वर्ष - 2, उन्तीसवाँ सप्ताह, बुधवार

📒 पहला पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 3:2-12

2) आप लोगों ने अवश्य सुना होगा कि ईश्वर ने आप लोगों की भलाई के लिए मुझे अपनी कृपा का सेवा-कार्य सौंपा है।

3) उसने मुझ पर वह रहस्य प्रकट किया है, जिसका मैं संक्षिप्त विवरण ऊपर दे चुका हूँ।

4) उसे पढ़ कर आप लोग जान सकते हैं कि मैं मसीह का रहस्य समझता हूँ।

5) वह रहस्य पिछली पीढि़यों में मनुष्य को नहीं बताया गया था और अब आत्मा के द्वारा उसके पवित्र प्रेरितों और नबियों का प्रकट किया गया है।

6) वह रहस्य यह है कि सुसमाचार के द्वारा यहूदियों के साथ गैर-यहूदी एक ही विरासत के अधिकारी हैं, एक ही शरीर के अंग हैं और ईसा मसीह-विषयक प्रतिज्ञा के सहभागी हैं।

7) ईश्वर ने अपने सामर्थ्य के अधिकार से मुझे यह कृपा प्रदान की कि मैं उस सुसमाचार का सेवक बनूँ।

8) मुझे, जो सतों में सब से छोटा हूँ, यह वरदान मिला है कि मैं गैर-यहूदियों को मसीह की अपार कृपानिधि का सुसमाचार सुनाऊँ

9) और मुक्ति-विधान का वह रहस्य पूर्ण रूप से प्रकट करूँ, जिसे समस्त विश्व के सृष्टिकर्ता ने अब तक गुप्त रखा था।

10) इस तरह, कलीसिया के माध्यम से स्वर्ग के दूत ईश्वर की बहुविध प्रज्ञा का ज्ञान प्राप्त करेंगे।

11) ईश्वर ने अनन्त काल से जो उद्देश्य अपने मन में रखा, उसने उसे हमारे प्रभु ईसा मसीह द्वारा पूरा किया।

12) हम मसीह में विश्वास करते हैं और इस कारण हम पूरे भरोसे के साथ निर्भय हो कर ईश्वर के पास जाते हैं।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 12:39-48

39) यह अच्छी तरह समझ लो-यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर किस घड़ी आयेगा, तो वह अपने घर में सेंध लगने नहीं देता।

40) तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा।’’

41) पेत्रुस ने उन से कहा, ’’प्रभु! क्या आप यह दृष्टान्त हमारे लिए कहते हैं या सबों के लिए?’’

42) प्रभु ने कहा, ’’कौन ऐसा ईमानदार और बुद्धिमान् कारिन्दा है, जिसे उसका स्वामी अपने नौकर-चाकरों पर नियुक्त करेगा ताकि वह समय पर उन्हें रसद बाँटा करे?

43) धन्य हैं वह सेवक, जिसका स्वामी आने पर उसे ऐसा करता हुआ पायेगा!

44) मैं तुम से यह कहता हूँ, वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर नियुक्त करेगा।

45) परन्तु यदि वह सेवक अपने मन में कहे, ’मेरा स्वामी आने में देर करता है’ और वह दासदासियों को पीटने, खाने-पीने और नशेबाजी करने लगे,

46) तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आयेगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा और ऐसी घड़ी जिसे वह जान नहीं पायेगा। तब स्वामी उसे कोड़े लगवायेगा और विश्वासघातियों का दण्ड देगा।

47) ’’अपने स्वामी की इच्छा जान कर भी जिस सेवक ने कुछ तैयार नहीं किया और न उसकी इच्छा के अनुसार काम किया, वह बहुत मार खायेगा।

48) जिसने अनजाने ही मार खाने का काम किया, वह थोड़ी मार खायेगा। जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत माँगा जायेगा और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से अधिक माँगा जायेगा।

📚 मनन-चिंतन

ईश्वर हमसे प्यार करता है। इसलिए उसने येसु मसीह के माध्यम से हमें अपना ज्ञान प्रदान किया है। दिव्य आशीर्वाद का अनुभव करने के लिए हम येसु मसीह में ईश्वर की अनंत योजना का हिस्सा हैं। इसलिए हम पूरे विश्वास और भरोसे के साथ ईश्वर के पास जाने के आत्मविश्वास रखते हैं।

यह हमें आज अनुवाक्य में भजनहार के साथ प्रार्थना करने के लिए प्रेरित करता है, "तुम आनंदित होकर मुक्ति के स्रोत में जल भरोगे"। सचमुच, ईश्वर मेरा उद्धारकर्ता है, मैं उन पर भरोसा रखता हूँ, मुझे कोई भय नहीं होगा।

ज़िम्मेदारी विश्वसनीयता के बारे में कल के सुसमाचार की चर्चा जारी रखते हुए यीशु कहते हैं, जब किसी व्यक्ति को बहुत कुछ दिया है, तो उस व्यक्ति से बहुत बड़ी उम्मीद की जाएगी। इसका मतलब है, ईश्वर का आशीर्वाद जितना बड़ा होगा, दूसरों के प्रति जिम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी होगी। ईश्वर हमसे उदारता से प्यार करते हैं ताकि हम दूसरों के प्रति उदार हो सकें, स्वार्थी नहीं।

अपने जीवन के अनुग्रहों को गिनें और देखें कि ईश्वर आपसे कितना प्यार करते हैं। अपने आप से पूछें, "क्या मैं विश्वसनीय या अविश्वसनीय, मेहनती या आलसी, उदार या स्वार्थी हूं? आइए हम प्रार्थना करें कि हम अपने जीवन में आभारी और उदार बने रहें।

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

God loves us. Therefore he has made known his wisdom to us through Jesus Christ. And we are part of God’s plan in Jesus Christ to experience the divine blessings. Therefore we are bold enough to approach God in complete confidence, through our faith in him.

This is what prompts us to pray with the psalmist in the Response, “With joy you will draw water from the wells of salvation”. Truly, God is my salvation, I trust, I shall not fear.

Continuing with yesterday’s gospel about responsibility Jesus says, when a person has had a great deal given to him/her, a great deal will be expected of that person. That means, the greater the blessings of God, the greater the responsibility towards others. God loves us generously so that we can be generous towards others, not selfish.

Count your blessings and see how much God loves you. Ask yourself’ “Am I reliable or unreliable, hardworking or lazy, generous or selfish? Let us ask for the grace to be grateful and generous.

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)


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Praise the Lord!