वर्ष - 2, इकत्तीसवाँ सप्ताह, शनिवार

📒 पहला पाठ : फिलिप्पियों 4:10-19

10) मुझे प्रभु में इसलिए बड़ा आनन्द हुआ कि मेरे प्रति आप लोगों का प्रेम इतने दिनों के बाद फिर पल्लवित हुआ। इस से पहले भी आप को मेरी चिन्ता अवश्य थी, किन्तु उसे प्रकट करने का सुअवसर नहीं मिल रहा था।

11) मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मुझे किसी बात की कमी है, क्योंकि मैंने हर परिस्थिति में स्वावलम्बी होना सीख लिया है।

12) मैं दरिद्रता तथा सम्पन्नता, दोनों से परिचित हूँ। चाहे परितृप्ति हो या भूख, समृद्धि हो या अभाव -मुझे जीवन के उतार-चढ़ाव का पूरा अनुभव है।

13) जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ।

14) फिर भी आप लोगों ने संकट में मेरा साथ देकर अच्छा किया।

15) फि़लिप्पियों! आप लोग जानते हैं कि अपने सुसमाचार प्रचार के प्रारम्भ में जब मैं मकेदूनिया से चला गया, तो आप लोगों को छोड़ कर किसी भी कलीसिया ने मेरे साथ लेन-देन का सम्बन्ध नहीं रखा।

16) जब मैं थेसलनीके में था, तो आप लोगों ने मेरी आवश्यकता पूरी करने के लिए एक बार नहीं, बल्कि दो बार कुछ भेजा था।

17) मैं दान पाने के लिए उत्सुक नहीं हूँ। मैं इसलिए उत्सुक हूँ कि हिसाब में आपकी जमा-बाकी बढ़ती जाये।

18) अब मुझे किसी बात की कमी नहीं; मैं सम्पन्न हूँ। एपाफ्रोदितुस से आपकी भेजी हुई वस्तुएँ पाकर मैं समृद्ध हो गया हूँ। आप लोगों की यह भेंट एक मधुर सुगन्ध है, एक सुग्राह्य बलिदान, जो ईश्वर को प्रिय है।

19) मेरा ईश्वर आप लोगों को ईसा मसीह द्वारा महिमान्वित कर उदारतापूर्वक आपकी सब आवश्यकताओं को पूरा करेगा।

📙 सुसमाचार : लूकस 16:9-15

9) "और मैं तुम लोगों से कहता हूँ, झूठे धन से अपने लिए मित्र बना लो, जिससे उसके समाप्त हो जाने पर वे परलोक में तुम्हारा स्वागत करें।

10) "जो छोटी-से-छोटी बातों में ईमानदार है, वह बड़ी बातों में भी ईमानदार है और जो छोटी-से-छोटी बातों बेईमान है, वह बड़ी बातों में भी बेईमान है।

11) यदि तुम झूठे धन में ईमानदार नहीं ठहरे, तो तुम्हें सच्चा धन कौन सौंपेगा?

12) और यदि तुम पराये धन में ईमानदार नहीं ठहरे, तो तुम्हें तुम्हारा अपना धन कौन देगा?

13) "क़ोई भी सेवक दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता; क्योंकि वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन-दोनों क़ी सेवा नहीं कर सकते।"

14) फ़रीसी, जो लोभी थे, ये बातें सुन कर ईसा की हँसी उड़ाते थे।

15) इस पर ईसा ने उन से कहा, "तुम लोग मनुष्यों के सामने तो धर्मी होने का ढोंग रचते हो, परन्तु ईश्वर तुम्हारा हृदय जानता है। जो बात मनुष्यों की दृष्टि में महत्व रखती है, वह ईश्वर की दृष्टि में घृणित है।

📚 मनन-चिंतन

योहन 15ः15 में प्रभु येसु कहते हैं, ‘‘अब से मैं तुम्हें सेवक नहीं कहूॅंगा......मैने तुम्हें मित्र कहा है क्योंकि मैने अपने पिता से जो कुछ सुना वह सब तुम्हें बता दिया है।’’ प्रभु येसु हम सभी को मित्र का दर्जा देते हैं। मित्र या दोस्त एक ऐसा रिश्ता होता है जिसकी लोग मिसाल दिया करते हैं। हम सभी के जीवन में कोई न कोई मित्र जरूर होगा जिसके साथ हम अपना विचार, अपनी बात, मन दुःख और सुख साझा करते हैं। मित्रता की कोई सीमा नहीं रहती किसी के लिए उनके माता-पिता सच्चे मित्र होते है तो किसी के लिए दादा-दादी, मित्रता की न तो उम्र होती है न जाति, न रंग, न धर्म। परंतु हम किसे अपना मित्र बनाते हैं वह हम प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है। क्या हम उन्हीं को अपना मित्र बनाते है जो हमारे बराबरी का रहता है, हमारे धर्म-जाति का रहता है या फिर हम उनसे भी दोस्ती करते हैं जो हम से थोड़ा कमजोर है, गरीब है, या दूसरे समाज या जाति के है?

