चक्र ’अ’ - राख-बुधवार



📒 पहला पाठ : योएल 2:12-18

12) प्रभु यह कहता है, "अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए, पूरे हृदय से मेरे पास आओ"।

13) अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चात्ताप करो और अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनशील और दयासागर है और वह सहज की द्रवित हो जाता है।

14) क्या जाने, वह द्रवित हो जाये और तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करे। तब तुम लोग अपने प्रभु-ईश्वर को बलि और तर्पण चढाओगे।

15) सियोन पर्वत पर तुरही बजाओ। उपवास घोषित करो।

16) सभा की बैठक बुलाओ जनता की इकट्ठा करो; बूढ़ों बालकों और दुधमुँहे बच्चों को भी बुला लो। दुलहा और दुलहिन अपना कमरा छोड कर चले आयें।

17) प्रभु-ईश्वर की सेवा करने वाले याजक मन्दिर में वेदी के सामने रोते हुए इस प्रकार प्रार्थना करे, "प्रभु! अपनी प्रजा पर दया कर। अपने लोगों का अपमान न होने दे, राष्टों में उनका उपहास न होने दे गैर-यहूदी यह न कहने पायें कि उनका ईश्वर कहा रह गया"।

18) तब प्रभु ने अपने देश की सुध ली और अपनी प्रजा को बचा लिया।

📕 दूसरा पाठ : 2 कुरिन्थियों 5:20-6:2

5:20) इसलिए हम मसीह के राजदूत हैं, मानों ईश्वर हमारे द्वारा आप लोगों से अनुरोध कर रहा हो। हम मसीह के नाम पर आप से यह विनती करते हैं कि आप लोग ईश्वर से मेल कर लें।

21) मसीह का कोई पाप नहीं था। फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए उन्हें पाप का भागी बनाया, जिससे हम उनके द्वारा ईश्वर की पवित्रता के भागी बन सकें।

6:1) ईश्वर के सहयोगी होने के नाते हम आप लोगों से यह अनुरोध करते हैं कि आप को ईश्वर की जो कृपा मिली है, उसे व्यर्थ न होने दे;

2) क्योंकि वह कहता है - उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी ुसुनी; कल्याण के दिन मैंने तुम्हारी सहायता की। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार ‍6:1-6,16-18

1) "सावधान रहो। लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने धर्मकार्यो का प्रदर्शन न करो, नहीं तो तुम अपने स्वर्गिक पिता के पुरस्कार से वंचित रह जाओगे।

2) जब तुम दान देते हो, तो इसका ढिंढोरा नहीं पिटवाओ।ढोंगी सभागृहों और गलियों में ऐसा ही किया करते हैं, जिससे लोग उनकी प्रशंसा करें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।

3) जब तुम दान देते हो, तो तुम्हारा बायाँ हाथ यह न जानने पाये कि तुम्हारा दायाँ हाथ क्या कर रहा है।

4) तुम्हारा दान गुप्त रहे और तुम्हारा पिता, जो सब कुछ देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।

5) "ढोगियों की तरह प्रार्थना नहीं करो। वे सभागृहों में और चैकों पर खड़ा हो कर प्रार्थना करना पंसद करते हैं, जिससे लोग उन्हें देखें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।

6) जब तुम प्रार्थना करते हो, तो अपने कमरें में जा कर द्वार बंद कर लो और एकान्त में अपने पिता से प्रार्थना करो। तुम्हारा पिता, जो एकांत को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।

16 ढोंगियों की तरह मुँह उदास बना कर उपवास नहीं करो। वे अपना मुँह मलिन बना लेते हैं, जिससे लोग यह समझें कि वे उपवास कर रहें हैं। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।

17) जब तुम उपवास करते हो, तो अपने सिर में तेल लगाओ और अपना मुँह धो लो,

18) जिससे लोगों को नहीं, केवल तुम्हारे पिता को, जो अदृश्य है, यह पता चले कि तुम उपवास कर रहे हो। तुम्हारा पिता, जो अदृश्य को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।

📚 मनन-चिंतन

आज हमारे माथे पर राख लगाते हुए हम चालीसा के पुण्य काल में प्रवेश कर रहे हैं। पोप संत योहन तेईसवें कहते थे कि स्वर्ग के दो फाटक हैं। पहला, मासूमियत या निष्कलंकता का फाटक है। यदि हमने अपने बचपन की मूल निष्कलंकता को बनाए रखा है, तो हम इस द्वार से स्वर्ग में प्रवेश कर सकते हैं। लेकिन अगर हमने अपने पापों के कारण अपनी निर्दोषता खो दी है, तो हम निर्दोषता के इस द्वार से प्रवेश नहीं कर सकते हैं। फिर भी हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि स्वर्ग का एक और द्वार है - पश्चाताप का द्वार। अगर हम अपने पापों पर पश्चाताप करते हैं और प्रभु की ओर लौटते हैं, तो वे हमारा स्वागत करने के लिए तैयार रहते हैं। तब हम पश्चाताप के द्वार से स्वर्ग में प्रवेश करेंगे। नबी योएल के माध्यम से आज के पहले पाठ में, प्रभु हमसे कहते हैं, “अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए, पूरे हृदय से मेरे पास आओ"। अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चात्ताप करो और अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनशील और दयासागर है और वह सहज की द्रवित हो जाता है।” (योएल 2: 12-13)। आइए हम अपने आप को प्रभु के सामने रखें, ताकि वे हमें शुद्ध कर सकें और हमें अपने दयालु प्रेम के योग्य बना सके।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today with ash smeared on our forehead we enter into the holy season of Lent. Pope St. John XXIII used to say that there are two gates to heaven. The first is the gate of innocence. If we have kept our original innocence of our childhood, we can enter heaven through this gate. But if we have lost our innocence through our sins, we cannot enter through this gate of innocence. Yet we need not be disappointed, because there is another gate to heaven – the gate of repentance. If we repent on our sins and turn back to God, he is ready to welcome us. Then we shall enter heaven through the gate of repentance. In today’s First Reading, through Prophet Joel, the Lord tells us, “return to me with all your heart, with fasting, with weeping, and with mourning; rend your hearts and not your clothing” (Joel 2:12-13). Let us dispose ourselves to the Lord, so that he may cleanse us and make us worthy of his merciful love.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!