वर्ष - 2, बत्तीसहाँ सप्ताह, बुधवार

📒 पहला पाठ : तीतुस 3:1-7

1) सब को याद दिलाओं कि शासकों तथा अधिकारियों के अधीन रहना और उनकी आज्ञाओं का पालन करना उनका कर्तव्य है। वे हर प्रकार के सत्कार्य के लिए तत्पर रहें,

2) किसी की निन्दा न करें, झगड़ालू नहीं, बल्कि सहनशील हों और सब लोगों के साथ नम्र व्यवहार करें।

3) क्योंकि हम भी तो पहले नासमझ, अवज्ञाकारी, भटके हुए, हर प्रकार की वासनाओं और भोगों के वशीभूत थे। हम विद्वेष और ईर्ष्या में जीवन बिताते थे। हम घृणित थे और एक दूसरे से बैर करते थे।

4) किन्तु हमारे मुक्तिदाता ईश्वर की कृपालुता तथा मनुष्यों के प्रति उसका प्रेम पृथ्वी पर प्रकट हो गया।

5) उसने नवजीवन के जल और पवित्र आत्मा की संजीवन शक्ति द्वारा हमारा उद्धार किया। उसने हमारे किसी पुण्य कर्म के कारण ऐसा नहीं किया, बल्कि इसलिए कि वह दयालु है।

6) उसने हमारे मुक्तिदाता ईसा मसीह द्वारा हमें प्रचुर मात्रा में पवित्र आत्मा का वरदान दिया,

7) जिससे हम उसकी कृपा की सहायता से धर्मी बन कर अनन्त जीवन के उत्तराधिकारी बनने की आशा कर सकें।

📙 सुसमाचार : लूकस 17:11-19

11) ईसा येरुसालेम की यात्रा करते हुए समारिया और गलीलिया के सीमा-क्षेत्रों से हो कर जा रहे थे।

12) किसी गाँव में प्रवेश करने पर उन्हें दस कोढ़ी मिले,

13) जो दूर खड़े हो गये और ऊँचे स्वर से बोले, "ईसा! गुरूवर! हम पर दया कीजिए"।

14) ईसा ने उन्हें देख कर कहा, "जाओ और अपने को याजकों को दिखलाओ", और ऐसा हुआ कि वे रास्ते में ही नीरोग हो गये।

15) तब उन में से एक यह देख कर कि वह नीरोग हो गया है, ऊँचे स्वर से ईश्वर की स्तुति करते हुए लौटा।

16) वह ईसा को धन्यवाद देते हुए उनके चरणों पर मुँह के बल गिर पड़ा, और वह समारी था।

17) ईसा ने कहा, "क्या दसों नीरोग नहीं हुए? तो बाक़ी नौ कहाँ हैं?

18) क्या इस परदेशी को छोड़ और कोई नहीं मिला, जो लौट कर ईश्वर की स्तुति करे?"

19) तब उन्होंने उस से कहा, "उठो, जाओ। तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है।"

📚 मनन-चिंतन

हमारी जिंदगी में जब कभी हम किसी चीज़ की बहुत समय से आस लगाये बैठे हों जिसके लिए हम बहुत दुआ और कोशिश कर रहें हो, अगर वह हमें मिल जायें तो क्या होगा? ज़ाहिर सी बात है हम खुशी से उछल पड़ेंगे, आनंद से झूमेंगे और खुशियॉं बाटेंगे पर क्या हम उनको भूल जायेंगे जिसकी मदद से या सहायता से हमें वह चीज़ मिली?

आज का सुसमाचार हमें इसी प्रश्न की ओर ले जाता है जहॉं पर दस कोढ़ी चंगे हो जाते है, परंतु उनमें से एक ही, और वह भी समारी ईश्वर की स्तुति करते हुए येसु को धन्यवाद देने पहुॅंचता जिसके द्वारा उसे चंगाई मिली। बाकि के नौ कोढ़ी को क्या हुआ? उन्हे भी तो चंगाई मिली, क्या वे आनंद में इतना डूब गये कि धन्यवाद के लिए वापिस नहीं आये या चंगाई मिलने पर वे अपने अपने घर अपने परिजनों से मिलने चले गये? हमें ठीक ठीक मालूम नहीं कि वे क्यांे नहीं लौटे जबकि वे यहुदी थे। परंतु हमें इतना तो जरूर मालूम है कि उन दस में से सिर्फ एक समारी ही येसु के पास लौटकर अपना आभार प्रकट करता है।

