चक्र - स - पवित्र परिवार का पर्व



पहला पाठ : प्रवक्ता-ग्रन्थ 3:2-6.12-14

2) पुत्रों! पिता की शिक्षा ध्यान से सुनो; उसका पालन करने में तुम्हारा कल्याण है।

3) प्रभु का आदेश है कि सन्तान अपने पिता का आदर करें ; उसने माता केा अपने बच्चों पर अधिकार दिया है।

4) जो अपने पिता पर श्रद्धा रखता है, वह अपने पापों का प्रायश्चित करता है

5) और जो अपनी माता का आदर करता है, वह मानो धन का संचय करता है।

6) जो अपने पिता का सम्मान करता है, उसे अपनी ही सन्तान से सुख मिलेगा और जब वह प्रार्थना करता है, तो ईश्वर उसकी सुन लेगा।

12) अपने पिता के अपमान पर गौरव मत करो, उसका अपयष तुम को शोभा नहीं देता।

13) पिता का सम्मान मनुष्य का गौरव है और माता का अपयष पुत्र को शोभा नहीं देता।

14) पुत्र! अपने बूढ़े पिता की सेवा करो। जब तक वह जीता रहता है, उसे उदास मत करो।

दूसरा पाठ : कलोसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 3:12-21

12) आप लोग ईश्वर की पवित्र एवं परमप्रिय चुनी हुई प्रजा है। इसलिए आप लोगों को अनुकम्पा, सहानुभूति, विनम्रता, कोमलता और सहनशीलता धारण करनी चाहिए।

13) आप एक दूसरे को सहन करें और यदि किसी को किसी से कोई शिकायत हो तो एक दूसरे को क्षमा करें। प्रभु ने आप लोगों को क्षमा कर दिया। आप लोग भी ऐसा ही करें।

14) इसके अतिरिक्त, आपस में प्रेम-भाव बनाये रखें। वह सब कुछ एकता में बाँध कर पूर्णता तक पहुँचा देता है।

15) मसीह की शान्ति आपके हृदय में राज्य करे। इसी शान्ति के लिए आप लोग, एक शरीर के अंग बन कर, बुलाये गये हैं। आप लोग कृतज्ञ बने रहें।

16) मसीह की शिक्षा अपनी परिपूर्णता में आप लोगों में निवास करें। आप बड़ी समझदारी से एक दूसरे को शिक्षा और उपदेश दिया करें। आप कृतज्ञ हृदय से ईश्वर के आदर में भजन, स्तोत्र और आध्यात्मिक गीत गाया करें।

17) आप जो भी कहें या करें, वह सब प्रभु ईसा के नाम पर किया करें। आप लोग उन्हीं के द्वारा पिता-परमेश्वर को धन्यवाद देते रहें।

18) जैसा कि प्रभु-भक्तों के लिए उचित है, पत्नियाँ अपने पतियों के अधीन रहें।

19) पति अपनी पत्नियों को प्यार करें और उनके साथ कठोर व्यवहार नहीं करें।

20) बच्चे सभी बातों में अपने माता पिता की आज्ञा मानें, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है ।

21) पिता अपने बच्चों को खिझाया नहीं करें। कहीं ऐसा न हो कि उनका दिल टूट जाये।

सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 2:41-52

41) ईसा के माता-पिता प्रति वर्ष पास्का पर्व के लिए येरुसालेम जाया करते थे।

42) जब बालक बारह बरस का था, तो वे प्रथा के अनुसार पर्व के लिए येरुसालेम गये।

43) पर्व समाप्त हुआ और वे लौट पडे़; परन्तु बालक ईसा अपने माता-पिता के अनजाने में येरुसालेम में रह गया।

44) वे यह समझ रहे थे कि वह यात्रीदल के साथ है; इसलिए वे एक दिन की यात्रा पूरी करने के बाद ही उसे अपने कुटुम्बियों और परिचितों के बीच ढूँढ़ते रहे।

45) उन्होंने उसे नहीं पाया और वे उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते येरुसालेम लौटे।

46) तीन दिनों के बाद उन्होंने ईसा को मन्दिर में शास्त्रियों के बीच बैठे, उनकी बातें सुनते और उन से प्रश्न करते पाया।

47) सभी सुनने वाले उसकी बुद्धि और उसके उत्तरों पर चकित रह जाते थे।

48) उसके माता-पिता उसे देख कर अचम्भे में पड़ गये और उसकी माता ने उस से कहा “बेटा! तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? देखो तो, तुम्हारे पिता और मैं दुःखी हो कर तुम को ढूँढते रहे।“

49) उसने अपने माता-पिता से कहा, “मुझे ढूँढ़ने की ज़रूरत क्या थी? क्या आप यह नहीं जानते थे कि मैं निश्चय ही अपने पिता के घर होऊँगा?“

50) परन्तु ईसा का यह कथन उनकी समझ में नहीं आया।

51) ईसा उनके साथ नाज़रेत गये और उनके अधीन रहे। उनकी माता ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा।

52) ईसा की बुद्धि और शरीर का विकास होता गया। वह ईश्वर तथा मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ते गये।

