शुक्रवार - आगमन का दूसरा सप्ताह



पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 48:17-19

17) प्रभु, इस्राएल का परमपावन ईश्वर, तुम्हारा उद्धारक यह कहता हैः “मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर हूँ। मैं तुम्हें कल्याण की बातें बतलाता हूँ और मार्ग में तुम्हारा पथप्रदर्शन करता हूँ।

18) “यदि तुमने मेरी आज्ञाओं का पालन किया होता, तो तुम्हारी सुख-शान्ति नदी की तरह उमड़ती रहती और तुम्हारी धार्मिकता समुद्र की लहरों की तरह।

19) “तुम्हारे वंशज बालू की तरह हो गये होते, तुम्हारी सन्तति उसके कणों की तरह असंख्य हो जाती। उसका नाम कभी नहीं मिटता और मैं उसे कभी अपनी दृष्टि से दूर नहीं करता।“

सुसमाचार : सन्त मत्ती 11:16-19

16) ’’मैं इस पीढ़ी की तुलना किस से करूँ? वे बाजार में बैठे हुए छोकरों के सदृश हैं, जो अपने साथियों को पुकार कर कहते हैं-

17) हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी और तुम नहीं नाचे, हमने विलाप किया और तुमने छाती नहीं पीटी;

18) क्योंकि योहन बपतिस्ता आया, जो न खाता और न पीता है और वे कहते हैं- उसे अपदूत लगा है।

19) मानव पुत्र आया, जो खाता-पीता है और वे कहते हैं- देखो, यह आदमी पेटू और पियक्कड़ है, नाकेदारों और पापियों का मित्र है। किन्तु ईश्वर की प्रज्ञा परिणामों द्वारा सही प्रमाणित हुई है।’’


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