चक्र - ब - वर्ष का चौथा सामान्य रविवार



पहला पाठ :विधि-विवरण ग्रन्थ 18:15-20

15) तुम्हारा प्रभु ईश्वर तुम्हारे बीच, तुम्हारे ही भाइयों में से, तुम्हारे लिए मुझ-जैसा एक नबी उत्पन्न करेगा-तुम लोग उसकी बात सुनोगे।

16) जब तुम होरेब पर्वत के सामने एकत्र थे, तुमने अपने प्रभु-ईश्वर से यही माँगा था। तुम लोगों ने कहा था अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी हमें फिर सुनाई नहीं पडे़ और हम फिर भयानक अग्नि नहीं देखे। नहीं तो हम मर जायेंगे।

17) तब प्रभु ने मुझ से यह कहा, लोगों का कहना ठीक ही है।

18) मैं उनके ही भाइयों मे से इनके लिए तुम-जैसा ही नबी उत्पन्न करूँगा। मैं अपने शब्द उसके मुख मे रखूँगा और उसे जो-जो आदेश दूँगा, वह तुम्हें वही बताएगा।

19) वह मेरे नाम पर जो बातें कहेगा, यदि कोई उसकी उन बातों को नहीं सुनेगा, तो मैं स्वंय उस मनुष्य से उसका लेखा लूँगा।

20) यदि कोई नबी मेरे नाम पर ऐसी बात कहने का साहस करेगा, जिसके लिए मैंने उसे आदेश नहीं दिया, या वह अन्य देवताओं के नाम पर बोलेगा, तो वह मर जायेगा।’

दूसरा पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 7:32-35

32) मैं तो चाहता हूँ कि आप लोगों को कोई चिन्ता न हो। जो अविवाहित है, वह प्रभु की बातों की चिन्ता करता है। वह प्रभु को प्रसन्न करना चाहता है।

33) जो विवाहित है, वह दुनिया की बातों की चिन्ता करता है। वह अपनी पत्नी को प्रसन्न करना चाहता है।

34) उस में परस्पर-विरोधी भावों का संघर्ष है जिसका पति नहीं रह गया और जो कुँवारी है, वे प्रभु की बातों की चिन्ता करती है। तो विवाहित है, वह दुनिया की बातों की चिन्ता करती हैं, और अपने पति को प्रसन्न करना चाहती है।

35) मैं आप लोगों की भलाई के लिए यह कह रहा हूँ। मैं आपकी स्वतन्त्रता पर रोक लगाना नहीं चाहता। मैं तो आप लोगों के सामने प्रभु की अनन्य भक्ति का आदर्श रख रहा हूँ।

सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:21b-28

21) वे कफ़नाहूम आये। जब विश्राम दिवस आया, तो ईसा सभागृह गये और शिक्षा देते रहे।

22) लोग उनकी शिक्षा सुनकर अचम्भे में पड़ जाते थे; क्योंकि वे शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।

23) सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया,

24) ’’ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं- ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।’’

25) ईसा ने यह कहते हुए उसे डाँटा, ’’चुप रह! इस मनुष्य से बाहर निकल जा’’।

26) अपदूत उस मनुष्य को झकझोर कर ऊँचे स्वर से चिल्लाते हुए उस से निकल गया।

27) सब चकित रह गये और आपस में कहते रहे, ’’यह क्या है? यह तो नये प्रकार की शिक्षा है। वे अधिकार के साथ बोलते हैं। वे अशुद्ध आत्माओं को भी आदेश देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानते हैं।’’

28) ईसा की चर्चा शीघ्र ही गलीलिया प्रान्त के कोने-कोने में फैल गयी।

मनन-चिंतन

निर्गमन ग्रन्थ, अध्याय 3 में हमे देखते हैं कि ईश्वर ने जलती हुई झाडी में से मूसा को दर्शन दिया और उन्हें मिस्र देश में फिराऊन के पास जा कर इस्राएलियों छुडाने का आदेश दिया। तब उन्होंने मूसा से कहा, “मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैंने तुम को भेजा है, तुम्हारे लिए इसका प्रमाण यह होगा कि जब तुम इस्राएल को मिस्र से निकाल लाओगे, तो तुम लोग इस पर्वत पर प्रभु की आराधना करोगे (निर्गमन 3:12)। मिस्र देश से निकलने के ठीक तीन महीने बाद इस्राएली सीनई की मरुभूमि पहुँचे। प्रभु ईश्वर के आदेश के अनुसार मूसा ने इस्राएली लोगों को ईश्वर से मिलने के लिए एकत्रित किया। लेकिन इस्राएली लोग बहुत डरे हुए थे। निर्गमन 20:18-21 में हम पढ़ते हैं, “जब सब लोगों ने बादलों का गरजन, बिजलियाँ, नरसिंगे की आवाज़ और पर्वत से निकलता हुआ धुआँ देखा, तो वे भयभीत होकर काँपने लगे। वे कुछ दूरी पर खड़े रहे और मूसा से कहने लगे, “आप हम से बोलिए और हम आपकी बात सुनेंगे, किन्तु ईश्वर हम से नहीं बोले, नहीं तो हम मर जायेंगे।” मूसा ने लोगों को उत्तर दिया, ''डरो मत; क्योंकि ईश्वर तो तुम्हारी परीक्षा लेने आया है, जिससे तुम्हारे मन में उसके प्रति श्रद्धा बनी रहे और तुम पाप न करो। लोग दूर ही खड़े रहे, परन्तु मूसा उस सघन बादल के पास पहुँचा, जिसमें ईश्वर था।“

