वर्ष - 2, तीसवाँ सप्ताह, सोमवार

📒 पहला पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 4:32-5:8

32) एक दूसरे के प्रति दयालु तथा सहृदय बनें। जिस तरह ईश्वर ने मसीह के कारण आप लोगों को क्षमा कर दिया, उसी तरह आप भी एक दूसरे को क्षमा करें।

1) आप लोग ईश्वर की प्रिय सन्तान हैं, इसलिए उसका अनुसरण करें

2) और प्रेम के मार्ग पर चलें, जिस तरह मसीह ने आप लोगों को प्यार किया और सुगन्धित भेंट तथा बलि के रूप में ईश्वर के प्रति अपने को हमारे लिए अर्पित कर दिया।

3) जैसा कि सन्तों के लिए उचित है, आप लोगों के बीच किसी प्रकार के व्यभिचार और अशुद्धता अथवा लोभ की चर्चा तक न हो,

4) और न भद्यी, मूर्खतापूर्ण या अश्लील बातचीत; क्योंकि यह अशोभनीय है- बल्कि आप ईश्वर को धन्यवाद दिया करें।

5) आप लोग यह निश्चित रूप से जान लें कि कोई व्यभिचारी, लम्पट या लोभी - जो मूर्तिपूजक के बराबर है- मसीह और ईश्वर के राज्य का अधिकारी नहीं होगा।

6) कोई निरर्थक तर्कों से आप लोगों को धोखा न दे। इन बातों के कारण ईश्वर का क्रोध विद्रोही लोगों पर आ पड़ता है।

7) इसलिए उन लोगों से कोई सम्बन्ध न रखें।

8) आप लोग पहले ’अन्धकार’ थे, अब प्रभु के शिष्य होने के नाते ’ज्योति’ बन गये हैं। इसलिए ज्योति की सन्तान की तरह आचरण करें।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 13:10-17

10) ईसा विश्राम के दिन किसी सभागृह में शिक्षा दे रहे थे।

11) वहाँ एक स्त्री आयी, जो अपदूत लग जाने के कारण अठारह वर्षों से बीमार थी। वह एकदम झुक गयी थी और किसी भी तरह सीधी नहीं हो पाती थी।

12) ईसा ने उसे देख कर अपने पास बुलाया और उस से कहा, ’’नारी! तुम अपने रोग से मुक्त हो गयी हो’’

13) और उन्होंने उस पर हाथ रख दिये। उसी क्षण वह सीधी हो गयी और ईश्वर की स्तुति करती रही।

14) सभागृह का अधिकारी चिढ़ गया, क्योंकि ईसा ने विश्राम के दिन उस स्त्री को चंगा किया था। उसने लोगों से कहा, ’’छः दिन हैं, जिन में काम करना उचित है। इसलिए उन्हीं दिनों चंगा होने के लिए आओ, विश्राम के दिन नहीं।’’

15) परन्तु प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ’’ढोंगियो! क्या तुम में से हर एक विश्राम के दिन अपना बैल या गधा थान से खोल कर पानी पिलाने नहीं ले जाता?

16) शैतान ने इस स्त्री, इब्राहीम की इस बेटी को इन अठारह वर्षों से बाँध रखा था, तो क्या इसे विश्राम के दिन उस बन्धन से छुड़ाना उचित नहीं था?’’

17) ईसा के इन शब्दों से उनके सब विरोधी लज्जित हो गये; लेकिन सारी जनता उनके चमत्कार देख कर आनन्दित होती थी।

📚 मनन-चिंतन

संत पौलुस आज का पहला पाठ में हमें याद दिलाता है कि मसीह का अनुयायी कैसे होना चाहिए - "आप लोग ईश्वर की प्रिय संतान हैं, इसलिए उसका अनुकरण करें और प्रेम के मार्ग पर चलें, जिस तरह मसीह ने आप लोगों को प्यार किया।" यह सुसमाचार का सार है। येसु ने कहा, “मैं तुम लोगों को एक नयी आज्ञा देता हूँ - तुम एक दूसरे को प्यार करो। जिस प्रकार मैं ने तुम लोगों को प्यार किया, उसी प्रकार तुम भी एक दूसरे को प्यार करो। यदि तुम तुम एक दूसरे को प्यार करोगे, तो उसी से सब लोग जान जायेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो। (Jn 13: 34-5)। हमें सतर्क रहना चाहिए कि हम गलत तर्कों से धोखा नहीं खाये और इस तरह ईश्वर के क्रोध से बचे रहें। हमारे सभी कार्यों और दूसरों के साथ संबंधों को प्यार के सिद्धांत द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए। एक ईसाई का पहचान-चिह्न प्रेम है, मसीह की तरह प्रेम। जो भी इसे विपरीत है वे सब अंधेरे की संतानों की बात है। हमें प्रभु के प्रकाश में चलना चाहिए।

आज का अनुवक्य इस पर ज़ोर देता है, "ईश्वर का अनुकरण की कोशिश करें, क्योंकि वह अपने बच्चों से प्यार करता है"।

आज का सुसमाचार हमें येसु के प्रेम का एक और उदाहरण देता है। विश्राम के दिन येसु ने सभागृह में एक महिला को चंगा किया जो अठारह साल से एक दुष्टात्मा से अपंग थी। इसके कारण सभागृह के अधिकारी क्रुद्ध हो गया। येसु सीखना चाहता है कि किसी को भी बांध रखने में नहीं बल्कि उनको स्वतंत्र करने में ही ईश्वर इच्छा है। "विश्राम दिवस मनुष्य के लिए बना है, न कि मनुष्य विश्राम-दिवस के लिए।"

जैसा कि संत पापा फ्रांसिस हमें हमेशा याद दिलाते हैं, हमें नियमें का पालन दया के साथ करना और करवाना चाहिए। संत पापा कहता है, "ईश्वर का नाम दया है।" क्या आप इंसान और उनकी आवश्यकताओं के ऊपर नियमों को महत्त्व देनेवाले हो ? पवित्र आत्मा से प्राथना करें कि आप दया और करुणा के साथ दूसरों से व्यवहार करना सीखें।

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

St. Paul reminds us how to be a follower of Christ -“Imitate God, as children of his that he loves, and follow Christ by loving as he loved”. This is pure preaching of the gospel. This is the essence of the gospel. Jesus said, “I give you a new commandment: love one another as I have loved you. It is by your love for one another, that everyone will recognize you as my disciples” (John 13:34-5). We must not allow ourselves to be deceived by empty arguments and thus invite God’s anger upon us. All our actions and relationships with others must be guided by the principle of love. The mark of a Christian is love, love like that of Christ. Anything else belongs to the children of darkness. We must walk in the light of the Lord.

The responsorial psalm emphasizes this, “try to imitate God, as children of his that he loves” (Ps 1:1-4; R Eph 5:1).

The gospel gives us yet another example of the way Jesus loved. On a Sabbath day Jesus healed a woman who was crippled for eighteen years by a spirit. This led to the indignation of the synagogue official for healing on a Sabbath. Not keeping bound, but untying the bonds and liberating people from whatever cripples people, even on a Sabbath is according to the will of God. “Sabbath is made for humans, not humans for Sabbath.”

As Pope Francis reminds us always we must apply rules with mercy. God’s name is mercy. Are you a legalistic person? Ask the Holy Spirit to help you to relate with people with mercy and compassion.

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)


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Praise the Lord!