वर्ष - 2, तैंतीसवाँ सप्ताह, शनिवार

पहला पाठ : प्रकाशना 11:4-12

4) ये साक्षी वे जैतून के दो पेड़ और दो दीपाधार हैं, जो पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े हैं।

5) यदि कोई इन्हें हानि पहुँचाना चाहता है तो इनके मुँह से आग निकलती है और वह इनके शत्रुओं को नष्ट करती है। जो इन्हें हानि पहुँचाना चाहेगा, उसे उसी प्रकार मरना होगा।

6) इन्हें आकाश का द्वार बन्द करने का अधिकार है। इनकी भविष्यवाणी के समय पानी नहीं बरसेगा। इन्हें पानी को रक्त में बदलने का और जब-जब चाहें, तब-तब पृथ्वी पर हर प्रकार की महामारी भेजने का अधिकार है।

7) जब ये अपना साक्ष्य दे चुके होंगे, तो अगाध गत्र्त से ऊपर उठने वाला पशु इन से युद्ध करेगा और इन्हें पराजित कर इनका वध करेगा।

8) इनकी लाशें उस महानगर के चैक में पड़ी रहेंगी, जो लाक्षणिक भाषा में सोदोम या मिस्र कहलाता है और जहाँ इनके प्रभु को क्रूस पर आरोपित किया गया था।

9) साढ़े तीन दिनों तक हर प्रजाति, वंश, भाषा और राष्ट्र के लोग इनकी लाशें देखने आयेंगे और इन्हें कब्र में रखने की अनुमति नहीं देंगे।

10) पृथ्वी के निवासी इनके कारण उल्लसित हो कर आनन्द मनायेंगे और एक दूसरे को उपहार देंगे, क्योंकि ये दो नबी पृथ्वी के निवासियों को सताया करते थे।

11) किन्तु साढ़े तीन दिनों बाद ईश्वर की ओर से इन दोनों में प्राण आये और ये उठ खड़े हए। तब सब देखने वालों पर आतंक छा गया।

12) स्वर्ग से एक वाणी इन से यह कहती हुए सुनाई पड़ी, "यहाँ, ऊपर आओ", और ये अपने शत्रुओं के देखते-देखते बादल में स्वर्ग चले गये।

सुसमाचार : लूकस 20:27-40

27) इसके बाद सदूकी उनके पास आये। उनकी धारणा है कि मृतकों का पुनरूत्थान नहीं होता। उन्होंने ईसा के सामने यह प्रश्न रखा,

28) "गुरूवर! मूसा ने हमारे लिए यह नियम बनाया-यदि किसी का भाई अपनी पत्नी के रहते निस्सन्तान मर जाये, तो वह अपने भाई की विधवा को ब्याह कर अपने भाई के लिए सन्तान उत्पन्न करे।

29) सात भाई थे। पहले ने विवाह किया और वह निस्सन्तान मर गया।

30) दूसरा और

31) तीसरा आदि सातों भाई विधवा को ब्याह कर निस्सन्तान मर गये।

32) अन्त में वह स्त्री भी मर गयी।

33) अब पुनरूत्थान में वह किसकी पत्नी होगी? वह तो सातों की पत्नी रह चुकी है।"

34) ईसा ने उन से कहा, "इस लोक में पुरुष विवाह करते हैं और स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं;

35) परन्तु जो परलोक तथा मृतकों के पुनरूत्थान के योग्य पाये जाते हैं, उन लोगों में न तो पुरुष विवाह करते और न स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं।

36) वे फिर कभी नहीं मरते। वे तो स्वर्गदूतों के सदृश होते हैं और पुनरूत्थान की सन्तति होने के कारण वे ईश्वर की सन्तति बन जाते हैं।

37) मृतकों का पुनरूत्थान होता हैं मूसा ने भी झाड़ी की कथा में इसका संकेत किया है, जहाँ वह प्रभु को इब्राहीम का ईश्वर, इसहाक का ईश्वर और याकूब का ईश्वर कहते है।

38) वह मृतकों का नहीं, जीवितों का ईश्वर है, क्योंकि उसके लिये सभी जीवित है।"

39) इस पर कुछ शास्त्रियों ने उन से कहा, "गुरुवर! आपने ठीक ही कहा"।

40) इसके बाद उन्हें ईसा से और कोई प्रश्न पूछने का साहस नहीं हुआ।


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