चक्र ’अ’ - वर्ष का नौवाँ सामान्य इतवार



📒 पहला पाठ : विधि-विवरण ग्रन्थ 11:18,26-28,32

18) तुम लोग मेरे ये शब्द हृदय और आत्मा में रख लो। इन्हें निशानी के तौर पर अपने हाथ में और शिरोबन्द तरह अपने मस्तक पर बाँधे रखो।

26) देखो! आज मैं तुम लोगों के सामने आशीर्वाद तथा अभिशाप, दोनों रख रहा हूँ।

27) प्रभु की जो आज्ञाएँ मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हूँ उनका पालन करोगे, तो तुम्हें आशीर्वाद प्राप्त होगा।

28) यदि तुम अपने प्रभु-ईश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करोगे और जो मार्ग मैं आज तुम्हें बता रहा हूँ, उसे छोड़ कर उन अन्य देवताओं के अनुयायी बन जाओगे, जिन्हें तुम अब तक नहीं जानते तो तुम्हें अभिशाप दिया जायेगा।

32) तो मैं जो आदेश और नियम आज तुम्हें दे रहा हूँ उनका सावधानी से पालन करो।

📕 दूसरा पाठ : रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 3:21-25, 28

21) ईश्वर का मुक्ति-विधान, जिसके विषय में मूसा की संहिता और नबियों ने साक्ष्य दिया था, अब संहिता के स्वतन्त्र रूप में प्रकट किया गया है।

22) यह मुक्ति ईसा मसीह में विश्वास करने से प्राप्त होती है। अब भेदभाव नहीं रहा। यह मुक्ति उन सबों के लिए है, जो विश्वास करते है;

23) क्योंकि सबों ने पाप किया और सब ईश्वर की महिमा से वंचित किये गये।

24) ईश्वर की कृपा से सबों को मुफ्त में पापमुक्ति का वरदान मिला है; क्योंकि ईसा मसीह ने सबों का उद्धार किया है।

25) ईश्वर ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायश्चित्त करें और हम विश्वास द्वारा उसका फल प्राप्त करें। ईश्वर ने इस प्रकार अपनी न्यायप्रियता का प्रमाण दिया; क्योंकि उसने अपनी सहनशीलता के अनुरूप पिछले युगों के पापों को अनदेखा कर दिया था।

28) क्योंकि हम मानते हैं कि मनुष्य संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा नहीं, बल्कि विश्वास द्वारा पापमुक्त होता है।

📙 सुसमाचार : मत्ती 7:21-27

21) "जो लोग मुझे ’प्रभु ! प्रभु ! कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा।

22) उस दिन बहुत-से लोग मुझ से कहेंगे, ’प्रभु ! क्या हमने आपका नाम ले कर भविष्यवाणी नहीं की? आपका नाम ले कर अपदूतों को नहीं निकला? आपका नाम ले कर बहुत-से चमत्कार नहीं दिखाये?’

23) तब मैं उन्हें साफ-साफ बता दूँगा, ’मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। कुकर्मियों! मुझ से दूर हटो।’

24) "जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया था।

25) पानी बरसा, नदियों में बाढ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा; क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी।

26) "जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया।

27) पानी बरसा, नदियों में बाढ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।"


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