चक्र - स - पुण्य शुक्रवार



पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 52:13-53:12

13) देखो! मेरा सेवक फलेगा-फूलेगा। वह महिमान्वित किया जायेगा और अत्यन्त महान् होगा।

14) उसकी आकृति इतनी विरूपित की गयी थी कि वह मनुय नही जान पड़ता था; लोग देख कर दंग रह गये थे।

15) उसकी ओर बहुत-से राष्ट्र आश्चर्यचकित हो कर देखेंगे और उसके सामने राजा मौन रहेंगे; क्योंकि उनके सामने एक अपूर्व दृश्य प्रकट होगा और जो बात कभी सुनने में नहीं आयी, वे उसे अपनी आँखों से देखेंगे।

1) किसने हमारे सन्देश पर विश्वास किया? प्रभु का सामर्थ्य किस पर प्रकट हुआ है?

2) वह हमारे सामने एक छोटे-से पौधे की तरह, सूखी भूमि की जड़ की तरह बढ़ा। हमने उसे देखा था; उसमें न तो सुन्दरता थी, न तेज और न कोई आकर्षण ही।

3) वह मनुयों द्वारा निन्दित और तिरस्कृत था, शोक का मारा और अत्यन्त दुःखी था। लोग जिन्हें देख कर मुँह फेर लेते हैं, उनकी तरह ही वह तिरस्कृत और तुच्छ समझा जाता था।

4) परन्तु वह हमारे ही रोगों का अपने ऊपर लेता था और हमारे ही दुःखों से लदा हुआ था और हम उसे दण्डित, ईश्वर का मारा हुआ और तिरस्कृत समझते थे।

5) हमारे पापों के कारण वह छेदित किया गया है। हमारे कूकर्मों के कारण वह कुचल दिया गया है। जो दण्ड वह भोगता था, उसके द्वारा हमें शान्ति मिली है और उसके घावों द्वारा हम भले-चंगे हो गये हैं।

6) हम सब अपना-अपना रास्ता पकड़ कर भेड़ों की तरह भटक रहे थे। उसी पर प्रभु ने हम सब के पापों का भार डाला है।

7) वह अपने पर किया हुआ अत्याचार धैर्य से सहता गया और चुप रहा। वध के लिए ले जाये जाने वाले मेमने की तरह और ऊन कतरने वाले के सामने चुप रहने वाली भेड़ की तरह उसने अपना मुँह नहीं खोला।

8) वे उसे बन्दीगृह और अदालत ले गये; कोई उसकी परवाह नहीं करता था। वह जीवितों के बीच में से उठा लिया गया है और वह अपने लोगों के पापों के कारण मारा गया है।

9) यद्यपि उसने कोई अन्याय नहीं किया था और उसके मुँह से कभी छल-कपट की बात नहीं निकली थी, फिर भी उसकी कब्र विधर्मियों के बीच बनायी गयी और वह धनियों के साथ दफ़नाया गया है।

10) प्रभु ने चाहा कि वह दुःख से रौंदा जाये। उसने प्रायश्चित के रूप में अपना जीवन अर्पित किया; इसलिए उसका वंश बहुत दिनों तक बना रहेगा और उसके द्वारा प्रभु की इच्छा पूरी होगी।

11) उसे दुःखभोग के कारण ज्योति और पूर्ण ज्ञान प्राप्त होगा। उसने दुःख सह कर जिन लोगों का अधर्म अपने ऊपर लिया था, वह उन्हें उनके पापों से मुक्त करेगा।

12) इसलिए मैं उसका भाग महान् लोगों के बीच बाँटूँगा और वह शक्तिशाली राजाओं के साथ लूट का माल बाँटेगा; क्योंकि उसने बहुतों के अपराध अपने ऊपर लेते हुए और पापियों के लिए प्रार्थना करते हुए अपने को बलि चढ़ा दिया और उसकी गिनती कुकर्मियों में हुई।

दूसरा पाठ : इब्रानियों के नाम पत्र 4:14-16;5:7-9

14) हमारे अपने एक महान् प्रधानयाजक हैं, अर्थात् ईश्वर के पुत्र ईसा, जो आकाश पार कर चुके हैं। इसलिए हम अपने विश्वास में सुदृढ़ रहें।

15) हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है।

16) इसलिए हम भरोसे के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास जायें, जिससे हमें दया मिले और हम वह कृपा प्राप्त करें, जो हमारी आवश्यकताओं में हमारी सहायता करेगी।

