चक्र - ब - स्वर्गारोहण का पर्व



पहला पाठ : प्रेरित-चरित 1:1-11

1 थेओफिलुस! मैंने अपनी पहली पुस्तक में उन सब बातों का वर्णन किया,

2) जिन्हें ईसा उस दिन तक करते और सिखाते रहे जिस दिन वह स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये। उस से पहले ईसा ने अपने प्रेरितों को, जिन्हें उन्होंने स्वयं चुना था, पवित्र आत्मा द्वारा अपना कार्य सौंप दिया।

3) ईसा ने अपने दुःख भोग के बाद उन प्रेरितों को बहुत से प्रमाण दिये कि वह जीवित हैं। वह चालीस दिन तक उन्हें दिखाई देते रहे और उनके साथ ईश्वर के राज्य के विषय में बात करते रहे।

4) ईसा ने प्रेरितों के साथ भोजन करते समय उन्हें आदेश दिया कि वे येरुसालेम नहीं छोड़े, बल्कि पिता ने जो प्रतिज्ञा की, उसकी प्रतीक्षा करते रहें। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने तुम लोगों को उस प्रतिज्ञा के विषय में बता दिया है।

5) योहन जल का बपतिस्मा देता था, परन्तु थोड़े ही दिनों बाद तुम लोगों को पवित्र आत्मा का बपतिस्मा दिया जायेगा’’।

6) जब वे ईसा के साथ एकत्र थे, तो उन्होंने यह प्रश्न किया- ‘‘प्रभु! क्या आप इस समय इस्राएल का राज्य पुनः स्थापित करेंगे ?’’

7) ईसा ने उत्तर दिया, ‘‘पिता ने जो काल और मुहूर्त अपने निजी अधिकार से निश्चित किये हैं, तुम लोगों को उन्हें जानने का अधिकार नहीं है।

8) किन्तु पवित्र आत्मा तुम लोगों पर उतरेगा और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा और तुम लोग येरुसालेम, सारी यहूदिया और सामरिया में तथा पृथ्वी के अन्तिम छोर तक मेरे साक्षी होंगे।’’

9) इतना कहने के बाद ईसा उनके देखते-देखते आरोहित कर लिये गये और एक बादल ने उन्हें शिष्यों की आँखों से ओझल कर दिया।

10) ईसा के चले जाते समय प्रेरित आकाश की ओर एकटक देख ही रहे थे कि उज्ज्वल वस्त्र पहने दो पुरुष उनके पास अचानक आ खड़े हुए और

11) बोले, ‘‘गलीलियो! आप लोग आकाश की ओर क्यों देखते रहते हैं? वही ईसा, जो आप लोगों के बीच से स्वर्ग में आरोहित कर दिये गये हैं, उसी तरह लौटेंगे, जिस तरह आप लोगों ने उन्हें जाते देखा है।’’

दूसरा पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 4:1-13

1) ईश्वर ने आप लोगों को बुलाया है। आप अपने इस बुलावे के अनुसार आचरण करें - यह आप लोगों से मेरा अनुरोध है, जो प्रभु के कारण कै़दी हूँ।

2) आप पूर्ण रूप से विनम्र, सौम्य तथा सहनशील बनें, प्रेम से एक दूसरे को सहन करें

3) और शान्ति के सूत्र में बँध कर उस एकता को बनाये रखने का प्रयत्न करते रहें, जिसे पवित्र आत्मा प्रदान करता है।

4) एक ही शरीर है, एक ही आत्मा और एक ही आशा, जिसके लिए आप लोग बुलाये गये हैं।

5) एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास और एक ही बपतिस्मा।

6) एक ही ईश्वर है, जो सबों का पिता, सब के ऊपर, सब के साथ और सब में व्याप्त है।

7) मसीह ने जिस मात्रा में देना चाहा, उसी मात्रा में हम में प्रत्येक को कृपा प्राप्त हुई है।

8) इसलिए धर्मग्रन्थ कहता है- वह ऊँचाई पर चढ़ा और बन्दियों को ले गया। उसने मनुष्यों को दान दिये।

