चक्र ’ब’ - आगमन का पहला रविवार



📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 63:16b-17; 64:2-7

16) प्रभु! तू ही हमारा पिता है। हमारा मुक्तिदाता- यही अनन्त काल से तेरा नाम रहा है।

17) प्रभु! तू यह क्यों होने देता है कि हम तेरे मार्ग छोड़ कर भटक जायें और कठोर-हृदय बन कर तुझ पर श्रद्धा न रखें? प्रभु! हमारे पास लौटने की कृपा कर, हम तेरे सेवक और तेरी प्रजा हैं।

2) यदि तू ऐसे भयंकर कार्य करता, जिनकी हम कल्पना नहीं कर सकते, तो तेरे आगमन पर पर्वत काँपने लगेंगे।

3) यह कभी सुनने या देखने में नहीं आया कि तेरे ही समान कोई देवता अपने पर भरोसा रखने वालों के साथ ऐसा व्यवहार करें।

4) तू उन लोगों का पथप्रदर्शन करता है, जो सदाचरण और तेरे मार्गों का स्मरण करते हैं। तू अप्रसन्न है, क्योंकि हम पाप करते थे और बहुत समय से तेरे विरुद्ध विद्रोह करते आ रहे हैं।

5) हम सब-के-सब अपवत्रि हो गये और हमारे समस्त धर्मकार्य मलिन वस्त्र जैसे हो गये थे। हम सब पत्तों की तरह सूख गये और हमारे पाप हमें पवन की तरह छितराते रहे।

6) कोई न तो तेरा नाम लेता और न तेरी शरण में जाने का विचार करता है; क्योंकि तूने हम से मुँह फर लिया और हमारे पापों को हम पर हावी होने दिया।

7) तो भी, प्रभु! तू हमारा पिता है। हम मिट्टी हैं और तू कुम्हार है, तूने हम सबों को बनाया है।

📕 दूसरा पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 1:3-9

3) हमारा पिता ईश्वर और प्रभु ईसा मसीह आप लोगों को अनुग्रह तथा शान्ति प्रदान करें।

4) आप लोगों को ईसा मसीह द्वारा ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त हुआ है। इसके लिए मैं ईश्वर को निरन्तर धन्यवाद देता हूँ।

5 (5-6) मसीह का सन्देश आप लोगों के बीच इस प्रकार दृढ़ हो गया है कि आप लोग मसीह से संयुक्त होकर अभिव्यक्ति और ज्ञान के सब प्रकार के वरदानों से सम्पन्न हो गये हैं।

7) आप लोगों में किसी कृपादान की कमी नहीं है और सब आप हमारे प्रभु ईसा मसीह के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

8) ईश्वर अन्त तक आप लोगों को विश्वास में सुदृढ़ बनाये रखेगा, जिससे आप हमारे प्रभु ईसा मसीह के दिन निर्दोष पाये जायें।

9) ईश्वर सत्यप्रतिज्ञ है। उसने ने आप लोगों को अपने पुत्र हमारे प्रभु ईसा मसीह के सहभागी बनने के लिए बुलाया।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 13:33-37

33) ’’सावधान रहो। जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आयेगा।

34) यह कुछ ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य विदेश चला गया हो। उसने अपना घर छोड़ कर उसका भार अपने नौकरों को सौंप दिया हो, हर एक को उसका काम बता दिया हो और द्वारपाल को जागते रहने का आदेश दिया हो।

35) तुम नहीं जानते कि घर का स्वामी कब आयेगा- शाम को, आधी रात को, मुर्गे के बाँग देते समय या भोर को। इसलिए जागते रहो।

36) कहीं ऐसा न हो कि वह अचानक पहुँच कर, तुम्हें सोता हुआ पाये।

37) जो बात मैं तुम लोगों से कहता हूँ, वही सब से कहता हूँ-जागते रहो।’’

📚 मनन-चिंतन

आज से हम आगमन काल में प्रवेश कर रहें है। आज आगमन काल का पहला रविवार हैं। आगमन काल दो घटनाओं की तैयारी का समावेश हैंः एक तो हैं प्रभु येसु ख्रीस्त के जन्म की घटना और दूसरा है प्रभु येसु ख्रीस्त के दूसरा आगमन की घटना। एक घटना जो 2020 वर्ष पूर्व घटित हो चुकी है और दूसरी घटना जो भविष्य में आने वाली है। आगमन काल यह दोनो घटनाओं की तैयारी है।

