चक्र ’अ’ - वर्ष का सोलहवाँ समान्य इतवार



पहला पाठ : प्रज्ञा-ग्रन्थ 12:13,16-19

13) तुझे छोड़ कर और कोई ईश्वर नहीं। तू ही समस्त सृष्टि की रक्षा करता है। यह आवश्यक नहीं कि तू किसी को इसका प्रमाण दे कि तेरे निर्णय सही है।

16) तेरा न्याय तेरे सामर्थ्य पर आधारित है। तू सब का स्वामी है और इसलिए सब पर दया करता है।

17) तू तभी अपना सामर्थ्य प्रकट करता है, जब तेरी सर्वशक्तिमत्ता पर सन्देह किया जाता है। तू उसी को दण्ड देता है, जो तेरी प्रभुता जान कर तुझे चुनौती देता है।

18) तू शक्तिशाली होते हुए भी उदारतापूर्वक न्याय करता और बड़ी कृपालुता से हम पर शासन करता है, क्योंकि तू इच्छानुसार अपना सामर्थ्य दिखा सकता है।

19) इस प्रकार तूने अपनी प्रजा को यह शिक्षा दी कि धर्मी को अपने भाइयों के प्रति सहृदय होना चाहिए और तूने अपने पुत्रों को यह भरोसा दिलाया कि पाप के बाद तू उन्हें पश्चात्ताप का अवसर देगा।

दूसरा पाठ : रोमियों 8:26-27

26) आत्मा भी हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करता है। हम यह नहीं जानते कि हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए, किन्तु हमारी अस्पष्ट आहों द्वारा आत्मा स्वयं हमारे लिए विनती करता है।

27) ईश्वर हमारे हृदय का रहस्य जानता है। वह समझाता है कि आत्मा क्या कहता है, क्योंकि आत्मा ईश्वर के इच्छानुसार सन्तों के लिए विनती करता है।

सुसमाचार : मत्ती 13:24-43

24) ईसा ने उनके सामने एक और दृष्टान्त प्रस्तुत किया, स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया था।

25) परन्तु जब लोग सो रहे थे, तो उसका बैरी आया और गेहूँ में जंगली बीज बो कर चला गया।

26) जब अंकुर फूटा और बालें लगीं, तब जंगली बीज भी दिखाई पड़ा।

27) इस पर नौकरों ने आकर स्वामी से कहा, ’मालिक, क्या आपने अपने खेत में अच्छा बीज नहीं बोया था? उस में जंगली बीज कहाँ से आ पड़ा?

28) स्वामी ने उस से कहा, ’यह किसी बैरी का काम है’। तब नौकरों ने उससे पूछा, ’क्या आप चाहते हैं कि हम जाकर जंगली बीज बटोर लें’?

29) स्वामी ने उत्तर दिया, ’नहीं, कहीं ऐसा न हो कि जंगली बीज बटोरते समय तुम गेहूँ भी उखाड़ डालो। कटनी तक दोनों को साथ-साथ बढ़ने दो।

30) कटनी के समय मैं लुनने वालों से कहूँगा- पहले जंगली बीज बटोर लो और जलाने के लिए उनके गटठे बाँधो। तब गेहूँ मेरे बखार में जमा करो।’’

31) ईसा ने उनके सामने एक और दृष्टान्त प्रस्तुत किया, ’’स्वर्ग का राज्य राई के दाने के सदृश है, जिसे ले कर किसी मनुष्य ने अपने खेत में बोया।

32) वह तो सब बीजों से छोटा है, परन्तु बढ़ कर सब पोधों से बड़ा हो जाता है और ऐसा पेड़ बनता है कि आकाश के पंछी आ कर उसकी डालियों में बसेरा करते हैं।’’

33) ईसा ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया,’’स्वर्ग का राज्य उस ख़मीर के सदृश है, जिसे लेकर किसी स्त्री ने तीन पंसेरी आटे में मिलाया और सारा आटा खमीर हो गया’’।

34) ईसा दृष्टान्तों में ही ये सब बातें लोगों को समझाते थे। वह बिना दृष्टान्त के उन से कुछ नहीं कहते थे,

35) जिससे नबी का यह कथन पूरा हो जाये- मैं दृष्टान्तों में बोलूँगा। पृथ्वी के आरम्भ से जो गुप्त रहा, उसे मैं प्रकट करूँगा।

36) ईसा लोगों को विदा कर घर लौटे। उनके शिष्यों ने उनके पास आ कर कहा, ’’खेत में जंगली बीज का दृष्टान्त हमें समझा दीजिए’’।

37) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ’’अच्छा बीज बोने बाला मानव पुत्र हैं;

38) खेत संसार है; अच्छा बीज राज्य की प्रजा है; जंगली बीज दृष्ट आत्मा की प्रजा है;