डरे सहमे लोगों को देख कर ईश्वर अपने आप को एक साधारण मनुष्य के रूप में प्रकट करने की बात करते हैं। इसलिए आज के पाठ में मूसा लोगों से कहते हैं, “तुम्हारा प्रभु ईश्वर तुम्हारे बीच, तुम्हारे ही भाइयों में से, तुम्हारे लिए मुझ-जैसा एक नबी उत्पन्न करेगा - तुम लोग उसकी बात सुनोगे। जब तुम होरेब पर्वत के सामने एकत्र थे, तुमने अपने प्रभु-ईश्वर से यही माँगा था। तुम लोगों ने कहा था अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी हमें फिर सुनाई नहीं पडे़ और हम फिर भयानक अग्नि नहीं देखे। नहीं तो हम मर जायेंगे। तब प्रभु ने मुझ से यह कहा, लोगों का कहना ठीक ही है। मैं उनके ही भाइयों मे से इनके लिए तुम-जैसा ही नबी उत्पन्न करूँगा। मैं अपने शब्द उसके मुख मे रखूँगा और उसे जो-जो आदेश दूँगा, वह तुम्हें वही बताएगा। वह मेरे नाम पर जो बातें कहेगा, यदि कोई उसकी उन बातों को नहीं सुनेगा, तो मैं स्वंय उस मनुष्य से उसका लेखा लूँगा।” (विधि-विवरण 18:15-19) प्रेरितों ने लोगों को सिखाया कि प्रभु येसु ही वह मूसा-जैसा नबी हैं (देखिए प्रेरित-चरित 3:22-23)। मसीह के विषय में नबी इसायाह ने भविष्यवाणी की थी, “यह न तो चिल्लायेगा और न शोर मचायेगा, बाजारों में कोई भी इसकी आवाज नहीं सुनेगा। यह न तो कुचला हुआ सरकण्डा ही तोड़ेगा और न धुआँती हुई बत्ती ही बुझायेगा। यह ईमानदारी से धार्मिकता का प्रचार करेगा।” (इसायाह 42:2-3)

हमारे ईश्वर एक श्रध्दालु ईश्वर है। वे हमारे कल्याण में रुचि रखते हैं। वे अपने आप को हमारे लिए उपगम्य (accessible), सुगम्य तथा मिलनसार बनाते हैं ताकि हम उनके पास जा सकें। दुनिया भर के गिरजाघरों के प्रकोशों में पवित्र परम प्रसाद में प्रभु रोटी के रूप में उपस्थित रहते हैं। पाप-स्वीकार संस्कार में उडाऊ पुत्र के प्रेममय पिता के समान पिता ईश्वर हमेशा उपस्थित रहते हैं। ईश्वर सर्वव्यापी है, वे सब जगह उपस्थित रहते हैं। जो कोई उनकी खोज करता है, वह उन्हें अवश्य ही पायेगा। नबी यिरमियाह से प्रभु ने कहा, “यह उस प्रभु की वाणी है, जिसने पृथ्वी बनायी, उसका स्वरूप गढ़ा और उसे स्थिर किया। उसका नाम प्रभु है। यदि तुम मुझे पुकारोगे, तो मैं तुम्हें उत्तर दूँगा और तुम्हें वैसी महान् तथा रहस्यमय बातें बताऊँगा, जिन्हें तुम नहीं जानते।” (यिरमियाह 33:2-3) यिरमियाह 29:12-14 में वचन कहता है, “जब तुम मुझे पुकारोगे और मुझ से प्रार्थना करोगे, तो मैं तुम्हारी प्रार्थना सुनूँगा। जब तुम मुझे ढूँढ़ोगे, तो मुझे पा जाओगे। यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूँढ़ोगे, तो मैं तुम्हे मिल जाऊँगा“- यह प्रभु की वाणी है- “और मैं तुम्हारा भाग्य पलट दूँगा।”

जब लोग प्रेम से मिल-जुल कर रहते हैं, तब ईश्वर न केवल उससे प्रसन्न होते हैं, बल्कि वे वहाँ अपने आप को प्रकट भी करते हैं। प्रभु येसु कहते हैं, “जहाँ दो या तीन मेरे नाम इकट्टे होते हैं, वहाँ में उनके बीच उपस्थित रहता हूँ” (मत्ती 18:20)। स्तोत्रकार कहता है, “वह उन सबों के निकट है, जो उसका नाम लेते हैं, जो सच्चे हृदय से उस से विनती करते हैं। जो उस पर श्रद्धा रखते हैं, वह उनका मनोरथ पूरा करता है। वह उनकी पुकार सुन कर उनका उद्धार करता है।” (स्तोत्र 145:18-19) प्रभु दीन-दुखियों के करीब हैं। “प्रभु दुहाई देने वालों की सुनता और उन्हें हर प्रकार के संकट से मुक्त करता है। प्रभु दुःखियों से दूर नहीं है। जिनका मन टूट गया, प्रभु उन्हें संभालता है।” (स्तोत्र 34:18-19)

प्रभु येसु सबके करीब थे और करीब है। उनकी संगति में लोग शांति और आनन्द महसूस करते हैं। बच्चे भी उन से मिलने आते थे। परन्तु शैतान और उसके दूत बेचैन होते हैं। यही आज का सुसमाचार हमें बताता है। प्रभु येसु सब को विश्राम प्रदान करते हैं। वे कहते हैं, “थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ। इस तरह तुम अपनी आत्मा के लिए शान्ति पाओगे, क्योंकि मेरा जूआ सहज है और मेरा बोझ हल्का।” (मत्ती 11:28-30)

आइए, हमारे बीच हमारे जैसे बन कर आने वाले ईश्वर की हम प्यार भरे हृदयों से आराधना करें।

- फादर फ्रांसिस स्करिया

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