वर्ष - 2, चौंतीसवाँ सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ : प्रकाशना 14:14-19

14) मैंने देखा कि एक उजला बादल दिखाई पड़ रहा है। उस पर मानव पुत्र-जैसा कोई बैठा हुआ है। उसके सिर पर सोने का मुकुट है और हाथ में एक पैनी हंसिया।

15) एक दूसरा स्वर्गदूत मन्दिर से निकला और ऊँचे स्वर से पुकारते हुए बादल पर बैठने वाले से बोला, "अपनी हंसिया चला कर लुनिए, क्योंकि कटनी का समय आ गया है और पृथ्वी की फसल पक चुकी है"।

16) बादल पर बैठने वाले ने अपनी हंसिया चलायी और पृथ्वी की फसल कट गयी।

17) तब एक दूसरा स्वर्गदूत स्वर्ग के मन्दिर से निकला। वह भी एक पैनी हंसिया लिये था।

18) एक और स्वर्गदूत ने, जिसे अग्नि पर अधिकार था, वेदी से आ कर ऊँचे स्वर से उस स्वर्गदूत से कहा, जो पैनी हंसिया लिये था, "अपनी पैनी हंसिया चला कर पृथ्वी की दाखबारी के गुच्छे बटोर लीजिए, क्योंकि उसके अंगूर पक चुके हैं"।

19) इस पर स्वर्गदूत ने अपनी हंसिया चलायी और पृथ्वी की दाखबारी की फसल बटोर कर उसे ईश्वर के कोप-रूपी विशाल कुण्ड में डाल दिया।

📙 सुसमाचार : लूकस 21:5-11

5) कुछ लोग मन्दिर के विषय में कह रहे थे कि वह सुन्दर पत्थरों और मनौती के उपहारों से सजा है। इस पर ईसा ने कहा,

6) "वे दिन आ रहे हैं, जब जो कुछ तुम देख रहे हो, उसका एक पत्थर भी दूसरे पत्थर पर नहीं पड़ा रहेगा-सब ढा दिया जायेगा"।

7) उन्होंने ईसा से पूछा, "गुरूवर! यह कब होगा और किस चिन्ह से पता चलेगा कि यह पूरा होने को है?"

8) उन्होंने उत्तर दिया, "सावधान रहो तुम्हें कोई नहीं बहकाये; क्योंकि बहुत-से लोग मेरा नाम ले कर आयेंगे और कहेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और ‘वह समय आ गया है’। उसके अनुयायी नहीं बनोगे।

9) जब तुम युद्धों और क्रांतियों की चर्चा सुनोगे, तो मत घबराना। पहले ऐसा हो जाना अनिवार्य है। परन्तु यही अन्त नहीं है।"

10) तब ईसा ने उन से कहा, "राष्ट्र के विरुद्ध राष्ट्र उठ खड़ा होगा और राज्य के विरुद्ध राज्य।

11) भारी भूकम्प होंगे; जहाँ-तहाँ महामारी तथा अकाल पड़ेगा। आतंकित करने वाले दृश्य दिखाई देंगे और आकाश में महान् चिन्ह प्रकट होंगे।

📚 मनन-चिंतन

ये सप्ताह पूजनविधि का अंतिम सप्ताह है और आने वाले रविवार से हम आगमन काल में प्रवेश करते हुए एक नये पूजनविधि के साल को आरंम करेंगे। इस अखिरी सप्ताह में हम अंतिम दिनों के विषय से जुड़े पाठों को जो इस संसार के अंत में होने वाली गतिविधियों पर प्रकाश डालती हैं, उनको सुनेंगे और उन पर मनन चिंतन करेंगे।

आज के सुसमाचार में हम प्रभु येसु को येरूसालेम के मंदिर में पाते है। इस संसार मंे उनका अंतिम समय करीब था। उस समय कुछ लोग मंदिर की सुंदरता और भव्यता पर मुग्द थे। परंतु प्रभु येसु ने उन्हे बताया कि वह दिन दूर नहीं जब वह मंदिर नष्ट हो जायेगा। यहुदियों के लिए वह मंदिर उनके विश्वास की आत्मा थी। उनके लिए वह मंदिर उनके प्रतिष्ठा का प्रतीक था। उन्हें लगता था कि वह मंदिर सालों साल तक बना रहेगा।

प्रभु येसु को मालूम था जब वह येरुसालेम मंदिर ढह जायेगा तो बहुत सारे लोगों के जीवन और विश्वास पर असर पड़ेगा और लोग समझने लगेंगे कि अंतिम दिन आ गया हैं; तथा उस समय कई तरीके के लोग आयेंगे और भटकाने वाली बात करेंगे। इस बात को जानते हुए प्रभु ने बताया कि जब ऐसा होगा तो किसी के बहकावें में न आना। क्योकि भटकाने और बहकाने का काम शैतान का हैं जिसे हम प्रकाश्ना ग्रंथ 12ः9 में पाते है। हमें इस संसार में हमेशा सजग रहने की आवश्यकता है तथा शैतान के हर चाल से बचने की आवश्यकता हैं क्योकि शैतान दहाड़ते हुए सिंह की तरह विचरता है और ढूॅंढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खायें (1पेत्रुस 5ः8)। शैतान हर समय अवसर खोजता रहता है कि कब और किस प्रकार वह हमारा शिकार करें।

प्रभु येसु के आने तक हमें शैतान के कार्यो से बचकर रहने के लिए हमें ईश्वर के अस्त्र शस्त्र धारण करने की जरूरत है। जिसे संत पौलुस एफेसियों के नाम पत्र 6ः10-18 में बताते है। आईये संत पौलुस की शिक्षा अनुसार हम सब सत्य का कमरबन्द कस कर, धार्मिकता का कवच धारण कर और शांति-सुसमाचार के उत्साह के जूते पहन कर खड़े हों। साथ ही विश्वास की ढाल धारण किये रहें, इसके अतिरिक्त मुक्ति का टोप पहन लें और आत्मा की तलवार अर्थात् ईश्वर का वचन ग्रहण करें जिससे हम शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ बन जायें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

This week is the last week of the liturgical year and from coming Sunday we will enter into the new liturgical year from Advent. In this last week we will read and reflect about the passages related to the end times of days.

In today’s gospel we find Jesus in the Jerusalem temple. He was nearing to the end of his earthly life. That time some people were fascinated by the beauty and magnificence of the Jerusalem Temple. But Jesus told them that the day is coming soon when the Temple will be destroyed. For Jews the temple was the soul of their faith. It was the symbol of their prestige. Their thinking was that the temple will last long for years.

Lord Jesus knew that when the Jerusalem Temple will be destroyed then it will affect the life and faith of many and many may think that the end days have come; at that time many will come to lead the people astray. Knowing this Jesus told when this will happen do not be deceived because the deceiving and leading astray is the work of the devil this we read in Revelation 12:9. We need to be alert and aware in order to protect ourselves from the works of devil because like a roaring lion our adversary the devil prowls around, looking for someone to devour (1 Pet 5:8). Devil looks for an opportunity for how and when to make us his prey.

Till the Second Coming of Lord Jesus, to protect ourselves from devil’s works we have to wear the Armor of God, about which is told by St Paul in the letter to the Ephesians 6:10-18. Based on the teaching of St. Paul Come let’s fasten the belt of truth around our waist, and put on the breastplate of righteousness; put on the gospel of peace, take the shield of faith, take the helmet of salvation and the sword of the Spirit, which is the word of God so that we may be able to stand against the wiles of the devil. Amen!

-Fr. Dennis Tigga


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Praise the Lord!