39) बोने बाला बैरी शैतान है; कटनी संसार का अंत है; लुनने वाले स्वर्गदूत हैं।

40) जिस तरह लोग जंगली बीज बटोर कर आग में जला देते हैं, वैसा ही संसार के अंत में होगा।

41) मानव पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके राज्य क़़ी सब बाधाओं और कुकर्मियों को बटोर कर आग के कुण्ड में झोंक देंगें।

42) वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।

43) तब धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य की तरह चमकेंगे। जिसके कान हों, वह सुन ले।

📚 मनन-चिंतन - 1

आज का सुसमाचार एक भले मनुष्य और उसके दुश्मन के बारे में एक दृष्टान्त प्रस्तुत करता है। भला मनुष्य अपने खेत में अच्छा बीज बोता है। लेकिन दुश्मन उस भले व्यक्ति के खेत में गेहूं के बीच जंगली बीज बो कर चला जाता है। दुश्मन यह गुप्त रूप से करता है जब हर कोई सोता है। खेत भले आदमी का है और इसलिए दुश्मन एक अतिचार है। यह साफ है कि उसकी नीयत बुरी है क्योंकि वह जंगली बीज बोता है। उसका मकसद उस भले आदमी को नुकसान पहुँचाना है। लेकिन वह भला आदमी तुरन्त मुँहतोड़ जवाब नही देता है और जल्दीबाजी में कुछ नहीं करता है, लेकिन फसल के तैयार होने के समय तक धैर्य रखता है। फसल के काटने के दौरान, वह स्पष्ट रूप से बुराई को नष्ट करने का दृढ़संकल्प करता है।

जब प्रभु येसु अपने चेलों को अकेले में समझाते हैं तो वे स्पष्ट करते हैं कि वे ही वह भला आदमी हैं और दुश्मन शैतान है। यह संसार ईश्वर का खेत है। जब हम सो रहे होते, यानि निष्क्रिय होते हैं तब शैतान दुनिया में बुराई बो देता है। यदि हम जागते, सतर्क रहेंगे तो शैतान ऐसा नहीं कर सकेगा।

स्वतंत्रता ईश्वर का एक महान उपहार है। यह गरिमा की निशानी है। हम किसी का गुलाम बनना पसंद नहीं करते। पाप की संभावना स्वतंत्रता का हिस्सा है। फिर भी पाप नहीं करना वास्तविक स्वतंत्रता का प्रमाण है। स्वतंत्रता की कीमत है जिम्मेदारी। अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार होने के बिना स्वतंत्रता का आनंद लेना एक खतरनाक प्रवृत्ति है। ऐसे मामले का अंत एक त्रासदी होगी। सच्ची स्वतंत्रता जागरूकता और सतर्कता लाने और बुराई के खिलाफ लड़ाई में तत्पर रहने की जिम्मेदारी लाती है।

संत पेत्रुस कहते हैं, "आप संयम रखें और जागते रहें! आपका शत्रु, शैतान, दहाड़ते हुए सिंह की तरह विचरता है और ढूँढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खाये। आप विश्वास में दृढ़ हो कर उसका सामना करें। आप जानते हैं कि संसार भर में आपके भाई भी इस प्रकार के दुःख भोग रहे हैं।” (1पेत्रुस 5: 8-9)

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today’s Gospel passage speaks about a man and his enemy. The man is evidently good as he sows good seed in his field. The enemy is evidently bad as he sows weeds among the wheat in the good man’s field. The enemy does this secretly when everybody is asleep. The field belongs to the good man and so the enemy is a trespasser. His evil intention is clear as he sows weeds which are intended to bring harm to the good man. The good man does not suddenly get worked up and react in a hurry, but is patient until the time of harvest. At the harvest, he is determined to destroy the evil.

When Jesus explains the parable privately to his disciples he clarifies that the Son of man is the good man and the enemy is the devil. This world is the field of God. When we are asleep the devil sows evil in the world. If we are awake and alert the devil cannot do it.

Freedom is a great gift of God. It is a sign of dignity. We do not like to be enslaved. Possibility of sin is part of freedom. Yet not sinning is the proof of real freedom in practice. Freedom comes with the price-tag of responsibility. Wanting to enjoy freedom without being responsible for our actions is a dangerous tendency. The end in such a case will be a disaster. True freedom brings responsibility to be aware and alert and to be prompt in fighting against evil.

St. Peter says, “Discipline yourselves, keep alert. Like a roaring lion your adversary the devil prowls around, looking for someone to devour. Resist him, steadfast in your faith, for you know that your brothers and sisters in all the world are undergoing the same kinds of suffering.” (1Pet 5:8-9)

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!