चक्र ’अ’ - वर्ष का दसवाँ सामान्य इतवार



📒 पहला पाठ : होशेआ का ग्रन्थ 6:3-6

3) आओ! हम प्रभु का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करें। उसका आगमन भोर की तरह निश्चित है। वह पृथ्वी को सींचने वाली हितकारी वर्षा की तरह हमारे पास आयेगा।"

4) एफ्राईम! मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? यूदा! मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? तुम्हारा प्रेम भोर के कोहरे के समान है, ओस के समान, जो शीघ्र ही लुप्त हो जाती है।

5) इसलिए मैंने नबियों द्वारा तुम्हें घायल किया। अपने मुख के शब्दों द्वारा तुम्हें मारा है;

6) क्योंकि मैं बलिदान की अपेक्षा प्रेम और होम की अपेक्षा ईश्वर का ज्ञान चाहता हूँ।

📕 दूसरा पाठ : रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 4:18-25

18) इब्राहीम ने निराशाजनक परिस्थिति में भी आशा रख कर विश्वास किया और वह बहुत-से राष्ट्रों के पिता बन गये, जैसा कि उन से कहा गया था- तुम्हारे असंख्य वंशज होंगे।

19) यद्यपि वह जानते थे कि मेरा शरीर अशक्त हो गया है- उनकी अवस्था लगभग एक सौ वर्ष की थी- और सारा बाँझ है,

20) तो भी उनका विश्वास विचलित नहीं हुआ, उन्हें ईश्वर की प्रतिज्ञा पर सन्देह नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने अपने विश्वास की दृढ़ता द्वारा ईश्वर का सम्मान किया।

21) उन्हें पक्का विश्वास था कि ईश्वर ने जिस बात की प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में समर्थ है।

22) इस विश्वास के कारण ईश्वर ने उन्हें धार्मिक माना है।

23) धर्मग्रन्थ का यह कथन न केवल इब्राहीम से,

24) बल्कि हम से भी सम्बन्ध रखता है। यदि हम ईश्वर में विश्वास करेंगे, जिसने हमारे प्रभु ईसा को मृतकों में से जिलाया, तो हम भी विश्वास के कारण धार्मिक माने जायेंगे।

25) वही ईसा हमारे अपराधों के कारण पकड़वाये गये और हमारी पापमुक्ति के लिए जी उठे।

📙 सुसमाचार : मत्ती 9:9-13

9) ईसा वहाँ से आगे बढ़े। उन्होंने मत्ती नामक व्यक्ति को चुंगी-घर में बैठा हुआ देखा और उस से कहा, "मेरे पीछे चले आओ", और वह उठकर उनके पीछे हो लिया।

10) एक दिन ईसा अपने शिष्यों के साथ मत्ती के घर भोजन पर बैठे और बहुत-से नाकेदार और पापी आ कर उनके साथ भोजन करने लगे।

11) यह देखकर फरीसियों ने उनके शिष्यों से कहा, "तुम्हारे गुरु नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?"

12) ईसा ने यह सुन कर उन से कहा, "नीरोगों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है।

13) जा कर सीख लो कि इसका क्या अर्थ है- मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।"


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