वर्ष - 2, तैंतीसवाँ सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ : प्रकाशना 3:1-6, 14-22

1) "सारदैस की कलीसिया के स्वर्गदूत को यह लिखो- "जो ईश्वर के सातों आत्माओं और सातों तारों को धारण किये है, उसका सन्देश इस प्रकार है: मैं तुम्हारे आचरण से परिचित हूँ। लोग तुम्हें जीवित मानते हैं, किन्तु तुम तो मर चुके हो।

2) जागो! तुम में जो जीवन शेष है और बुझने-बुझने को है, उस में प्राण डालो। मैंने तुम्हारे आचरण को अपने ईश्वर की दृष्टि में अपूर्ण पाया है।

3) तुमने जो शिक्षा स्वीकार की और सुनी, उसे याद रखो, उसका पालन करो और पश्चात्ताप करो। यदि तुम नहीं जागोगे, तो मैं चोर की तरह आऊँगा और तुम्हें मालूम नहीं हैं कि मैं किस घड़ी तुम्हारे पास आ जाऊँगा।

4) सारदैस में तुम्हारे यहाँ कुछ ऐसे व्यक्ति भी है, जिन्होंने अपने वस्त्र दूषित नहीं किये हैं। वे उजले वस्त्र पहन कर मेरे साथ टहलेंगे, क्योंकि वे इसके योग्य हैं।

5) "विजयी इस प्रकार उजले वस्त्र पहनेगा। मैं जीवन-ग्रन्थ में से उसका नाम नहीं मिटाऊँगा, बल्कि अपने पिता और उसके स्वर्गदूतों के सामने उसे स्वीकार करूँगा।

6) जिसके कान हों, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।

14) लौदीकिया की कलीसिया के स्वर्गदूत को यह लिखो- "आमेन, विश्वसनीय तथा सच्चे साक्षी, ईश्वर की सृष्टि के मूलस्रोत का सन्देश इस प्रकार हैः

15) मैं तुम्हारे आचरण से परिचित हूँ। तुम न तो ठंडे हो और न गर्म। कितना अच्छा होता कि तुम ठंडे या गर्म होते!

16) लेकिन न तो तुम गर्म हो और न ठंडे, बल्कि कुनकुने हो, इसलिए मैं तुम को अपने मुख से उगल दूँगा।

17) तुम यह कहते हौ- मैं धनी हूँ, मैं समृद्ध हो गया, मुझे किसी बात की कमी नहीं, और तुम यह नहीं समझते कि तुम अभागे हो, दयनीय हो, दरिद्र, अन्धे और नंगे हो।

18) मेरी बात मानो। मुझ से आग में तपाया हुआ सोना खरीद कर धनी हो जाओ; उजले वस्त्र खरीद कर पहन लो और अपने नंगेपन की लज्जा ढँक लो; अंजन खरीद कर आँखों पर लगाओं, जिससे तुम देख सको।

19) मैं जिन सबों को प्यार करता हूँ, उन्हें डाँटता और दण्डित करता हूँ। इसलिए उत्साही बनो और पश्चात्ताप करो।

20) मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।

21) मैं विजयी को अपने साथ उसी तरह अपने सिंहासन पर विराजमान होने का अधिकार दूँगा, जिस तरह मैं विजयी हो कर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर विराजमान हूँ।

22) जिसके कान हों, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।

📙 सुसमाचार : लूकस 19:1-10

1) ईसा येरीख़ो में प्रवेश कर आगे बढ़ रहे थे।

2) ज़केयुस नामक एक प्रमुख और धनी नाकेदार

3) यह देखना चाहता था कि ईसा कैसे हैं। परन्तु वह छोटे क़द का था, इसलिए वह भीड़ में उन्हें नहीं देख सका।

4) वह आगे दौड़ कर ईसा को देखने के लिए एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि वह उसी रास्ते से आने वाले थे।

5) जब ईसा उस जगह पहुँचे, तो उन्होंने आँखें ऊपर उठा कर ज़केयुस से कहा, "ज़केयुस! जल्दी नीचे आओ, क्योंकि आज मुझे तुम्हारे यहाँ ठहरना है"।

6) उसने, तुरन्त उतर कर आनन्द के साथ अपने यहाँ ईसा का स्वागत किया।

7) इस पर सब लोग यह कहते हुए भुनभुनाते रहे, "वे एक पापी के यहाँ ठहरने गये"।

8) ज़केयुस ने दृढ़ता से प्रभु ने कहा, "प्रभु! देखिए, मैं अपनी आधी सम्पत्ति ग़रीबों को दूँगा और मैंने जिन लोगों के साथ किसी बात में बेईमानी की है, उन्हें उसका चैगुना लौटा दूँगा"।

9) ईसा ने उस से कहा, "आज इस घर में मुक्ति का आगमन हुआ है, क्योंकि यह भी इब्राहीम का बेटा है।

10) जो खो गया था, मानव पुत्र उसी को खोजने और बचाने आया है।"