9) वह चढ़ा - इसका अर्थ यह है कि वह पहले पृथ्वी के निचले प्रदेशों में उतरा।

10) जो उतरा, वह वही है जो आकाश से भी ऊपर चढ़ा, जिससे वह सब कुछ परिपूर्ण कर दे।

11) उन्होंने कुछ लोगों को प्रेरित, कुछ को नबी, कुछ को सुसमाचार-प्रचारक और कुछ को चरवाहे तथा आचार्य होने का वरदान दिया।

12) इस प्रकार उन्होंने सेवा-कार्य के लिए सन्तों को नियुक्त किया, जिससे मसीह के शरीर का निर्माण तब तक होता रहे,

13) जब तक हम विश्वास तथा ईश्वर के पुत्र के ज्ञान में एक नहीं हो जायें और मसीह की परिपूर्णता के अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त न कर लें।

सुसमाचार : सन्त मारकुस 16:15-20

15) इसके बाद ईसा ने उन से कहा, "संसार के कोने-कोने में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ।

16) जो विश्वास करेगा और बपतिस्मा ग्रहण करेगा, उसे मुक्ति मिलेगी। जो विश्वास नहीं करेगा, वह दोषी ठहराया जायेगा।

17) विश्वास करने वाले ये चमत्कार दिखाया करेंगे। वे मेरा नाम ले कर अपदूतों को निकालेंगे, नवीन भाषाएँ बोलेंगे।

18) और साँपों को उठा लेंगे। यदि वे विष पियेंगे, तो उस से उन्हें कोई हानि नहीं होगी। वे रोगियों पर हाथ रखेंगे और रोगी स्वस्थ हो जायेंगे।“

19) प्रभु ईसा अपने शिष्यों से बातें करने के बाद स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये और ईश्वर के दाहिने विराजमान हो गये।

20) शिष्यों ने जा कर सर्वत्र सुसमाचार का प्रचार किया। प्रभु उनकी सहायता करते रहे और साथ-साथ घटित होने वाले चमत्कारों द्वारा उनकी शिक्षा को प्रमाणित करते रहे।

मनन-चिंतन

आज माता कलीसिया प्रभु येसु के स्वर्गारोहण का पर्व मनाती है। जब प्रभु येसु मृत्यु के बाद तीसरे दिन जी उठे तो उसके बाद कई बार, अलग-अलग समय व अलग-अलग स्थानों पर अपने शिष्यों को उन्होंने दर्शन दिये और धर्मग्रन्थ में लिखी बातें उन्हें समझायीं। इन सभी घटनाओं के वर्णन को हम पिछले कई दिनों अर्थात् पास्का पर्व के बाद से ही दैनिक पाठों में सुनते और उन पर मनन करते आ रहे थे। आज का पहला पाठ पास्का पर्व के बाद से प्रभु के स्वर्गारोहण तक की सारी घटनाओं का संक्षेप में वर्णन करता है। सुसमाचार में प्रभु येसु अपने शिष्यों को संसार के कोने-कोने में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाने का आह्वान करते हैं, और देखते ही देखते स्वर्ग चढ़ जाते हैं जहाँ वे स्वर्गीय पिता के दाहिने विराजमान हो जाते हैं।

प्रभु येसु जब क्रूस पर टंगे थे, तो उनकी मृत्यु से पहले उन्होंने कुछ शब्द कहे थे, जिन्हें ‘क्रूस पर प्रभु येसु के सात शब्द’ के रूप में जाना जाता है। इन सात अन्तिम शब्दों पर कई लेखकों ने अनेक पुस्तकें लिखीं हैं, कई ने मनन-चिंतन लिखे हैं, कई ने लम्बे प्रवचन लिखे हैं। कई बार पुण्य शुक्रवार के दिन हमने भी उन सात शब्दों पर गहराई से मनन चिंतन भी किया होगा और प्रभु येसु की मृत्यु के समय के इन सात शब्दों पर मनन चिंतन करके हमें नवीन प्रेरणा व नयी अध्यात्मिक शक्ति मिलती है। वे सात शब्द मिलते हैं: (1. लूकस 23:34, 2. लूकस 23:43, 3. योहन 19:26-27, 4. मत्ती 27:46 , 5. योहन 19:28, 6. योहन 19:30, 7. लूकस 23:46)

