वर्ष - 2, तैंतीसवाँ सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ : प्रकाशना 10:8-11

8) मैंने जो वाणी स्वर्ग से आते हुए सुनी थी, वह उस समय फिर मुझे सम्बोधित कर बोली, "जाओ, जो स्वर्गदूत समुद्र और पृथ्वी पर खड़ा है, उसके हाथ से वह खुली पुस्तक ले लो"।

9) इसलिए मैंने स्वर्गदूत के पास जा कर उस से निवेदन किया कि वह मुझे पुस्तिका दे दे। उसने कहा, "इसे ले लो और खाओ। यह ुतुम्हारे पेट में कड़वी, किन्तु तुम्हारे मुँह में मधु-जैसी मीठी लगेगी।"

10) मैंने स्वर्गदूत के हाथ से पुस्तिका ले ली और खायी। वह मेरे मुँह में मधु-जैसी मीठी लगी, किन्तु जब मैं उसे खा चुका, तो मेरा पेट कड़वा हो गया।

11) तब मुझ से कहा गया, "तुम्हे फिर प्रजातियों, राष्ट्रों, भाषाओं और बहुत-से राजाओं के विषय में भविष्य वाणी करनी होगी"।

📙 सुसमाचार : लूकस 19:45-48

45) ईसा मन्दिर में प्रवेश कर बिक्री करने वालों को यह कहते हुए बाहर निकालने लगे,

46) "लिखा है-मेरा घर प्रार्थना का घर होगा, परन्तु तुम लोगों ने उसे लुटेरों का अड्डा बनाया है"।

47) वे प्रतिदिन मन्दिर में शिक्षा देते थे। महायाजक, शास्त्री और जनता के नेता उनके सर्वनाश का उपाय ढूँढ़ रहे थे,

48) परन्तु उन्हें नहीं सूझ रहा था कि क्या करें; क्योंकि सारी जनता बड़ी रुचि से उनकी शिक्षा सुनती थी।

📚 मनन-चिंतन

हम सब यही आशा करते हैं कि येसु हमारे गिरजाघर में आयें। हम येसु को अपने बीच में चाहते है। हम उनको आमंत्रित करते हैं कि वह हमें हर रविवार को अपने को प्रकट करें। यह बहुत सोचने की बात होगी कि उस समय क्या होगा जब प्रभु हमारे बीच उस रूप में उपस्थित हो जाये जिस प्रकार वे बंद कमरे में अपने शिष्यों के बीच उपस्थित हुए थे। आज के सुसमाचार में प्रभु मंदिर जाते है और जो कुछ उन्होंने वहॉं देखा वह उन्हें बिल्कुल भी पंसद नहीं आया। येसु वहॉं पर बिक्री करने वालों को बाहर निकाल देते है। अगर आज प्रभु येसु अपने आप को हमारे गिरजा घर में प्रकट करेंगे तो क्या उन्हे हमारा गिरजाघर देखकर अच्छा लगेगा या बुरा। वे शायद हमारे गिरजाघर को साफ सुथरा पायें परंतु हमारे मन और ह्दय में गंदगी को देखकर नाखुश होंगे। हमारा शरीर प्रभु का मंदिर हैं जिसे शुद्ध रखना हमारी जिम्मेदारी हैं।

आज का पाठ केवल यह नहीं बताता कि येसु ने उस समय क्या किया परंतु वह यह भी बताता है कि येसु आज क्या करना चाहते है। येसु की इच्छा है कि हम पूरे संसार के गिरजाघरों को शुद्ध रखें तथा हमारे ह्दयों रूपी मंदिर से अशुद्धता या पाप को दूर करें।

यदि हमें हमारे ह्दय रूपी मंदिर को शुद्ध करना है तो हमें प्रभु येसु को हमारे जीवन में स्वागत करना होगा हमारे अंदर आने देना होगा और हमारे ह्दय में भरी बुराईयों को देखने देना होगा। यह इतना आसान नहीं हैं क्योंकि प्रभु को हमारे जीवन में कार्य करने के लिए एक सच्ची विनम्रता और सर्मपण की आवश्यकता होती हैं। जब हम प्रभु को अपने जीवन में आकर कार्य करने देते हैं तो कुछ पीड़ा तो जरूर होती है परंतु इसका फल शुद्धता और पवित्रता होता हैं।

आइये हम प्रार्थना करें कि हमारे सभी गिरजाघर तथा हमारा शरीर, मन और ह्दय प्रभु की उपस्थिति से पवित्र और शुद्ध रहें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

We expect Jesus to come to our Church. We want Jesus to be with us. We invite Him to make himself known among us every Sunday. It will be a matter of imagination that when Lord Jesus will appear amidst us as he appeared in the closed room in the midst of disciples what will happen? In today’s gospel Jesus goes to the temple and did not like what he found. He drove out those who were selling things. If he appears in our churches will he like our church or not? He may find our churches clean but he will be upset by seeing the impurity in our minds

Today’s passage tells not only what Jesus did that time but also tells what Jesus wants to do today. Jesus desire is that we keep our churches sacred and remove impurities and sin from our hearts, our temple.

If we want our temple, our heart to be holy we need to invite Jesus in our lives and allow him to enter and see the filth and evil in us. This is not easy because to work Jesus in our lives it requires true humility and surrender. When we allow him to work in our lives it may hurt us but the end result will be the holiness and sanctity.

Let’s pray that all our churches and our body mind and heart may be sanctified by the presence of God. Amen!

-Fr. Dennis Tigga


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Praise the Lord!