वर्ष - 2, चौंतीसवाँ सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ : प्रकाशना 20:1-4,11-21:2

1) इसके बाद मैंने एक स्वर्गदूत को स्वर्ग से उतरते देखा। उसके हाथ में अगाध गर्त की चाबी और एक बड़ी जंजीर थी।

2) उसने पंखदार सर्प को, उस पुराने सांप अर्थात् इबलीस या शैतान को पकड़ कर एक हजार वर्ष के लिए बांधा

3) और अगाध गर्त में डाल दिया। उसने अगाध गर्त बन्द कर उस पर मोहर लगायी, जिससे वह सर्प एक हजार वर्ष पूरे हो जाने तक राष्ट्रों को नहीं बहकाये। इसके बाद उसे थोड़े समय के लिए छोड़ दिया जाना आवश्यक है।

4) मैंने सिंहासन देखे। जो उन पर बैठने आये, उन्हें न्याय करने का अधिकार दिया गया। मैंने उन लोगों की आत्माओं को भी देखा, जिनके सिर ईसा के साक्ष्य और ईश्वर के वचन के कारण काटे गये थे, जिन्होंने पशु और उसकी प्रतिमा की आराधना नहीं की थी तथा अपने माथे और हाथों पर पशु की छाप स्वीकार नहीं की थी। वे पुनर्जीवित होकर मसीह के साथ एक हज़ार वर्ष तक राज्य करते थे।

11) इसके बाद मैंने एक विशाल श्वेत सिंहासन और उस पर विराजमान व्यक्ति को देखा। पृथ्वी और आकाश उसके सामने लुप्त हो गये और उनका कहीं पता नहीं चला।

12) मैंने छोटे-बड़े, सब मृतकों को सिंहासन के सामने खड़ा देखा। पुस्तकें खोली गयीं। तब एक अन्य पुस्तक अर्थात् जीवन-ग्रन्थ खोला गया। पुस्तकों में लिखी हुई बातों के आधार पर मृतकों का उनके कर्मों के अनुसार न्याय किया गया।

13) समुद्र ने अपने मृतकों को प्रस्तुत किया। तब मृत्यु तथा अधोलोक ने अपने मृतकों को प्रस्तुत किया। हरेक का उनके कर्मों के अनुसार न्याय किया गया।

14) इसके बाद मृत्यु और अधोलोक, दोनों को अग्निकुण्ड में डाल दिया गया। यह अग्निकुण्ड द्वितीय मृत्यु है।

15) जिसका नाम जीवन-ग्रन्थ में लिखा हुआ नहीं मिला, वह अग्निकुण्ड में डाल दिया गया। 21:1) तब मैंने एक नया आकाश और एक नयी पृथ्वी देखी। पुराना आकाश तथा पुरानी पृथ्वी, दोनों लुप्त हो गये थे और समुद्र भी नहीं रह गया था।

2) मैंने पवित्र नगर, नवीन येरूसालेम को ईश्वर के यहाँ से आकाश में उतरते देखा। वह अपने दुल्हे के लिए सजायी हुई दुल्हन की तरह अलंकृत था।

📙 सुसमाचार : लूकस 21:29-33

29) ईसा ने उन्हें यह दृष्टान्त सुनाया, "अंजीर और दूसरे पेड़ों को देखो।

30) जब उन में अंकुर फूटने लगते हैं, तो तुम सहज ही जान जाते हो कि गर्मी आ रही है।

31) इसी तरह जब तुम इन बातों को होते देखोगे, तो यह जान लो कि ईश्वर का राज्य निकट है।

32) "मैं तुम से यह कहता हूँ, इस पीढ़ी के अन्त हो जाने से पूर्व ही ये सब बातें घटित हो जायेंगी।

