वर्ष - 2, उन्तीसवाँ सप्ताह, सोमवार

📒 पहला पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:1-10

1) आप लोग अपने अपराधों और पापों के कारण मर गये थे;

2) क्योंकि आपका आचरण पहले इस संसार की रीति के अनुकूल, आकाश में विचरने वाले अपदूतों के नायक के अनुकूल था, उस आत्मा के अनुकूल था, जो अब तक ईश्वर के विरोधियों में क्रियाशील है।

3) हम सभी पहले उन विरोधियों में सम्मिलित थे, जब हम अपनी वासनाओं के वशीभूत हो कर अपने शरीर और मन की वासनाओं को तृप्त करते थे। हम दूसरों की तरह अपने स्वभाव के कारण ईश्वर के कोप के पात्र थे।

4) परन्तु ईश्वर की दया अपार है। हम अपने पापों के कारण मर गये थे, किन्तु उसने हमें इतना प्यार किया

5) कि उसने हमें मसीह के साथ जीवन प्रदान किया। उसकी कृपा ने आप लोगों का उद्धार किया।

6) उसने ईसा मसीह के द्वारा हम लोगों को पुनर्जीवित किया और स्वर्ग में बैठाया।

7) उसने ईसा मसीह में जो दयालुता दिखायी, उसके द्वारा उसने आगामी युगों के लिए अपने अनुग्रह की असीम समृद्धि को प्रदर्शित किया।

8) उसकी कृपा ने विश्वास द्वारा आप लोगों का उद्धार किया है। यह आपके किसी पुण्य का फल नहीं है। यह तो ईश्वर का वरदान है।

9) यह आपके किसी कर्म का पुरस्कार नहीं -कहीं ऐसा न हो कि कोई उस पर गर्व करे।

10) ईश्वर ने हमारी रचना की। उसने ईसा मसीह द्वारा हमारी सृष्टि की, जिससे हम पुण्य के कार्य करते रहें और उसी मार्ग पर चलते रहें, जिसे ईश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 12:13-21

13) भीड़ में से किसी ने ईसा से कहा, ’’गुरूवर! मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे लिए पैतृक सम्पत्ति का बँटवारा कर दें’’।

14) उन्होंने उसे उत्तर दिया, ’’भाई! किसने मुझे तुम्हारा पंच या बँटवारा करने वाला नियुक्त किया?’’

15) तब ईसा ने लोगों से कहा, ’’सावधान रहो और हर प्रकार के लोभ से बचे रहो; क्योंकि किसी के पास कितनी ही सम्पत्ति क्यों न हो, उस सम्पत्ति से उसके जीवन की रक्षा नहीं होती’’।

16) फिर ईसा ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया, ’’किसी धनवान् की ज़मीन में बहुत फ़सल हुई थी।

17) वह अपने मन में इस प्रकार विचार करता रहा, ’मैं क्या करूँ? मेरे यहाँ जगह नहीं रही, जहाँ अपनी फ़सल रख दूँ।

18) तब उसने कहा, ’मैं यह करूँगा। अपने भण्डार तोड़ कर उन से और बड़े भण्डार बनवाऊँगा, उन में अपनी सारी उपज और अपना माल इकट्ठा करूँगा

19) और अपनी आत्मा से कहूँगा-भाई! तुम्हारे पास बरसों के लिए बहुत-सा माल इकट्ठा है, इसलिए विश्राम करो, खाओ-पिओ और मौज उड़ाओ।’

20) परन्तु ईश्वर ने उस से कहा, ’मूर्ख! इसी रात तेरे प्राण तुझ से ले लिये जायेंगे और तूने जो इकट्ठा किया है, वह अब किसका ह़ोगा?’

21) यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं है।’’

📚 मनन-चिंतन

हम सभी अपने पापों और अपराधों के कारण मर चुके थे जब हम इस दुनिया के मार्ग पर चल रहे थे। जब हम कामुक जीवन जी रहे थे, पूरी तरह से अपनी शारीरिक इच्छाओं और अपने स्वयं के विचार से से शासित थे तो हम सभी मर चुके थे। लेकिन परमेश्वर ने हमें इतना प्यार किया कि उसने हमें मसीह के साथ जीवन में लाया। ईश्वर हमारे प्रति प्रेममय, दयालु और उदार है; वह हमें अपनी कृपा से बचाते हैं।

हमें आज का अनुवाक्य में इस सत्य की याद दिलाई जाती है - "उसने हमें बनाया, हम उसके हैं"। ऐसे प्यार के लिए हमें ईश्वर का शुक्रिया अदा करना चाहिए और उनके नाम को धन्य करना चाहिए।

आज का सुसमाचार का दृष्टान्त एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है जिसने अपने धन पर भरोसा किया। उसने खुद को मूर्ख साबित किया क्योंकि उसके धन उसकी आत्मा को नहीं बचा सके। हमें एक बार फिर याद दिलाया जाता है कि हम ईश्वर की कृपा से मुक्ति पाते हैं जो कि ईश्वर की ओर से एक उपहार है। ईश्वर हमें अपने वरदान और समृद्धि देता है क्योंकि वह हमसे प्यार करता है। लेकिन जब हम धन पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं और ईश्वर को, जो सभी आशीर्वादों के दाता है, भूल जाते हैं, तो हम कयामत और मौत के रास्ते पर हैं।

आप किसमें भरोसा करते हैं और गर्व करते हैं - ईश्वर की कृपा या आपके भौतिक संपत्ति में? हमें संत पौलुस के साथ यह कहना चाहिए, "आपकी कृपा मेरे लिए पर्याप्त है"।

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

We were all dead because of our sins and crimes in which we used to live when we were following the way of this world. When we were living sensual lives, ruled entirely by our own physical desires and our own idea we were all dead. But God loved us so much that he brought us to life with Christ. God is loving, merciful and generous towards us. We are saved by grace.

We are reminded of this truth in today’s Response – “He made us, we belong to him”. For such love we must thank God and bless his name.

The gospel story is about a man who trusted in his riches to save him. He proved himself to be a fool because his riches could not save his soul. We are once again reminded that we are saved by grace which is a gift from God. God gives us his gifts and prosperity because he loves us. But when we focus our attention on the riches and forget God - the Giver of all blessings - then we are on the way to doom and death.

In what do you rely and glory in - in the grace of God or in your material possessions? We must be able to say with St. Paul, “Your grace is enough for me”.

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)


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Praise the Lord!