प्रभु येसु ने अपने जीवन काल में बहुत महत्वपूर्ण शिक्षाएं दी जो दुनिया को बदल कर रख दें, लेकिन हम उनसे अधिक, और अधिक गंभीरता से प्रभु येसु के उन अंतिम सात शब्दों पर मनन चिंतन करते हैं, आखिर क्यों? क्योंकि वे मृत्यु से पहले के प्रभु के अंतिम शब्द थे। और अंतिम शब्द चाहे प्रभु येसु के हों या किसी अन्य व्यक्ति के, वे बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन क्या यही प्रभु येसु के अंतिम शब्द थे? तो फिर स्वर्गारोहण से पूर्व कहे गए शब्द कब के थे? क्या वास्तव में वे ही अंतिम शब्द नहीं थे? अगर किसी व्यक्ति के अंतिम शब्द हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, तो मैं समझता हूँ मृत्यु के पूर्व के अंतिम शब्दों की अपेक्षा प्रभु येसु के स्वर्गारोहण के पूर्व के अंतिम शब्द अधिक महत्वपूर्ण हैं। हाँ अगर किसी व्यक्ति के लिए मृत्यु ही अन्तिम पड़ाव है तो मृत्यु के पूर्व के शब्द उस व्यक्ति के अंतिम शब्द होंगे। लेकिन हम जानते हैं कि न प्रभु येसु के लिए और न उनमें विश्वास करने वालों के लिए मृत्यु अंत है। प्रभु येसु के लिए अंतिम चीज मृत्यु नहीं पुनुरुत्थान है, ईश्वर में अनन्त जीवन हैं।

प्रभु येसु का अंतिम आह्वान हमारे लिये बहुत मायने रखता है। अपने स्वर्गारोहण से पूर्व प्रभु येसु ने अपने शिष्यों को आज्ञा दी, “संसार के कोने-कोने में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ। जो विश्वास करेगा और बप्तिस्मा ग्रहण करेगा, उसे मुक्ति मिलेगी, जो विश्वास नहीं करेगा, वह दोषी ठहराया जायेगा।”(मारकुस 16:15-16)। आगे प्रभु येसु ये बताते हैं कि विश्वास करने वाले क्या-क्या चमत्कार करेंगे।

सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाने का अर्थ क्या है? पवित्र बाइबिल लेकर चारों सुसमाचारों को पढ़कर सुना देना? पवित्र बाइबिल को मुहजबानी याद करके उसके पदों को बिना देखे सुना देना? जी नहीं, सुसमाचार सुनाना इससे भी बढ़कर है। सुसमाचार सुनाने का अर्थ है, ईश्वर का जो कार्य प्रभु येसु ने जहाँ छोड़ा था वहीँ से हमको जारी रखना है। प्रभु येसु ने जो कार्य किये, उन कार्यों को आगे बढ़ाना है। प्रभु येसु की शिक्षाओं को याद करके या पढ़कर सुनाना नहीं, बल्कि उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करके दूसरों के सामने पेश करना है। उदाहरण के लिए, प्रभु येसु ने कहा कि “अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो” (मत्ती 5:44)। सुसमाचार सुनाने का अर्थ ये नहीं कि प्रभु येसु की इस शिक्षा को मैं दूसरों को सुनाऊं बल्कि ये कि मैं इस शिक्षा को अपने जीवन में जीउँ और ये मुझे सब समय और संसार के कोने-कोने में जाकर करना है।

प्रभु हमें ईश्वर के सुसमाचार को समझने व उसे अपने जीवन में सार्थक करने की कृपा प्रदान करे ताकि हम अपने प्रभु की अंतिम इच्छा पूरी कर सकें। - संसार के कोने-कोने में जाकर सुसमाचार को जी कर दूसरों को दिखाओ, ताकि तुम्हें देखकर लोग ईश्वर को जानें और उसमें विश्वास करें।

फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)

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Praise the Lord!