📚 मनन-चिंतन

ज़केयुस की घटना एक ह्दय स्पर्शी घटना हैं जो हमें बताता है कि येसु न केवल धर्मियों से परंतु अधर्मियों और पापियों से भी प्यार करता हैं। लूकस 5ः32, ‘‘मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को पश्चाताप के लिए बुलाने आया हूॅं’’ प्रभु येसु पापियों का ह्दय परिवर्तन कर उनकी आत्माओं को बचाना चाहता हैं। यहीं फर्क है हम में और येसु में, अगर कोई व्यक्ति गलत करता हैं या गलत राह पर चलता हैं तो हम उसका सर्वनाश चाहते हैं परंतु प्रभु येसु उनका सर्वनाश नहीं परंतु उनका जीवन परिवर्तन चाहते हैं कि वह कुमार्ग छोड़कर सहीं मार्ग पर चलने लगें।

आज का सुसमाचार ज़केयुस की बुलाहट का सुसमाचार हैं। ज़केयुस के साथ साथ उन सभी की बुलाहट हैं जो प्रभु येसु को अपने जीवन में देखना चाहते हैं, उनसे मिलना चाहते है। ज़केयुस की दो कमजोरियॉं थी एक तो उसका छोटा कद दूसरा गलत तरीकों से धन कमाने वाला नाकेदार होना। छोटा कद होना उसकी गलती नहीं क्योंकि वह उसके बस में नहीं था, वह तो उसके लिए शारीरिक देन थी, परंतु गलत रूप से धन एकत्र करना उसके बस में था क्योंकि अगर वह चाहता तो सहीं तरीकों से भी नाकेदार का कार्य कर सकता था।

प्रभु येसु से मिलने के लिए ये दोनों कमजोरियॉं उसके लिए एक बाधा थी परंतु उसने उन कमजोरियों को अपने लिए बाधा बनने नहीं दिया। पहली बाधा को उसने पेड़ पर चढ़कर दूर किया। दूसरी को बेईमानी से कमाया हुआ धन को चौगुना लौटाने का वादा कर के दूर किया।

हमारे जीवन में भी बहुत कमजोरियॉं होंगी जो हमें प्रभु येसु से मिलने के लिए एक बाधा बनी हुई है। कुछ कमजोरियॉं तो हमारे बस में नहीं है जैसे कि वह कमजोरियॉं जो हमें जन्म से प्राप्त हुई है परंतु कुछ ऐसी कमजोरियॉं भी हैं जो हमारे बस में हैं तथा जिसके जिम्मेदार हम स्वयं है, उसके कर्ता-धर्ता हम ही है। परंतु क्या हम उन कमजोरियों को अपने लिए बाधा बने रहने देना चाहते हैं या उन कमजोरियों से पार पा कर मुक्ति को अपने जीवन में महसूस करना चाहते है। जब तक हम अपने कमजोरियों पर जीवन भर रोते रहेंगे या विलाप करते रहेंगे तब तक वे हमारे लिए बाधा ही बनी रहेंगी परंतु जब उन कमजोरियों को परे रखकर येसु से मिलने के लिए कोशिश करेंगे तो येसु स्वयं हमसे मिलने आयेंगे। जिस प्रकार याकुब 4ः8 में कहते हैं, ‘‘ईश्वर के पास जायें और वह आपके पास आयेगा।’’

आईये आज के सुसामाचार से प्रेरणा पा कर हम सर्वप्रथम अपने कमजोरियों को पहचाने तथा उनको कभी भी येसु से मिलने के लिए या मुक्ति का एहसास करने के लिए बाधा न बनने दें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

The incident of Zacchaeus is a heart touching incident which tells us that Jesus not only love righteous but also unrighteous and sinners. Lk 5:32, “I have come to call not the righteous but sinners to repentance.” Lord Jesus wants the conversion of their hearts so that their soul can be saved. This is the difference between us and Jesus, if anyone does some mistakes or goes in wrong path the world seek the destruction of that person but Jesus does not want their destruction but their life conversion that they may start walking the right path leaving behind the wrong path.

Today’s gospel is the gospel of Zacchaeus’ Call. Along with Zacchaeus it is also the call of all those who want to see Jesus, who want to encounter Jesus in their lives. Zacchaeus had two weaknesses; one is his small stature and another is defrauding people’s money as tax-collector. Short in stature was not his mistakes because it was not under his control, it was a bodily gift to him, but to collect money by wrong means was under his control because if he wanted he would have done the work of tax-collector in right manner.

To see or meet Jesus this two weaknesses were hurdles or blocks for him but he did not let those weaknesses to remain as a block for him. He removed first block by climbing a tree. Second block he removed by promising Jesus to pay back four times to those whom he defrauded.

We too might have many weaknesses in our lives which have become a block to meet Jesus. Some weaknesses are out of our control like those weaknesses which we received from the time of our birth; but some weaknesses are in our control and we are responsible of those weaknesses as we are the doers of them. But do we want those weaknesses to remain as a block or we want to experience salvation by overcoming those weaknesses. If we go on weeping and mourning in our lives for our weaknesses then those weaknesses will remain as a block but when we try to meet Jesus by overcoming our weaknesses then Jesus himself will come to meet us. As James says in his letter 4:8, “Draw near to God, and he will draw near to you.”

Taking the inspiration from today’s gospel first of all let’s find out our weaknesses and do not allow them to remain as a block to meet Jesus or to experience salvation. Amen

-Fr. Dennis Tigga


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Praise the Lord!