वर्ष - 2, तीसवाँ सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 5:21-33

21) हम मसीह के प्रति श्रद्धा रखने के कारण एक दूसरे के अधीन रहें।

22) पत्नी प्रभु जैसे अपने पति के अधनी रहे।

23) पति उसी तरह पत्नी का शीर्ष है, जिस तरह मसीह कलीसिया के शीर्ष हैं और उसके शरीर के मुक्तिदाता।

24) जिस तरह कलीसिया मसीह के अधीन रहती है, उसी तरह पत्नी को भी सब बातों में अपने पति के अधीन रहना चाहिए।

25) पतियो! अपनी पत्नी को उसी तरह प्यार करो, जिस तरह मसीह ने कलीसिया को प्यार किया। उन्होंने उसके लिए अपने को अर्पित किया,

26) जिससे वह उसे पवित्र कर सकें और वचन तथा जल के स्नान द्वारा शुद्ध कर सकें;

27) क्योंकि वह एक ऐसी कलीसिया अपने सामने उपस्थित करना चाहते थे, जो महिमामय हो, जिस में न दाग हो, न झुर्री और न कोई दूसरा दोष, जो पवित्र और निष्कलंक हो।

28) पति अपनी पत्नी को इस तरह प्यार करे, मानो वह उसका अपना शरीर हो।

29) कोई अपने शरीर से बैर नहीं करता। उल्टे, वह उसका पालन-पोषण करता और उसकी देख-भाल करता रहता है। मसीह कलीसिया के साथ ऐसा करते हैं,

30) क्योंकि हम उनके शरीर के अंग हैं।

31) धर्मग्रन्थ में लिखा है- पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक शरीर हो जायेंगे।

32) यह एक महान रहस्य है। मैं समझता हूँ कि यह मसीह और कलीसिया के सम्बन्ध की ओर संकेत करता है।

33) जो भी हो, आप लोगों में हर एक अपनी पत्नी को अपने समान प्यार करे और पत्नी अपने पति का आदर करे।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 13:18-21

18) ईसा ने कहा, ’’ईश्वर का राज्य किसके सदृश है? मैं इसकी तुलना किस से करूँ?

19) वह उस राई के दाने के सदृश है, जिसे ले कर किसी मनुष्य ने अपनी बारी में बोया। वह बढ़ते-बढ़ते पेड़ हो गया और आकाश के पंछी उसकी डालियों में बसेरा करने आये।’’

20) उन्होंने फिर कहा, ’’मैं ईश्वर के राज्य की तुलना किस से करूँ?

21) वह उस ख़मीर के सदृश है, जिसे ले कर किसी स्त्री ने तीन पंसेरी आटे में मिलाया और सारा आटा ख़मीर हो गया।’’

📚 मनन-चिंतन

आज का पहला पाठ में संत पौलुस विवाहित जीवन में प्रेम के महत्त्व के बारे में बताते है। यह मसीह और उसके शरीर, कलीसिया के बीच संबंध पर आधारित होना चाहिए। पति और पत्नी को मसीह की आज्ञा मानते हुए एक-दूसरे को समर्पित करना है। उनके रिश्ते को आपसी प्यार और सम्मान से निर्देशित होना चाहिए।

आज का अनुवाक्य प्रभु पर श्रद्धा रखने वालों के लिए प्रतिज्ञात आशीर्वादों के बारे में है।

ईश्वर के राज्य के बारे में आज के सुसमाचार पाठ में येसु के दो छोटे दृष्टांत हैं: राई का दाना और खमीर का दृष्टान्त। ईश्वर के राज्य की अपनी छोटी और विनम्र शुरुआत है। ईश्वर अपने रहस्यमय तरीकों से इसे विकसित करेगा, फल देगा और इसे परिपूर्णता तक ले जायेगा। कलीसिया के सदस्यों और परिवारों के बीच संबंधों को ईश्वर के राज्य का सारांश, यानी प्रेम के सूत्र द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए। प्यार और दयालुता के छोटे और अक्सर गुमनाम कार्यों के द्वारा ही लोग अपने जीवन में ईश्वर का प्रेम और संरक्षण के अनुभव करते हैं। हम किसी का या किसी चीज़ का तिरस्कार न करें क्योंकि वे छोटे या तुच्छ हो। ईश्वर की दृष्टि में हर कोई कीमती और मूल्यवान है। राई का दाना से उत्पन्न पौधा आकाश के पक्षियों को आश्रय दे सकता है! जैसा कि संत मदर तेरेसा कहती हैं, शांति एक मुस्कान से शुरू होती है!

क्या आप दूसरों को घृणा करते हैं क्योंकि वे छोटे या तुच्छ हैं? क्या आप कुछ करने के लिए अनिच्छुक हैं क्योंकि यह छोटा है या तुच्छ है? आज दया के कुछ छोटे और अनाम कार्य करें। याद रखें कि आप ऐसा करने में ईश्वर के राज्य की वृद्धि में योगदान देते हैं !

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

In today’s first reading St. Paul speaks about the implications of love in married life. It must be based on the relations between Christ and his body, the Church. Husband and wife must give to one another in obedience to Christ. Their relationship must be guided by mutual love and respect.

The responsorial psalm speaks about the blessings in store for those who fear the Lord.

The gospel contains two small parables of Jesus about the Kingdom of God: the parable of the mustard seed and the yeast. The Kingdom of God has its small and humble beginnings. God in his mysterious ways will make it grow, bear fruit and bring it to fulfilment. Relations between members of the church and families must be guided by the quintessence of the Kingdom of God, that is, love. It is small and often anonymous acts of love and kindness that help people experience God’s love and concern in their lives. Let us not despise someone or something because they are small or insignificant. Everyone is precious and valuable in God’s sight. A mustard seed can give shelter to the birds of the air! As St. Mother Teresa says, peace begins with a smile!

Do you despise people because they are small or insignificant? Are you reluctant to do something because it is small or little? Do some small and anonymous acts of kindness today. Remember you will be contributing to the growth of the Kingdom of God!

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!