चक्र ’अ’ - वर्ष का चौदहवाँ समान्य इतवार



पहला पाठ : ज़कारिया 9:9-10

9) सियोन की पुत्री! आनन्द मना! येरुसालेम की पुत्री! जयकार कर! देख! तेरे राजा तेरे पास आ रहे हैं। वह न्यायी और विजयी हैं। वह विनम्र हैं। वह गदहे पर, बछेडे पर, गदही के बच्चे पर सवार हैं।

10) वह एफ्राईम से रथ दूर कर देंगें और येरुसालेम से युद्ध के घोड़ों को। योद्धा के धनुष का बहिष्कार कर दिया जायेगा। वह राष्ट्रों के लिए शान्ति घोषित करेंगे। उनका शासन समुद्र से समुद्र तक और नदी से पृथ्वी के सीमान्तों तक फैल जायेगा।

दूसरा पाठ : रोमियों 8:9,11-13

9) यदि ईश्वर का आत्मा सचमुच आप लोगों में निवास करता है, तो आप शरीर की वासनाओं से नहीं, बल्कि आत्मा से संचालित हैं। जिस मनुष्य में मसीह का आत्मा निवास नहीं करता, वह मसीह का नहीं।

11) जिसने ईसा को मृतकों में से जिलाया, यदि उनका आत्मा आप लोगों में निवास करता है, तो जिसने ईसा मसीह को मृतकों में से जिलाया वह अपने आत्मा द्वारा, जो आप में निवास करता है, आपके नश्वर शरीरों को भी जीवन प्रदान करेगा।

12) इसलिए, भाइयो! शरीर की वासनओं का हम पर कोई अधिकर नहीं। हम उनके अधीन रह कर जीवन नहीं बितायें।

13) यदि आप शरीर की वासनाओं के अधीन रह कर जीवन बितायेंगे, तो अवश्य मर जायेंगे।

सुसमाचार : मत्ती 11:25-30

25) उस समय ईसा ने कहा, ’’पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ; क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों पर प्रकट किया है।

26) हाँ, पिता! यही तुझे अच्छा लगा।

27) मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है। पिता को छोड़ कर कोई भी पुत्र को नहीं जानता। इसी तरह पिता को कोई भी नहीं जानता, केवल पुत्र जानता है और वही, जिस पर पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करे।

28) ’’थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।

29) मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ। इस तरह तुम अपनी आत्मा के लिए शान्ति पाओगे,

30) क्योंकि मेरा जूआ सहज है और मेरा बोझ हल्का।’’

📚 मनन-चिंतन

आधुनिक दुनिया में बहुत से लोग एक अव्यवस्थित जीवन जीते हैं। उन्हें जीवन की ज़रूरी और गैर-जरूरी चीजों का अंतर समझना कठिन लगता है। ड्राइवर को गाडी चलानी चाहिए। अगर गाडी ही ड्राइवर को चलाने की कोशिश करती है, तो क्या होगा? फिर भी बहुत बार आधुनिक मानव की वास्तविकता गाडी द्वारा चालक को चलाने की कहानी से भिन्न नही है। हम विभिन्न प्रकार की लत में फंस जाते हैं। आधुनिक काल में मोबाइल और सोशल मीडिया की लत हमें जीवन की सादगी से दूर रखती है। आज, कई युवाओं ने भ्रामक विचारों और चिंताओं के साथ अपने दिमाग को जकड़ लिया है। इससे पहले कि हम वास्तव में एक सार्थक जीवन जी सकें, हमें अपने जीवन में अव्यवस्था को खत्म करने की आवश्यकता है। सरलीकरण जीवन को हल्का और स्पष्ट बनाने की प्रक्रिया है। दुनिया के निर्देश अक्सर ईश्वर के निर्देशों के बिलकुल विपरीत होते हैं। हम बहुत कम समय में बहुत सी चीजें हासिल करना चाहते हैं। हम उस पौधे की तलाश करते हैं जो एक साल के भीतर फल देना शुरू कर देगा। हम इंस्टेंट कॉफी और इंस्टेंट सूप की तलाश करते रहते हैं। अजीब बात है कि हम एक ही समय बहुत सी दिशाओं में जाना चाहते हैं। अति आवश्यक चीज़ों के बारे हमें याद दिलाते हुए प्रभु कहते हैं, “इन सब चीजों की खोज में गैर-यहूदी लगे रहते हैं। तुम्हारा स्वर्गिक पिता जानता है कि तुम्हें इन सभी चीजों की ज़रूरत है। तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजें, तुम्हें यों ही मिल जायेंगी।” (मत्ती 6: 32-33) ईश्व्र के राज्य पर एकाग्रता येसु की सरलता है। हममें से अधिकत्तर लोग अपने स्वयं के राज्यों के निर्माण में लगे हैं। हमें इस प्रक्रिया को त्याग कर ईश्वर के राज्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। इब्रानियों के पत्र में प्रभु का वचन कहता है, "हम हर प्रकार की बाधा दूर कर अपने को उलझाने वाले पाप को छोड़ कर और ईसा पर अपनी दृष्टि लगा कर, धैर्य के साथ उस दौड़ में आगे बढ़ते जायें, जिस में हमारा नाम लिखा गया है। ईसा हमारे विश्वास के प्रवर्तक हैं और उसे पूर्णता तक पहुँचाते हैं। उन्होंने भविष्य में प्राप्त होने वाले आनन्द के लिए क्रूस पर कष्ट स्वीकार किया और उसके कलंक की कोई परवाह नहीं की। अब वह ईश्वर के सिंहासन के दाहिने विराजमान हैं।“ (इब्रानियों 12: 1-2)। हमें एक सार्थक जीवन जीने के लिए जागरूक विकल्प और प्राथमिकताएँ बनानी होंगी।

