वर्ष - 2, तीसवाँ सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ फ़िलिप्पियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 1:1-11

1) फिलिप्पी में रहने वाले ईसा मसीह के सब सन्तों और उसके अध्यक्षों तथा धर्मसेवकों के नाम ईसा मसीह के सेवक पौलुस और तिमथी का पत्र।

2) हमारा पिता ईश्वर और प्रभु ईसा मसीह आप लोगों को अनुग्रह तथा शान्ति प्रदान करें!

3) जब-जब मैं आप लोगों को याद करता हूँ, तो अपने ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ।

4) मैं हमेशा अपनी हर प्रार्थना में आनन्द के साथ आप सबों के लिए विनती करता हूँ;

5) क्योंकि आप प्रारम्भ से अब तक सुसमाचार के कार्य में सहयोग देते आ रहे हैं।

6) जिसने आप लोगों में यह शुभ कार्य आरम्भ किया, वह उसे ईसा मसीह के आगमन के दिन तक पूर्णता तक पहुँचा देगा। इसका मुझे पक्का विश्वास है।

7) आप सबों के विषय में मेरा यह विचार उचित है- आप मेरे हृदय में बस गये हैं, क्योंकि जब मैं कै़द में हूँ या अदालत में सुसमाचार की सच्चाई का साक्ष्य देता हूँ, तो आप सब मेरे सौभाग्य के सहभागी हो जाते हैं।

8) ईश्वर जानता है कि मैं ईसा मसीह के प्रेम से प्रेरित हो कर आप लोगों को कितना चाहता हूँ।

9) ईश्वर से मेरी प्रार्थना यह है कि आपका प्रेम, ज्ञान तथा हर प्रकार की अन्तर्दृष्टि में, बराबर बढ़ता जाये,

10) जिससे जो श्रेय है, आप उसे पहचानें और प्यार करें। इस तरह आप लोग मसीह के आगमन के दिन पवित्र तथा निर्दोष होंगे।

11) और ईश्वर की महिमा तथा प्रशंसा के लिए ईसा मसीह के द्वारा परिपूर्ण धार्मिकता तक पहुँच जायेंगे।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 14:1-6

1) ईसा किसी विश्राम के दिन एक प्रमुख फ़रीसी के यहाँ भोजन करने गये। वे लोग उनकी निगरानी कर रहे थे।

2) ईसा ने अपने सामने जलोदर से पीड़ित एक मनुष्य को देख कर

3) शास्त्रियों तथा फ़रीसियों से यह कहा, "विश्राम के दिन चंगा करना उचित है या नहीं?"

4) वे चुप रहे। इस पर ईसा ने जलोदर-पीड़ित का हाथ पकड़ कर उसे अच्छा कर दिया और विदा किया।

5) तब ईसा ने उन से कहा, "यदि तुम्हारा पुत्र या बैल कुएँ में गिर पड़े, तो तुम लोगों में ऐसा कौन है, जो उसे विश्राम के दिन ही तुरन्त बाहर निकाल नहीं लेगा?"

6) और वे ईसा को कोई उत्तर नहीं दे सके।

📚 मनन-चिंतन

आज से हम पहला पाठ के रूप में फिलिप्पियों के नाम संत पौलुस का पत्र सुनते हैं। संत पौलुस ने विश्वासियों को शिक्षा देने, उनका मार्गदर्शन करने, गलत धारणाओं का खंडन करने और इन सबसे बढ़कर उनके प्रति अपना प्रेम प्रकट करने के लिए पत्र लिखे। आज का पाठ ऐसे प्रेम का एक सुंदर संकेत है जहां वह अपने महान प्रेम, आनंद, कृतज्ञता और उनके लिए प्रार्थनाओं को व्यक्त करता है। वह फिलिप्पियों की प्रशंसा करता है और सुसमाचार के प्रति बड़ी ईमानदारी से जवाब देने के लिए उन्हें धन्यवाद देता है क्योंकि इन सबके द्वारा ईश्वर की महिमा का बखान किया गया है। वह प्रार्थना करता है कि उनका आपसी प्रेम, उनका ज्ञान और धारणा बढ़ जाए ताकि वे पहचान सकें कि क्या सबसे अच्छा है और अपने जीवन में शुद्ध और पवित्र बने रहें।

आज का अनुवाक्य यह घोषणा करता है कि ईश्वर आश्चर्यपूर्ण संकेतों के माध्यम से अपनी दिव्य महिमा को प्रकट करता है। यह हमारे लिए ईश्वर का को धन्यवाद देने का कारण होना चाहिए।

आज का सुसमाचार येसु के प्रेम और शिक्षा को दर्शाता है जहां वह विश्राम के दिन एक पीड़ित व्यक्ति के लिए करुणा से उसकी चंगाई करता है। मनुष्य का ज्ञान और समझ दूसरों के प्रति प्रेमपूर्ण और करुणामय कार्यों में परिवर्तित होना चाहिए। यही प्रभु येसु का सुसमाचार का मर्म है जिसे संत पौलुस और अन्य प्रेरितों ने प्रचार किया था। येसु इस अवसर का उपयोग करते हुए विश्राम दिवस का वास्तविक उद्देश्य के बारे में सिखाता है - जिससे लोग पूरी तरह से ईश्वर को महिमा दे सकें।

Covid19 की वजह से लॉकडाउन के दौरान अपने समय का सार्थक उपयोग करने में हम संत पौलुस से बहुत कुछ सीख सकते हैं। टेलीफोन या अन्य संचार माध्यम से दूसरों से संपर्क करने का और उनके लिए प्रार्थना करने का एक उपयुक्त समय है। दूसरों के प्रति प्रेम और करुणा व्यक्त करने के लिए अपने ज्ञान और समझ का उपयोग करें और इस प्रकार ईश्वर की महिमा करें।

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

From today we listen to the letter of St. Paul to the Philippians in the first reading. St. Paul wrote his letters to teach, to guide, to correct and above all to express his love towards the believers. Today’s reading is a beautiful sign of such love where he expresses his great love, joy, gratitude and prayers for them. He praises the Philippians and thanks them for responding so faithfully to the Gospel which has been preached to them, all for the great glory and honour of God. He prays that their mutual love, their knowledge and perception may increase so that they will recognize what is best and remain pure and holy.

The Responsorial Psalm proclaims that God manifests the divine glory through the majestic signs and wonders that he works. This should lead to people giving thanks and glory to God.

The gospel shows the love and teaching of Jesus which demonstrate his compassion and healing for a person on a Sabbath. Knowledge and understanding must flower forth into loving and compassionate action towards those who suffer. This is the sign of the true gospel of Jesus Christ which St. Paul and other apostles preached. Jesus uses this occasion to teach about the true purpose of the Sabbath – allowing people to fully give glory to God.

We can learn a lot from St. Paul in using our time meaningfully during this lockdown caused by Covid19. It is an opportune time to communicate our love and concern for others by expressing them through telephone calls and our prayers for them. Make use of your knowledge and understanding to express love and compassion towards others and thus glorify God.

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)


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Praise the Lord!