7) मसीह ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार कर और आँसू बहा कर ईश्वर से, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थना और अनुनय-विनय की। श्रद्धालुता के कारण उनकी प्रार्थना सुनी गयी।

8) ईश्वर का पुत्र होने पर भी उन्होंने दुःख सह कर आज्ञापालन सीखा।

9 (9-10) वह पूर्ण रूप से सिद्ध बन कर और ईश्वर से मेलखि़सेदेक की तरह प्रधानयाजक की उपाधि प्राप्त कर उन सबों के लिए मुक्ति के स्रोत बन गये, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।

सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 18:1-19:42

1) यह सब कहने के बाद ईसा अपने शिष्यों के साथ केद्रेान नाले के उस पार गये। वहाँ एक बारी थी। उन्होंने अपने शिष्यों के साथ उस में प्रवेश किया।

2) उनके विश्वासघाती यूदस को भी वह जगह मालूम थी, क्योंकि ईसा अक्सर अपने शिष्यों के साथ वहाँ गये थे।

3) इसलिये यूदस पलटन और महायाजकों तथा फ़रीसियों के भेजे हुये प्यादों के साथ वहाँ आ पहुँचा। वे लोग लालटेनें मशालें और हथियार लिये थे।

4) ईसा, यह जान कर कि मुझ पर क्या-क्या बीतेगी आगे बढे और उन से बोले, ’’किसे ढूढतें हो?’’

5) उन्होंने उत्तर दिया, ’’ईसा नाज़री को’’। ईसा ने उन से कहा, ’’मैं वही हूँ’’। वहाँ उनका विश्वासघाती यूदस भी उन लोगों के साथ खडा था।

6) जब ईसा ने उन से कहा, ’मैं वही हूँ’ तो वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पडे।

7) ईसा ने उन से फि़र पूछा, ’’किसे ढूढते हो?’’ वे बोले, ’’ईसा नाजरी को’’।

8) इस पर ईसा ने कहा, ’’मैं तुम लोगों से कह चुका हूँ कि मैं वही हूँ। यदि तुम मुझे ढूँढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।’’

9) यह इसलिये हुआ कि उनका यह कथन पूरा हो जाये- तूने मुझ को जिन्हें सौंपा, मैंने उन में से एक का भी सर्वनाश नहीं होने दिया।

10) उस समय सिमोन पेत्रुस ने अपनी तलवार खींच ली और प्रधानयाजक के नौकर पर चलाकर उसका दाहिना कान उडा दिया। उस नौकर का नाम मलखुस था।

11) ईसा ने पेत्रुस से कहा, ’’तलवार म्यान में कर लो। जो प्याला पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे नहीं पिऊँ?’’

12) तब पलटन, कप्तान और यहूदियों के प्यादों ने ईसा को पकड कर बाँध लिया।

13) वे उन्हें पहले अन्नस के यहाँ ले गये; क्योंकि वह उस वर्ष के प्रधानयाजक कैफस का ससुर था।

14) यह वही कैफस था जिसने यहूदियों को यह परामर्श दिया था- अच्छा यही है कि राष्ट्र के लिये एक ही मनुष्य मरे।

15) सिमोन पेत्रुस और एक दूसरा शिष्य ईसा के पीछे-पीछे चले। यह शिष्य प्रधानयाजक का परिचित था और ईसा के साथ प्रधानयाजक के प्रांगण में गया,

16) किन्तु पेत्रुस फाटक के पास बाहर खडा रहा। इसलिये वह दूसरा शिष्य जो प्रधानयाजक का परिचित था, फि़र बाहर गया और द्वारपाली से कहकर पेत्रुस को भीतर ले आया।

17) द्वारपाली ने पेत्रुस से कहा, ’’कहीं तुम भी तो उस मनुष्य के शिष्य नहीं हो?’’ उसने उत्तर दिया, ’’नहीं हूँ’’।

18) जाड़े के कारण नौकर और प्यादे आग सुलगा कर ताप रहे थे। पेत्रुस भी उनके साथ आग तापता रहा।

19) प्रधानयाजक ने ईसा से उनके शिष्यों और उनकी शिक्षा के विषय में पूछा।

20) ईसा ने उत्तर दिया, ’’मैं संसार के सामने प्रकट रूप से बोला हूँ। मैंने सदा सभागृह और मन्दिर में जहाँ सब यहूदी एकत्र हुआ करते हैं, शिक्षा दी है। मैंने गुप्त रूप से कुछ नहीं कहा।