आज का सुसमाचार हमें बताता हैं कि, ‘‘झूठे धन से अपने लिए मित्र बना लो, जिससे उसके समाप्त हो जाने पर वे परलोक में तुम्हारा स्वागत करें।’’ आज का सुसमाचार कल के सुसमाचार के आगे का भाग है जहॉं उस दृष्टांत में स्वामि ने उस कारिन्दा को इसलिए सराहा क्योकि उसने चतुराई से अपने आने वाले समय के लिए उन लोगों को अपना मित्र बना लिया जिनका उसके स्वामि के प्रति कर्ज था जिससे वे बाद में उसकी मदद कर सकें।

इससे हमें एक महत्वपूर्ण बात पता चलती है कि हमें अपने से दीन, गरीब, कमज़ोर, बेसहारा, नम्र, पवित्र व्यक्यिों कि मदद करना चाहिए या उन्हें अपना मित्र बना लेना चाहिए क्योकि यही स्वर्गराज्य के सच्चे हकदार हैं, जिस प्रकार संत लूकस 6ः20 में लिखा है, ‘‘धन्य हो तुम, जो दरिद्र हो! स्वर्गराज्य तुम लोगों का है’’ तथा संत लूकस 14ः13-14 में प्रभु येसु कहते है, ‘‘जब तुम भोज दो, तो कंगालों, लूलों, लॅंगड़ों और अन्धों को बुलाओ। तुम धन्य होगे कि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है, क्योंकि धर्मियों के पुनरूत्थान के समय तुम्हारा बदला चुका दिया जायेगा।’’ यह वचन हम संत मत्ती 25ः34,40 में पूरा होता पाते हैै, ‘‘तब राजा अपने दायें के लोगों से कहेंगे, ‘मेरे पिता के कृपापात्रों! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारम्भ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है’ क्योंकि, ‘तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया वह तुमने मेरे लिए ही किया’’।

संत पापा फ्रांसिस 17 नवम्बर 2019 को गरीबों का विश्व दिवस के अवसर पर कहते हैं- एक गरीब तुम्हारा दोस्त होना तुम्हें स्वर्ग जाने में मदद करेगा।

आईये हम मनन चिंतन करके देखे कि हमारे दोस्त कौन कौन हैं? क्या हमारे दोस्त केवल हमारी बराबरी के लोग है या फिर हम से कमजोर, गरीब और नम्र व्यक्ति भी है अगर नही ंतो आइये कम से कम हम एक गरीब या बेसहारे का दोस्त बने जिससे आगे चल कर स्वर्गराज्य में भी वह हमारा मित्र बना रहें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

In Jn 15:15 Lord Jesus says, “I do not call you servants any longer….but I have called you friends, because I have made known to you everything that I have heard from my Father.” Lord Jesus gives each one of us the honour as his friends. Friendship is that relationship which people use to give example. We too have got one or the other friends with whom we can share our thoughts, talk, mind, feelings, our happiness and sorrows. Friendship has no limitation, for someone their own father or mother can be the best friend or for someone their own grand-parents; Friendship does not look age nor caste, colour or religion. But whom we want to make our friends it depend on each one of us. Do we make friendship only with those who are equal to us, those who are of our religion and caste; or we also make friendship with those who are poorer and weaker than us and are from different caste and religion?

Today’s gospel tells us that “make friends for yourselves by means of dishonest wealth so that when it is gone, they may welcome you into the eternal homes.” Today’s gospel is the continuation of yesterday’s gospel where the owner commends the dishonest manager because he had acted shrewdly by making master’s debtors his friends so that they may help him afterwards.

From this we come to know very important thing that we should make poor, weak, destitute, humble, holy people our friends because they are the true heirs of the Kingdom of God. As we read in Lk 6:20, “Blessed are you who are poor, for yours is the kingdom of God”. In Luke 14:13-14 Jesus says, “When you give a banquet, invite the poor, the crippled, the lame, and the blind. And you will be blessed, because they cannot repay you, for you will be repaid at the resurrection of the righteous.” The realization of this verse we find in Mt 25:34,40 which says, “Come you that are blessed by my Father, inherit the kingdom prepared for you from the foundation of the world, for just as you did it to one of the least of these who are members of my family, you did it to me.”

Pope Francis on the occasion of world day of poor on 17th November 2019 said “Having a friend who is poor will help you get to heaven.”

Let’s meditate and reflect that who all are our friends? Are our friends those who are equal to us or are there friends weaker, poorer, humble than us; if not let’s become a friend to at least one who is poor or destitute so that they may remain friend to us in heaven too. Amen!

-Fr. Dennis Tigga


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Praise the Lord!