मनन-चिंतन

विभिन्न देशों से आये ख्रीस्तीय युवाओं का एक दल सुसमाचार आदान-प्रदान एवं नई जगहों पर कलीसिया की स्थापना करने के तौर तरीकों के बारे में चर्चा कर रहे थे। सबों ने अपनी-अपनी कलीसियाओं के तरीके व पद्धति की जानकारी दी - पुस्तकों, ख्रीस्तीय फिल्म, वचन की घोषणा, चंगाई सभा द्वारा, आदि। आफ्रिका से आयी एक युवति का कहना था – “हम लोगों की कलीसिया में उपरोक्त बडे-बडे कार्य करने के लिए पूँजी नहीं है। हम लोगों की पद्धति बिल्कुल सरल है। जहॉ हम कलीसिाया की स्थापना करना चाहते है वहॉ हम एक अच्छे ख्रीस्तीय परिवार को चुनकर भेजते हैं, वह परिवार वहॉ जाकर लोगों के बीच में रहता है और पूरा ग्राम ख्रीस्तीय बन जाता है”।

दो हजार वर्ष पूर्व ईश्वर ने इस संसार में, यूदा देश के नाज़रेत ग्राम में एक परिवार को स्थापित किया जिस के द्वारा संसार के लिए ईश्वर का मुक्ति-विधान प्रकट हो जाये। येसु, माता मरियम, और यूसुफ का यह पवित्र परिवार सभी ख्रीस्तीय परिवारों का आदर्श एवं नींव है। यह पवित्र परिवार कलीसिया का लघु रूप है। अतः ख्रीस्तीय परिवारों में पवित्र परिवार का आदर सम्मान होता है और उसकी मध्यस्थता से प्रार्थना की जाती है। ख्रीस्तीय परिवारों को नाजरेत के पवित्र परिवार को आदर्श मानकर उसके पदचिन्हों पर चलना ही आधुनिक परिवारों की समस्याओं, विघटन एवं संघर्ष का समाधान है। नाजरेत का पवित्र परिवार समस्यारहित नहीं बल्कि समस्याओं से घिरा था। मरियम और यूसुफ के एक साथ आने के पहले ही उनका वैवाहिक जीवन टूटने के कगार पर था। येसु के जन्म के बाद राजा हेरेद की तलवार से येसु को बचाने हेतु मिश्र देश के लिए उन्हें पलायन करना पडा और फिर नाजरेत ग्राम में वापसी। सैकडों मील की पैदल यात्रा, हेरोद राजा के सैनिकों से खतरा, जंगल व पहाड, भोजन व पानी का अभाव, रहने की जगह की कमी आदि। इन समस्याओं में, मरियम और यूसुफ ने ईश्वर की इच्छा को परखा और स्वयं को ईश्वरीय इच्छानुसार समर्पित किया।

येसु के खो जाने पर व्यथित होकर येसु को खोजते मरियम और यूसुफ को आज के सुसमाचार में हम पाते हैं। ममता भरी मॉ मरियम के सवाल पर येसु मरियम से कहते हैं - “मुझे ढूँढने की जरूरत क्या थी? क्या आप यह नहीं जानते थे कि मैं निश्चय ही अपने पिता के घर में होउॅगा?” इन शब्दों से येसु मरियम और यूसुफ को यह अहसास दे रहे थे कि येसु की प्राथमिकता पिता ईश्वर का कार्य है, न कि अन्य कोई भी कार्य। अपने इस जवाब द्वारा येसु माता मरियम और संत यूसुफ को आने वालह पीडा और मृत्यु की ओर भी संकेत कर रहे हैं। मरियम को क्रूस के नीचे खडी होकर अपने दिव्य पु़त्र को पिता के हाथों में बलि देना होगा और दुख की “एक तलवार मरियम के हृदय को आरपार बेधेगी” (लूकस 2:35)। इन दुखों की तुलना में येसु को खो जाने पर अनुभव किया दुख तुच्छ मात्र है। येसु को पाने के आनन्द से कई गुणा बढकर होगा येसु के पुनरूद्धान में मरियम का आनन्द।

ईश्वर के पुत्र येसु मसीह ने माता मरियम और संत यूसुफ के “अधीन रह कर नाजरेत में निवास किया” (लूकस 2:51)। नाजरेत के परिवार में रहकर अपने पिता ईश्वर की इच्छा पूरी करने वाले येसु, ईश्वर की इच्छा की पूर्ति हेतु समर्पित मॉ मरियम और पालक पिता यूसुफ!

नाजरत के परिवार जैसे अपने परिवारों को बनाने का प्रयास ही असली ख्रीस्तीय जीवन है। समाज और कलीसिया को पवित्र करने के लिए हम अपने परिवार को पवित्र बनायें। हमारा परिवार पवित्र तब बनेगा जब हर सदस्य अपनी जिम्मेदारियों की पूर्ति लगन से करेंगे और एक दूसरे के लिए जीयेंगे।

माता-पिता का हर शब्द और कार्य बच्चों का चरित्र बनाता है।

पिता अपने बच्चों से जो कहता है उसे चाहे संसार उसे नहीं सुनता हो किंतु आने वाली पीढियों में वह बात सुनाई देती है; बच्चों के लिए पालने में गाया मॉ का गीत उनके कब्र तक साथ जाता है।

बच्चों को येसु जैसे माता-पिता के अधीन रह कर बुद्धि और शरीर के विकास करने में ही सही विकास होता है जिस के लिए पारिवारिक वातावरण अति आवश्यक है। परिवारों की पवित्रता को पवित्र परिवार जैसे जीना होता है। हमारे जीवन के हर क्षण, विशेषकर मृत्यु के समय, पवित्र परिवार के सदस्यों का नाम - येसु, मरियम, यूसुफ - हमारे होठों पर रहें जो हमें पवित्र कर ईश्वर की संगति में रखेंगे ।

हमारे परिवार नाजरेत के परिवार जैसे येसु का साक्ष्य देनेवाले परिवार बन जायें ।

फादर डोमिनिक थॉमस – जबलपूर धर्मप्रान्त


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Praise the Lord!