चक्र - ब - वर्ष का तीसरा सामान्य रविवार



पहला पाठ: योना का ग्रन्थ 3:1-5,10

1) प्रभु के वाणी योना को दूसरी बार यह कहते हुए सुनाई पडी,

2) ’’उठो! महानगर निनीवे जा कर वहाँ के लोगों को उपदेश दो, जैसा कि मैंने तुम्हें बताया है’’।

3) इस पर योना उठ खडा हुआ और प्रभु के आज्ञानुसार निनीवे चला गया। निनीवे एक बहुत बड़ा शहर था। उसे पार करने में तीन दिन लगते थे।

4) योना ने उस में प्रवेश किया और एक दिन की यात्रा पूरी करने के बाद वह इस प्रकार उपदेश देने, लगा ’’चालीस दिन के बाद निनीवे का विनाश किया जायेगा’’।

5) निनीवे के लोगों ने ईश्वर की बात पर विश्वास किया। उन्होंने उपवास की घोषणा की और बडों से लेकर छोटों तक सबों ने टाट ओढ लिया।

10) ईश्वर ने देखा कि वे क्या कर रहे हैं और किस प्रकार उन्होंने कुमार्ग छोड दिया है, तो वह द्रवित हो गया और उसने जिस विपत्ति की धमकी दी थी, उसे उन पर नहीं आने दिया।

दूसरा पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 7:29-31

29) भाइयो! मैं आप लोगों से यह कहता हूँ - समय थोड़ा ही रह गया है। अब से जो विवाहित हैं, वे इस तरह रहे मानो विवाहित नहीं हों;

30) जो रोते है, मानो रोते नहीं हो; जो आनन्द मनाते हैं, मानो आनन्द नहीं मनाते हों; जो खरीद लेते हैं, मानो उनके पास कुछ नहीं हो;

31) जो इस दुनिया की चीज़ों का उपभोग करते है, मानो उनका उपभोग नहीं करते हों; क्योंकि जो दुनिया हम देखते हैं, वह समाप्त हो जाती है।

सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:14-20

14) योहन के गिरफ़्तार हो जाने के बाद ईसा गलीलिया आये और यह कहते हुए ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार करते रहे,

15) ’’समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।’’

16) गलीलिया के समुद्र के किनारे से हो कर जाते हुए ईसा ने सिमोन और उसके भाई अन्द्रेयस को देखा। वे समुद्र में जाल डाले रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे।

17) ईसा ने उन से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊँगा।’’

18) और वे तुरन्त अपने जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।

19) कुछ आगे बढ़ने पर ईसा ने जेबेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को देखा। वे भी नाव में अपने जाल मरम्मत कर रहे थे।

20) ईसा ने उन्हें उसी समय बुलाया। वे अपने पिता ज़ेबेदी को मज़दूरों के साथ नाव में छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।

मनन-चिंतन

आज के पाठों में हम देखते हैं कि ईश्वर मनुष्य को अपने ही जीवन के सहभागी बनाते हैं। परन्तु पाप कर मनुष्य ईश्वर से दूर चला जाता है। फिर भी ईश्वर उसे उनके पास लौटने का मौका प्रदान करते हैं।

पापी मनुष्य को पश्चात्ताप के लिए प्रेरित करने हेतु प्रभु ईश्वर कुछ सहयोगियों को चुनते हैं। आज का पहले पाठ हमें बताता है कि ईश्वर ने निनीवे के लोगों को पश्चात्ताप का सन्देश सुनाने के लिए नबी योना को चुनते हैं। योना शुरू में तो इस बुलाहट को अस्वीकार करते हैं। वे निनीवे के बदले तरशीश जाने का मन बनाता है। परन्तु रास्ते में उसे बहुत-सी कठिनाईयों तथा बाधाओं का सामना करना पडता है।

“ईश्वर न तो अपने वरदान वापस लेता और न अपना बुलावा रद्द करता है” (रोमियों 11:29)। ईश्वर उनका पीछा नहीं छोडते हैं। ईश्वर द्वारा दूसरी बार बुलाये जाने पर योना ईश्वर का वचन सुनाने के अपने कार्य को ठीक से करते हैं। इस के फलस्वरूप निनीवे के राजा और नागरिक पश्चात्ताप करते हैं। इस पर ईश्वर द्रवित हो कर महानगर निनीवे को विपत्तियों से बचाते हैं।

सुसमाचार में प्रभु येसु स्वयं पश्चात्ताप का सन्देश सुनाते हैं। इसी कार्य में शामिल होने के लिए वे कुछ साधारण लोगों को चुनते और बुलाते हैं। वे सिमोन और उसके भाई अन्द्रेयस को बुलाते हैं, और याकूब और उसके भाई योहन को भी। प्रभु ने उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊँगा” (मारकुस 1:17)।

किसी भी कार्य को ठीक से कारने के लिए हमें उस कार्य का ज्ञान और अनुभव प्राप्त करना चाहिए, उस कार्य के विभिन्न तरीके समझना चाहिए तथा उस के लिए सक्षम बनना चाहिए। ये मछुए मछली पकडने के लिए सक्षम थे। प्रभु येसु चाहते हैं कि वे इस क्षमता और अनुभव को एक आध्यात्मिक कार्य के लिए इस्तेमाल करें। वे मछली के मछुए थे। अब उन्हें मनुष्यों के मछुए बनना चाहिए।

प्रभु चाहते हैं कि प्रेरित अपने प्रेरिताई कार्य में अपनी क्षमताओं तथा प्रतिभाओं का उपयोग करें। इन चुने हुए लोगों को प्रभु येसु ने अपने ही समान सुसमाचार सुनाने का कार्य सौंप दिया। जो भी लोग सुसमाचार को सुन कर उसे ग्रहण करते हैं, उनके हृदय में पश्चात्ताप उत्पन्न होता है और वे ईश्वर के पास लौट जाते हैं। ईश्वर हमारे साथ रहना चाहते हैं। प्रभु येसु का नाम ही एम्मानुएल है (मत्ती 1:23) जिसका अर्थ है “ईश्वर हमारे साथ है”।

प्रभु ईश्वर चाहते हैं हम हमेशा उनके साथ रहें क्योंकि उसी में हमारा कल्याण है। मनुष्य पाप कर ईश्वर के साथ रहने से इनकार करता है। जब वह पश्चात्ताप करता है, तब वह ईश्वर के साथ रहने लगते हैं। हमें पापों से बचाने के लिए ही प्रभु येसु इस दुनिया में आये। उन्होंने हमें पापों से बचाने के लिए ही दुखभोग और क्रूस-मरण को स्वीकार किया। प्रभु येसु द्वारा प्राप्त मुक्ति को अपनाने के लिए हमें अपने पापों को छोड कर पश्चात्ताप कर येसु के पास पुन: लौटना चाहिए। “प्रज्ञा उस आत्मा में प्रवेश नहीं करती, जो बुराई की बातें सोचती है और उस शरीर में निवास नहीं करती, जो पाप के अधीन है; क्योंकि शिक्षा प्रदान करने वाला पवित्र आत्मा छल-कपट से घृणा करता है। वह मूर्खतापूर्ण विचारों को तुच्छ समझता और अन्याय से अलग रहता है।” (प्रज्ञा 1:4-5)

सुसमाचार हमारी मुक्ति का सन्देश है और इसलिए वह खुश खबरी है, आनन्द का समाचार है। हम अपने पापों के लिए पश्चात्ताप कर इस सुसमाचार को ग्रहण करें।

- फादर फ्रांसिस स्करिया

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