के विषय में सुना है। मैं आप लोगों के कारण ईश्वर को निरन्तर धन्यवाद देता

16) और अपनी प्रार्थनाओं में आप लोगों का स्मरण करता रहता हूँ।

17) महिमामय पिता, हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर, आप लोगों को प्रज्ञा तथा आध्यात्मिक दृष्टि प्रदान करे, जिससे आप उसे सचमुच जान जायें।

18) वह आप लोगों के मन की आँखों को ज्योति प्रदान करे, जिससे आप यह देख सकें कि उसके द्वारा बुलाये जाने के कारण आप लोगों की आशा कितनी महान् है और सन्तों के साथ आप लोगों को जो विरासत मिली है, वह कितनी वैभवपूर्ण तथा महिमामय है,

19) और हम विश्वासियों के कल्याण के लिए सक्रिय रहने वाले ईश्वर का वही सामर्थ्य कितना अपार है।

20) ईश्वर ने मसीह वही सामर्थ्य प्रदर्शित किया, जब उसने मृतकों में से उन्हें पुनर्जीवित किया और स्वर्ग में अपने दाहिने बैठाया।

21) स्वर्ग में कितने ही प्राणी क्यों न हों और उनका नाम कितना ही महान् क्यों न हो, उन सब के ऊपर ईश्वर ने इस युग के लिए और आने वाले युग के लिए मसीह को स्थान दिया।

22) उसने सब कुछ मसीह के पैरों तले डाल दिया और उन को सब कुछ पर अधिकर दे कर कलीसिया का शीर्ष नियुक्त किया।

23) कलीसिया मसीह का शरीर और उनकी परिपूर्णता है। मसीह सब कुछ, सब तरह से, पूर्णता तक पहुँचाते हैं।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 12:8-12

8) ’’मैं तुम से कहता हूँ, जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मानव पुत्र भी ईश्वर के दूतों के सामने स्वीकार करेगा।

9) परन्तु जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, वह ईश्वर के दूतों के सामने अस्वीकार किया जायेगा।

10) ’’जो मानव पुत्र के विरुद्ध कुछ कहेगा, उसे क्षमा मिल जायेगी, परन्तु पवित्र आत्मा की निन्दा करने वाले को क्षमा नहीं मिलेगी।

11) ’’जब वे तुम्हें सभागृहों, न्यायाधीशों और शासकों के सामने खींच ले जायेंगे, तो यह चिन्ता न करो कि हम कैसे बोलेंगे और अपनी ओर से क्या कहेंगे;

12) क्योंकि उस घड़ी पवित्र आत्मा तुम्हें सिखायेगा कि तुम्हें क्या-क्या कहना चाहिए।’’

📚 मनन-चिंतन

एफेसियों के लिए संत पौलुस की प्रार्थना जो हम आज का पहला पाठ में सुनते हैं उनके लिए उनका प्रेम का एक सुंदर अभिव्यक्ति है और साथ ही उनके लिए ईश्वर का आशीर्वाद की कामना भी है। वह ज्ञान और आध्यात्मिक अंतरदृष्टी के लिए प्रार्थना करता है ताकि वे ईश्वर को पूरी तरह से जान सकें। वह मन की आँखों की ज्योति के लिए प्रार्थना करता है ताकि वे येसु मसीह के माध्यम से ईश्वर में प्रतिज्ञात आशा का आशीर्वाद देख सकें। येसु न केवल सारी सृष्टि का प्रभु और शासक है, बल्कि वह कलीसिया का प्रमुख भी है, जो उसका शरीर है।

येसु कलीसिया की, जो अपने शरीर है, परवाह करता है। कल के सुसमाचार की शिक्षा के समान प्रभु येसु आज का सुसमाचार में भी कहता हैं कि डरने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि ईश्वर हमें हमारी सहायता करने के लिए पवित्र आत्मा देगा। हमें निडर होकर येसु में अपना विश्वास व्यक्त करन है। निश्चित रूप से प्रभु भक्तों का विरोध, और यहां तक कि उत्पीड़न भी होगा। लेकिन पवित्र आत्मा उन लोगों की सहायता करेगा जो ईश्वर में भरोसा करते हैं। ऐसे अवसर में चिंतित होना स्वाभाविक है। परंतु येसु हमें ढाड़स बांधाते हुए कहता है, “यह चिंता न करो कि हम कैसे बोलेंगे और अपनी ओर से क्या कहेंगे; क्योंकि उन घड़ी पवित्र आत्मा तुम्हें सिखाएगा कि तुम्हें क्या-क्या कहना चाहिए।”

सोचिये, हमारे जीवन में पवित्र आत्मा की दिव्य सहायता का होना कितना सौभाग्य की बात है! क्या आप अपने विश्वास को व्यक्त करने के लिए सही शब्द खोजने के लिए संघर्ष करते हैं? अपने आप को पवित्र आत्मा को आत्मसमर्पण कीजिये और वह निश्चित रूप से आपका मार्गदर्शन और आपकी सहायता करेगा।

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

St. Paul’s prayer for the Ephesians is a beautiful expression of his concern for them as well as God’s promised blessings for them. He prays for a spirit of wisdom and perception of God’s revelation so that they may know Him fully. He prays for enlightenment of the mind so that they can see blessings of hope in God through Jesus Christ. Jesus is not only the Lord and ruler of the whole of creation but he is also the head of the Church, which is his body.

Jesus cares for his body, the Church. In continuation of yesterday’s gospel passage, Jesus says, that there is no need to be afraid because God will give us the Holy Spirit to assist us. We are called to fearlessly declare our faith in Jesus. There will certainly be resistance, opposition and even persecution. But the Holy Spirit will assist those who trust in God. “Do not worry about how to defend yourselves or what to say, because when the time comes, the Holy Spirit will teach you what you must say.”

What a privilege it is to have the divine assistance of the Holy Spirit in our lives! Do you struggle to find the right words to express your faith? Surrender yourself to the Holy Spirit and he will surely guide you and assist you.

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)


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Praise the Lord!