चक्र -ब - चालीसे का पांचवां रविवार



पहला पाठ : यिरमियाह 31:31-34

31) प्रभु यह कहता हैः “वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल के घराने और यूदा के घराने के साथ एक नया विधान स्थापित करूँगा।

32) यह उस विधान की तरह नहीं होगा, जिसे मैंने उस दिन उनके पूर्वजों के साथ स्थापित किया था, जब मैंने उन्हें मिस्र से निकालने के लिए हाथ से पकड़ लिया था। उस विधान को उन्होंने भंग कर दिया, यद्यपि मैं उनका स्वामी था।“ यह प्रभु की वाणी है।

33) “वह समय बीत जाने के बाद मैं इस्राएल के लिए एक नया विधान निर्धारित करूँगा।’ यह प्रभु की वाणी है। “मैं अपना नियम उनके अभ्यन्तर में रख दूँगा, मैं उसे उनके हृदय पर अंकित करूँगा। मैं उनका ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे।

34) इसकी जरूरत नहीं रहेगी कि वे एक दूसरे को शिक्षा दें और अपने भाइयों से कहें- ’प्रभु का ज्ञान प्राप्त कीजिए’ ; क्योंकि छोटे और बड़े, सब-के-सब मुझे जानेंगे।“ यह प्रभु की वाणी है। “मैं उनके अपराध क्षमा कर दूँगा, मैं उनके पापों की याद नहीं रखूँगा।“

दूसरा पाठ : इब्रानियों 5:7-9

7) मसीह ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार कर और आँसू बहा कर ईश्वर से, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थना और अनुनय-विनय की। श्रद्धालुता के कारण उनकी प्रार्थना सुनी गयी।

8) ईश्वर का पुत्र होने पर भी उन्होंने दुःख सह कर आज्ञापालन सीखा।

9 (9-10) वह पूर्ण रूप से सिद्ध बन कर और ईश्वर से मेलखि़सेदेक की तरह प्रधानयाजक की उपाधि प्राप्त कर उन सबों के लिए मुक्ति के स्रोत बन गये, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।

सुसमाचार : सन्त योहन 12:20-33

20) जो लोग पर्व के अवसर पर आराधना करने आये थे, उन में कुछ यूनानी थे।

21) उन्होने फि़लिप के पास आ कर यह निवेदन किया महाशय! हम ईसा से मिलना चाहते हैं। फि़लिप गलीलिया के बेथसाइदा का निवासी था।

22) उसने जाकर अन्द्रेयस को यह बताया और अन्द्रेयस ने फि़लिप को साथ ले जा कर ईसा को इसकी सूचना दी।

23) ईसा ने उन से कहा, “वह समय आ गया है, जब मानव पुत्र महिमान्वित किया जायेगा।“

24) मैं तुम लोगो से यह कहता हूँ- जब तक गेंहूँ का दाना मिटटी में गिर कर नहीं मर जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परंतु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है।

25) जो अपने जीवन को प्यार करता है, वह उसका सर्वनाश करता है और जो इस संसार में अपने जीवन से बैर करता है, वह उसे अनंत जीवन के लिये सुरक्षित रखता है।

26) यदि कोई मेरी सेवा करना चाहता है तो वह मेरा अनुसरण करे। जहाँ मैं हूँ वहीं मेरा सेवक भी होगा। जो मेरी सेवा करेगा, मेरा पिता उस को सम्मान प्रदान करेगा।

27) “अब मेरी आत्मा व्याकुल है। क्या मैं यह कहूँ - ’पिता ! इस घडी के संकट से मुझे बचा’? किन्तु इसलिये तो मैं इस घडी तक आया हूँ।

28) पिता! अपनी महिमा प्रकट कर। उसी समय यह स्वर्गवाणी सुनाई पडी, ’’मैने उसे प्रकट किया है और उसे फिर प्रकट करूँगा।“ आसपास खडे लोग यह सुनकर बोले, ’’बादल गरजा’’।

29) कुछ लोगो ने कहा, ’’एक स्वर्गदूत ने उन से कुछ कहा’’।

30) ईसा ने उत्तर दिया, ’’यह वाणी मेरे लिये नहीं बल्कि तुम लोगेा के लिये आयी।

31) अब इस संसार का न्याय हो रहा है। अब इस संसार का नायक निकाल दिया जायेगा।

32) और मैं, जब पृथ्वी के ऊँपर उठाया जाऊँगा तो सब मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करूँगा।

33) इन शब्दों के द्वारा उन्होने संकेत किया कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी।

📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु इस दुनिया में समस्त मानव जाती को पापों से मुक्त करने केलिए आये। संत 1योहन 2:2 में वचन कहता है कि प्रभु येसु ने हमारे पापों केलिए प्रायश्चित्त किया है और न केवल हमारे पापों के लिए, बल्कि समस्त संसार के पापों के लिए भी। हमें उद्धार करने केलिए प्र्रभु येसु ने क्रूस पर अपना जीवन एक याग के रूप में समर्पित किया। संत पेत्रुस 1:18-19 में वचन कहता है आप लोग जानते हैं कि आपके पुर्वजों से चली आयी हुई निरर्थक जीवन-चर्या से आपका उद्धार सोने-चॉदी-जैसी नश्वर चीजों की कीमत पर नहीं हुआ है, बल्कि एक निर्दाेष तथा निष्कलंक मेमने अर्थात मसीह के मूल्यवान सक्त की कीमत पर।

आज के सुसमाचार में हम पढते है कि जब कुछ यूनानी येसु से मिलने केलिए आग्रह किया तब येसु ने उनसे कहा कि वह समय आ गया है, जब मानव पुत्र महिमान्वित किया जायेगा। प्रभु येसु कैसे महिमान्वित किया जायेगा? घोर मृत्यु द्वारा यानी क्रूस मरण द्वारा। इसलिए येसु वाक्य 27 में कहते है अब मेरी आत्मा व्याकुल है। क्या मैं यह कहॅू- पिता इस घडी के संकट से मुझे बचा? किन्तु इसलिए तो मैं इस घडी तक आया हॅू। पिता अपनी महीमा प्रकट कर। एक इनसान होने के नाथे क्रूस मरण के बारे में सोच के एक प्रकार की घबराहट होती थी लेकिन पिता को और समस्त मानव जाती को बहुत ज्यादा प्यार करने के कारण येसु क्रूस मरण के लिए तैयार हो जाते है। संत मत्ति 26:37से लेकर जब क्रूस मरण की घडी आगया तो येसु अपने शिष्यों से कहते है मेरी आत्मा इतनी उदाय है कि मैं मरने-मरने को हॅू। और आगे बढकर येसु पिता से कहते है मेरे पिता यदि हो सके, तो यह प्याला मुझ से टल जाये। फिर भी मेरी नहीं, बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो। इसलिए आज के दूसरे पाठ इब्रानियों 5:7 में सुनते है कि मसीह ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार कर और ऑसू बहा कर ईश्वर से, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थना और अनुनय-विनय की।

जैसे कि आज के पहले पाठ में पिता ईश्वर एक नए विधान स्थापित करने के बारे में कहते है और वह कार्य प्रभु येसु में पूर्ण होता है। पिता ईश्वर ने येसु की मृत्यु द्वारा एक नया विधान स्थापित किया है। इसलिए अंतिम भोजन के समय येसु प्याला लेकर कहते है यह मेरा रक्त है, विधान का रक्त। (संत मत्ती 26:28) प्यारे विश्वासियों आईए हम ईश्वर को धन्यवाद दे हमें नए विधान की संतान बनाने के लिए। और हम नए विधान की संतान के रूप में आपना जीवन बिताये।


-फादर शैलमोन आन्टनी


📚 REFLECTION


Jesus came to this world in order to set free all humankind from sin. 1Jn 2:2 says Jesus is the atoning sacrifice for our sins, and not for ours only but also for the sins of the whole world. St. 1Pet 1:18-19 the word of God says: you know that you were ransomed from the futile ways inherited from your ancestors, not with perishable things like silver or gold, but with the precious blood of Christ, like that of a lamb without defect or blemish.

In today’s gospel we read that as Jesus was teaching, some Greeks came to meet Jesus, and when Jesus was informed about this, Jesus says the time has come, when son of man will be glorified. How will Jesus be glorified? It is through suffering and death on the cross. Therefore Jesus says in the verse 27-28 that my soul is troubled. And what should I say- Father, save me from this hour? No, it is for this reason that I have come to this hour. Father glorify your name. being a human being Jesus felt terribly afraid of the death on the cross, but Jesus loved God the Father and the humanity above his own life. Therefore he was will to go through this suffering. Mt 26:37 Jesus began to be grieved and agitated for the time for his death on the cross has come near. Therefore Jesus prays to His Father, my Father, if it is possible, let this cup pass from me; yet not what I want but what you want. In today’s second reading also we hear the same: Heb 5:7 in the days of his flesh, Jesus offered up prayers and supplications, with loud cries and tears, to the one who was able to save him from death and he was heard because of his reverent submission.

As in the first reading we hear about God who is going to establish a new covenant, and that new covenant takes place when Jesus dies on the cross. Jesus says it very clearly in Mt 26:28 Jesus took the cup and gave it to his disciples saying: drink from it, all of you; for this is my blood of the covenant, which is poured out for many for the forgiveness of sins. Come let’s thank God for having made us the children of the New Covenant. Let us live our lives as the children of the new covenant.

-Fr. Shellmon Antony


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Praise the Lord!