आगमन का अर्थ होता है आना या फिर किसी विशेष व्यक्ति का आना और इस विशेष व्यक्ति के आने की तैयारी को हम आगमन काल के रूप में मनाते है। मान लीजिए अगर हमारे घर कोई फादर या सिस्टर आने वाले हों तो हम क्या करेंगे; हम उनके आने की भरपूर तैयारी करेंगे, घर को साफ रखेंगे, उनके भोजन और रहने की व्यवस्था करेंगे तथा उनके हर प्रकार की सुविधा का ध्यान रखेंगे। मान लीजिये अगर बिशप स्वामि हमारे घर में आ रहें हो तब तो हमारी तैयारी कुछ अलग ही स्तर की होगी। या फिर मान लीजिये अगर संत पापा हमारे घर में आ रहे हो तो हमारी तैयारी और भी बढ़ कर हो जायेगी। परंतु क्रिसमस में कोई इंसान नहीं परंतु स्वयं प्रभु येसु ख्रीस्त हमारे दिल में, मन में और जीवन मंे एक नवीन तरह से पुनः आना चाहते है। तब तो हमारी तैयारी सबसे अधिक होनी चाहिए क्योकि स्वयं ईश्वर हमारे जीवन में आने वाले है।

प्रभु येसु ख्रीस्त का स्वागत हेतु हमारे घर को साफ रखना, सजाना, मिठाई बनाना काफी नहीं; अगर हम प्रभु येसु को न केवल हमारे घर में परंतु हमारे दिल, मन और जीवन में बुलाना चाहते हैं तो हमें हमारे दिल और मन को साफ रखने की जरुरत हैं। यह आगमन काल काथलिक कलीसिया द्वारा दिया गया एक समय अवधि है जहॉं पर हम अपने मन और हृदय में भरी बुराईयों को साफ कर सकें। मन और दिल से बुराईयों को निकालना एक दिन का काम नहीं परंतु इसमें कई दिन लग जाते हैं, इस हेतु हमारे पास लगभग चार सप्ताह का समय रहता हैं जिससे हम अपने दिल में ईश्वर के लिए सुयोग्य स्थान या चरनी तैयार कर सकें।

आज का पहला पाठ बताता है कि किस प्रकार हम हमेशा सन्मार्ग को छोड़ कर गलत रास्ते पर चले जाते है। बार बार पाप करते है और अपने आप को अपवित्र करते है। इसी प्रकार की मनोव्यथा संत पौलुस द्वारा रोमियों के नाम पत्र 7ः15,19-20 में व्यक्त करते है, ‘‘मैं अपना ही आचरण नहीं समझता हूॅं, क्योंकि मैं जो करना चाहता हॅंू, वही नहीं बल्कि वही करता हूॅंॅ, जिससे मैं घृणा करता हूॅं। मैं जो भलाई चाहता हूॅं, वह नहीं कर पाता, बल्कि मैं जो बुराई नहीं चाहता, वहीं कर डालता हॅंू। किन्तू यदि मैं वही करता हॅंू, जिसेे मैं नहीं चाहता, तो कर्ता मैं नहीं हूॅं, बल्कि कर्ता है- मुझमें निवास करने वाला पाप।’’ अक्सर प्रभु के विरूद्ध विद्रोह करने का कारण हमारे अंदर निवास करने वाला पाप हैं। यह पाप हमारे द्वारा नहीं दूर हो सकता हैं यह केवल प्रभु येसु ख्रीस्त के द्वारा ही संभव है; इसके लिए हमें निरंतर पाप स्वीकार संस्कार द्वारा प्रभु येसु से अपने पापों को धुलाने और उनसे मुक्ति पाने की जरुरत हैं; इसके साथ साथ हमें निरंतर मन की जांच द्वारा सही पथ पर लौटने की जरुरत हैं।