आज का सुमाचार हमंे दो महत्वपूर्ण बाते बताती है

पहला येसु के वचन का पालन करने से हमारे जीवन में चमत्कार होता है। अक्सर हम प्रभु से दुआ करते है, बहुत कुछ प्रार्थना में मॉंगते हैं, जीवन में चमत्कार की आशा करते है। परंतु आज का सुसमाचार हमें बताता है कि जितना हम येसु की आज्ञाओं का पालन करते जायेंगे उतना हम हमारे जीवन में चमत्कार और चिन्ह को देखेंगे जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होगी। दस कोढ़ी प्रभु येसु से दया की भीक मॉंगते है प्रभु येसु न तो उनका स्पर्श करते है और न ही अपने वचनों द्वारा चंगा करते हैं परंतु उनसे कहते है जा कर अपने आप को याजको को दिखाओ। उस समय यह प्रथा थी कि जो भी कोढ़ से ठीक होता था उसे सबसे पहले याजक के पास जाकर उससे प्रमाण लेना पड़ता था कि वह पूर्ण रूप से स्वच्छ हो गया है तब जाकर वह अपने परिवार के साथ साधारण जीवन जी सकता था। जब प्रभु येसु ने उन दस कोढ़ीयों से कहा, ‘जाकर याजक को दिखाओं’ तब उनके मन में कई प्रश्न आ सकता था परंतु उन सबके परे वे येसु की बात मान कर चल देते है और वे मार्ग में ही चंगे हो जाते है।

दूसरा महत्वपूर्ण बात जो आज का सुसमाचार हमें बताती है वह है ईश्वर के प्रति कृतज्ञ भरा जीवन। प्रभु हमारे जीवन में अद्भुत अद्भुत कार्य करते हैं जिसे हम जान भी न पाते हों या जिसे हम जानकर भी नजरअंदाज़ कर देते हो। जब हमारा कार्य हो जाता है तो शायद हम प्रभु को भूल जाते है या इसका श्रेय ईश्वर को नहीं देते; हम सोंचते है यह तो हमारे कारण पूर्ण हुआ या ये तो इत्तेफाक था। परंतु जब कभी हम प्रभु के उपकारों की ओर सही रूप से दृष्टि लगायेंगे तो हमारा जीवन उनके उपकारों के सामने छोटा पड़ जायेगा। स्तोत्र 116ः12, ‘‘प्रभु के सब उपकारों के लिए मैं उसे क्या दे सकता हूॅं?’’ प्रभु के हम पर इतने उपकार है कि हम सोच भी नहीं सकते। प्रभु कितने सारे कार्य हमारे जीवन में करता हैं और अधिकतर कार्य हम जान भी नहीं पाते। किन किन र्दुघटनाओं, विपत्तियों से वह हमें बचा कर रखता है। जब हम प्रतिदिन ध्यान से ईश्वर की कृपाओं का मनन करते रहेंगे तो हम अपने आपको ईश्वर के सामने बहुत ही छोटा पायेंगे तथा हमारा जीवन ईश्वर के प्रति कृतज्ञता भरा जीवन बनता जाएगा।

आईये हम ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करते जायें तथा ईश्वर के प्रति एक कृतज्ञ भरा जीवन जीयें तथा उनके वचनो अपने दैनिक जीवन में पालन करें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

In our lives, suppose we have waited so long for a thing to achieve, for which we have prayed a lot, for which we have put all our efforts and when we get that thing what will happen? Obviously, we will be jumping in happiness, dancing with joy and will share our joy and happiness with everybody. But will we ever forget the person because of whom we achieved the thing?

Today’s gospel highlights this question where ten lepers got cleansed but among them only one, and that too a Samaritan praising God comes to thank Jesus, because of whom he received the healing. What happened to other nine? They too were cleansed, whether they were so immersed in happiness that they forgot to go back and thank Jesus or after receiving the healing they went to their homes to meet their relatives. We do not know exactly why they did not return to thank, even though they were Jews. But we only know that only one Samaritan returns to express his gratitude towards Jesus.

Today’s gospel teaches us two important things:

Firstly, Miracles happen in our lives by obeying Jesus words. Usually we pray to God and ask so many things through prayers and expect some miracle to happen in our life. But today’s gospel tells us that if we go on obeying God’s commandments, those miracles and signs will happen in our lives of which we may never expect. Ten lepers cried for mercy to Jesus. Lord Jesus did not touched them nor healed them through his words but told them to go and show themselves to the priests.

That time it was the custom that whoever is healed of leprosy have to show themselves to the priest and get the certificate that he/she is cleansed then only they can live their lives with their family. When Lord Jesus said to the ten lepers ‘go and show yourselves to the priests’ then many questions might come in their minds but apart from everything they agree to Jesus and went and on the way itself they were healed.

Second important thing which we come to know through today’s gospel is- a life of gratitude towards God. God does wonders in our life of whom we do not know or even if we know also we ignore them. When our work is done then perhaps we forget the Lord or we do not give the due credit to God; we think that it is due to our own efforts or this is mere coincidence. But whenever we see the benevolence of God with the eye of gratitude then our life will fall short in front of his blessings and bounty. Psalm 116:12, “What shall I render unto the Lord for the benefits towards me?” God’s bounty is so much on us that we can never imagine. God does so many marvels in our lives and mostly we do not come to know about them; how he protects us from many unseen dangers and accidents. When we will keep on meditating on the blessings of God then we will realize our unworthiness in front of God and our attitude will change to a life of gratitude towards God.

Let’s live a life of gratitude towards God and obey his words in our daily lives. Amen

-Fr. Dennis Tigga


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Praise the Lord!