33) आकाश और पृथ्वी टल जायें, तो टल जायें, परन्तु मेरे शब्द नहीं टल सकते।

📚 मनन-चिंतन

टाईटैनिक एक ऐसा विशालकय जहाज़ था जिसे उत्तम से अत्तम वस्तुओं से बनाया गया था। टाईटेनिक हर प्रकार की सुविधा से सम्पन्न एक शान और शौकत वाली विशालकय जहाज़ थी, जिसे उस समय के आधुनिक उपकरणों द्वारा निर्मित किया गया था; जिसे हर प्रकार की सुरक्षा को देखते हुए बनाया गया था। परंतु हम जानते हैं कि उस जहाज़ का क्या होता है। टाईटेनिक साऊथ हैम्पटन से न्यू योर्क सिटी की अपनी पहली यात्रा में ही वह एक हिम-शिला से टकराने के कारण डूब जाता है; एक मजबूत और नवीन वस्तुओं तथा हर प्रकार के सुरक्षा संसाधनों से निर्मित जहाज़ डूब जाता है।

यह हमें बताता है कि इस संसार में जितने भी आधुनिक वस्तुएॅं भले ही कितनी मजबूती से बनाई गई क्यों न हो उसे एक न एक दिन नष्ट हो जाना है। अर्थात् इस संसार में सबकुछ क्षणिक है, सब वस्तुएॅं नशवर है, जिसे एक न एक दिन नष्ट हो जाना है। कल के सुसमाचार में भी हम दो चीजों के सर्वनाश के विषय में सुनते है, एक येरुसालेम शहर और दूसरा यह संसार; परंतु आज के सुसमाचार में प्रभु येसु एक ऐसे चीज़ के बारे में बताते है जो कि अनशवर है और वह है उनके मुख से निकलने वाले वचन। प्रभु येसु कहते है, ‘आकाश और पृथ्वी टल जायें, तो टल जायें, परंतु मेरे शब्द नहीं टल सकते। अर्थात् भले सबका सर्वनाश हो जायें परंतु प्रभु के शब्द जीवन्त, सशक्त और किसी भी दुधारी तलवार से तेज है (इब्रा0 4ः12)।

हम इस संसार पर जीवन व्यतीत करते समय किस पर आश्रित रहते है या किस पर अधिक भरोसा रखते हैं- नश्वर वस्तुओं पर या अनश्वर प्रभु के वचनों पर। नश्वर वस्तुएॅं हमारा जीवन नहीं बचा सकती; जिस प्रकार टाईटेनिक जहाज हर सुविधा से सम्पन्न होंने पर भी हजारों लोगों को नही बचा पाया उसी प्रकार नश्वर वस्तुएॅं हमें सुरक्षा नहीं प्रदान कर सकती। परंतु जब हम अनश्वर वचनों पर अपना जीवन आश्रित रखते तो वह वचन हमें अनंत जीवन की ओर ले जाते है।

आईये हम प्रार्थना करें कि नश्वर नहीं परंतु अनश्वर वस्तुओं की खोज में लगे रहें तथा अनश्वर वचनों पर अपना जीवन आश्रित करें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

Titanic was the giant and huge ship which was made of qualitative materials. It was a full-facility aided luxurious huge ship, which was made of then latest equipments; which was made with full safety measures. But we know what happened to that ship. On its first voyage from South Hampton to New York City, it sank after striking to an iceberg; a ship build with strongest and latest material, with full safety measures got sank.

This tells us that in this world whatever modern things, which is made of strongest materials one day it has to pass away. In other words everything in this world is impermanence, everything is mortal which has to go away one day. In yesterday’s gospel also we heard about the destruction of two things: one is the destruction of Jerusalem city and another is the destruction of the world; but in today’s gospel Jesus speaks about the thing which is indestructible and living and that is ‘his Words’. Lord Jesus says, ‘Heaven and earth will pass away, but my words will not pass away.’ In other words whether everything will be destroyed but the word of God is alive, active and sharper than any double-edge sword (Heb. 4:12).

On whom do we depend or on whom do we put our trust on while living in this world- on mortal things or immortal word of God. Mortal things cannot save our life, just as Titanic even after laced with all the facilities could not save the thousands from dying so also the mortal things cannot save us. But if we put our lives on the immortal or living word of God then it will take us to eternal life.

Let’s pray that we may look on the things which are immortal and put our trust in the living word of God. Amen!

-Fr. Dennis Tigga


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Praise the Lord!