सुसमाचार में प्रभु येसु ख्रीस्त जागते रहने की शिक्षा देते है, यहॉं पर प्रभु येसु ख्रीस्त अपने द्वितीय आगमन के विषय में संकेत देते हैं। यह हम सबके लिए निरंतर तैयार रहने के लिए एक आह्वान हैं। और जो अपने आपको तैयार रखते हुए प्रभु की प्रतीक्षा करता रहेगा वह ईसा मसीह के दिन निर्दोष पाया जायेगा जिस प्रकार संत पौलुस कुरिंथ के निवासियों से आज के दूसरे पाठ में कहते है, ‘‘आप लोगों में किसी कृपादान की कमी नहीं है और आप सब हमारे प्रभु ईसा मसीह के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ईश्वर अन्त तक आप लोगों के विश्वास में सुदृढ़ बनाये रखेगा, जिससे आप हमारे प्रभु ईसा मसीह के दिन निर्दोष पाये जायें।’’

प्रभु येसु ख्रीस्त का महिमा के साथ दूसरा आगमन कब होगा, यह हम नहीं जानते परंतु यह क्रिसमस में हम उस प्रकार की तैयारी करते हुए अपने जीवन में प्रभु येसु को नवीन रूप से जन्म लेने के लिए तैयार जरूर कर सकते है। आईये इस आगमन काल में हम, अधिक समय अपने मन और दिल को स्वच्छ करते हुए तैयारी करें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

From today onwards we are entering into the Advent season. Today is the first Sunday of Advent. Advent season is the inclusion of the preparation of two events: One is the birth of Jesus Christ and the other is the Second coming of Jesus Christ. One event happened 2000 years ago and another event is going to happen in future. Advent is the preparation of these two events.

Advent means coming; the coming of some special one and the preparation of the coming of special one is known as the advent season. Just imagine if any priest or sister is going to come in our house, what we will do; we will prepare everything for their coming; we will keep our houses clean, prepare the food and the stay for them and will make them to feel comfortable in all possible ways. What will happen if Bishop will come to our home then our preparation will be in another level; what about if Pope comes to our home then we will prepare much more than everything else. But in Christmas not a human person but Lord Jesus Christ himself wants to come in a new way in our hearts, in our minds and in our lives. Then our preparation should be above all because God himself is going to come in our lives.

In order to welcome Lord Jesus cleaning the houses, decorations and sweets are not enough; if we want Lord Jesus to come not only in our home but also in our hearts, minds and lives then we need to clean our hearts and minds also. The Advent season is the time span given by the Catholic Church so that we can clean and eradicate all the evils from our minds and hearts. To remove evil is not a one day task but it take days to do that and for that we get almost four weeks of time to prepare a suitable place or manger for Lord Jesus in our hearts.

Today’s first reading tells us that we always go to the wrong path leaving the Lord’s path; we sin every time and make ourselves unholy. Similar kind of mental agony is expressed by St. Paul in his letter to the Romans 7:15, 19-20, “I do not understand my own actions. For I do not do what I want, but I do the very thing I hate. For I do not do the good I want, but the evil I do not want is what I do. Now if I do what I do not want, it is no longer I that do it, but sin that dwells within me.” Usually the sin that dwell in us is the main reason for the transgression against God. We cannot get rid of the sin by ourselves but it is possible only through the help of Lord Jesus Christ; For this we need to go frequently for the confession for cleansing and receiving absolution from Lord Jesus; at the same time we have to return to the Lord’s path by continually observing the examination of conscience.

In the gospel Lord Jesus teaches us to be alert and awake, where he gives us the indication of his Second Coming. This is the call for each one of us to be prepared all the time. And those who keep themselves ready and wait for the Lord will be found blameless on the day of our Lord Jesus Christ, as St. Paul tells to the people of Corinth in today’s second reading, “you are not lacking in any spiritual gift as you wait for the revealing of our Lord Jesus Christ. He will also strengthen you to the end, so that you may be blameless on the day of our Lord Jesus Christ.”

When the Lord Jesus Christ will come in his full glory, we do not know but in this Christmas by doing the preparation in that way, we can prepare our lives for the birth of Jesus in our hearts in a renewed way. Let’s spend this advent time to purify our minds and hearts to prepare ourselves. Amen!

-Fr. Dennis Tigga


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!