वर्ष - 2, बत्तीसहाँ सप्ताह, सोमवार

पहला पाठ : तीतुस 1:1-9

1) यह पत्र, एक ही विश्वास में सहभागिता के नाते सच्चे पुत्र तीतुस के नाम, पौलुस की ओर से है, जो ईश्वर का सेवक तथा ईसा मसीह का प्रेरित है,

2) ताकि वह ईश्वर के कृपापात्रों को विश्वास, सच्ची भक्ति का ज्ञान और अनन्त जीवन की आशा दिलाये। सत्यवादी ईश्वर ने अनादि काल से इस जीवन की प्रतिज्ञा की थी।

3) अब, उपयुक्त समय में, इसका अभिप्राय उस सन्देश द्वारा स्पष्ट कर दिया गया है, जिसका प्रचार मुक्तिदाता ईश्वर ने मुझे सौंपा है।

4) पिता-परमेश्वर और हमारे मुक्तिदाता ईसा मसीह तुम्हें अनुग्रह तथा शान्ति प्रदान करें!

5) मैंने तुम्हें इसलिए क्रेत में रहने दिया कि तुम वहाँ कलीसिया का संगठन पूरा कर दो और मेरे अनुदेश के अनुसार प्रत्येक नगर में अधिकारियों को नियुक्त करो।

6) उन में प्रत्येक अनिन्द्य और एकपत्नीव्रत हो। उसकी सन्तान विश्वासी हो, उस पर लम्पटता का अभियोग नहीं लगाया जा सके और वह निरंकुश न हो;

7) क्योंकि ईश्वर का कारिन्दा होने के नाते अध्यक्ष को चाहिए कि वह अनिन्द्य हो। वह घमण्डी, क्रोधी, मद्यसेवी, झगड़ालू या लोभी न हो।

8) वह अतिथि-प्रेमी, धर्मपरायण, समझदार, न्यायी, प्रभुभक्त और संयमी हो।

9) वह परम्परागत प्रामाणिक धर्मसिद्धान्त पर दृढ़ रहे, जिससे वह सही शिक्षा द्वारा उपदेश दे सके और आपत्ति करने वालों को निरूत्तर कर सके।

सुसमाचार : लूकस 17:1-6

1) ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, "प्रलोभन अनिवार्य है, किन्तु धिक्कार उस मनुष्य को, जो प्रलोभन का कारण बनता है!

2) उन नन्हों में एक के लिए भी पाप का कारण बनने की अपेक्षा उस मनुष्य के लिए अच्छा यही होता कि उसके गले में चक्की का पाटा बाँधा जाता और वह समुद्र में फेंक दिया जाता।

3) इसलिए सावधान रहो। "यदि तुम्हारा भाई कोई अपराध करता है, तो उसे डाँटो और यदि वह पश्चात्ताप करता है, तो उसे क्षमा कर दो।

4) यदि वह दिन में सात बार तुम्हारे विरुद्ध अपराध करता और सात बार आ कर कहता है कि मुझे खेद है, तो तुम उसे क्षमा करते जाओ।"

5) प्रेरितों ने प्रभु से कहा, "हमारा विश्वास बढ़ाइए"।

6) प्रभु ने उत्तर दिया, "यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी होता और तुम शहतूत के इस पेड़ से कहते, ‘उखड़ कर समुद्र में लग जा’, तो वह तुम्हारी बात मान लेता।


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