क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि येसु को सरल बातें प्रिय थीं – बोनेवाला, खेत के फूल, आकाश के पक्षी, मंदिर के खजाने में दो सिक्के डालने वाली विधवा, छोटे बच्चे। उन्हें यह सरलता अपने पिता से विरासत में मिली थी। इसीलिए, आज के सुसमाचार में, वे कहते हैं, "पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ; क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों पर प्रकट किया है। हाँ, पिता! यही तुझे अच्छा लगा।” कोई आश्चर्य नहीं, लियोनार्डो दा विंची ने कहा है, "सादगी परम परिष्कार है"। लेकिन यह बात भी सच है कि सादगी उन लोगों के लिए बोझ बन सकती है जिन्होंने इसकी सुंदरता की खोज नहीं की है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Many people in the post modern world live a cluttered life. They find it difficult to distinguish between the essentials and non-essentials of life. The driver should drive the car. The car should not drive the driver. Yet very often the reality of the modern man is a story of car driving the driver. We end up with addictions. Modern day mobile and social media addictions keep us away from the simplicity of life. Today, many young people have cluttered their minds with confusing thoughts and worries. We need to clear out the clutter in our life, before we can really live a meaningful life. Simplification is about making life lighter and clearer. The directives of the world are often opposed to the directives of God. We want to achieve too many things in too short a time. We look for a plant that will begin to give fruits within a year. We look for instant coffee and instant soup. Strangely, we want to move in too many directions at the same time. The Lord reminds us of what is essential when he says, “it is the Gentiles who strive for all these things; and indeed your heavenly Father knows that you need all these things. But strive first for the kingdom of God and his righteousness, and all these things will be given to you as well” (Mt 6:32-33). This single-minded focus on the Kingdom of God is the simplicity Jesus desires in us. Far from building our own kingdoms, we need to focus on God’s Kingdom. The Letter to the Hebrews says, “let us also lay aside every weight and the sin that clings so closely, and let us run with perseverance the race that is set before us, looking to Jesus the pioneer and perfecter of our faith” (Heb 12:1-2). We have to make conscious choices and preferences to live a meaningful life.

Have you ever paid attention to the fact that Jesus had a special love for the simple – the lilies of the field, the birds of the air, the poor widow at the temple treasury, the little children. He inherited this simplicity from His Father. That is why, in today’s Gospel, he says, “I thank you, Father, Lord of heaven and earth, because you have hidden these things from the wise and the intelligent and have revealed them to infants; yes, Father, for such was your gracious will”. No wonder, Leonardo da Vinci seems to have said, “Simplicity is the ultimate sophistication”.

There needs to be a word of caution. Simplicity can become a burden for those who have not discovered its beauty.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!