21) यह आप मुझ से क्यों पूछते हैं? उन से पूछिये जिन्होंने मेरी शिक्षा सुनी है। वे जानते हैं कि मैंने क्या-क्या कहा।’’

22) इस पर पास खडे प्यादों में से एक ने ईसा को थप्पड मार कर कहा, “तुम प्रधानयाजक को इस तरह जवाब देते हो?“

23) ईसा ने उस से कहा, ’’यदि मैंने गलत कहा, तो गलती बता दो और यदि ठीक कहा तो, मुझे क्यों मारते हो?’’

24) इसके बाद अन्नस ने बाँधें हुये ईसा को प्रधानयाजक कैफस के पास भेजा।

25) सिमोन पेत्रुस उस समय आग ताप रहा था। कुछ लोगों ने उस से कहा, ’’कहीं तुम भी तो उसके शिष्य नहीं हो?’’ उसने अस्वीकार करते हुये कहा, ’’नहीं हूँ’’।

26) प्रधानयाजक का एक नौकर उस व्यक्ति का सम्बन्धी था जिसका कान पेत्रुस ने उडा दिया था। उसने कहा, ’’क्या मैंने तुम को उसके साथ बारी में नहीं देखा था?

27) पेत्रुस ने फिर अस्वीकार किया और उसी क्षण मुर्गे ने बाँग दी।

28) तब वे ईसा को कैफस के यहाँ से राज्य पाल के भवन ले गये। अब भोर हो गया था। वे भवन के अन्दर इसलिये नहीं गये कि अशुद्व न हो जायें, बल्कि पास्का का मेमना खा सकें।

29) पिलातुस बाहर आकर उन से मिला और बोला, ’’आप लोग इस मनुष्य पर कौन सा अभियोग लगाते हैं?’’

30) उन्होने उत्तर दिया, ’’यदि यह कुकर्मी नहीं होता, तो हमने इसे आपके हवाले नहीं किया होता’’।

31) पिलातुस ने उन से कहा, ’’आप लोग इसे ले जाइए और अपनी संहिता के अनुसार इसका न्याय कीजिये।’’ यहूदियों ने उत्तर दिया, ’’हमें किसी को प्राणदंण्ड देने का अधिकार नहीं है’’।

32) यह इसलिये हुआ कि ईसा का वह कथन पूरा हो जाये, जिसके द्वारा उन्होने संकेत किया था कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी। 33) तब पिलातुस ने फिर भवन में जा कर ईसा को बुला भेजा और उन से कहा, ’’क्या तुम यहूदियों के राजा हो?’’

34) ईसा ने उत्तर दिया, ’’क्या आप यह अपनी ओर से कहते हैं या दूसरों ने आप से मेरे विषय में यह कहा है?’’

35) पिलातुस ने कहा, ’’क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारे ही लोगों और महायाजकों ने तुम्हें मेरे हवाले किया। तुमने क्या किया है।’’

36) ईसा ने उत्तर दिया, ’’मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।’’

37) इस पर पिलातुस ने उन से कहा, ’’तो तुम राजा हो?’’ ईसा ने उत्तर दिया, ’’आप ठीक ही कहते हैं। मैं राजा हूँ। मैं इसलिये जन्मा और इसलिये संसार में आया हूँ कि सत्य के विषय में साक्ष्य पेश कर सकूँ। जो सत्य के पक्ष में है, वह मेरी सुनता है।’’

38) पिलातुस ने उन से कहा, ’’सत्य क्या है?’’ वह यह कहकर फिर बाहर गया और यहूदियों के पास आ कर बोला, ’’मैं तो उस में कोई दोष नहीं पाता हूँ,

39) लेकिन तुम्हारे लिये पास्का के अवसर पर एक बन्दी को रिहा करने का रिवाज है। क्या तुम लोग चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को रिहा कर दूँ?’’

40) इस पर वे चिल्ला उठे, ’’इसे नहीं, बराब्बस को’’। बराब्बस डाकू था।

1) तब पिलातुस ने ईसा को ले जा कर कोडे लगाने का आदेश दिया।

2) सैनिकेां ने काँटों का मुकुट गूँथ कर उनके सिर पर रख दिया और उन्हें बैंगनी कपडा पहनाया।

3) फिर वे उनके पास आ-आ कर कहते थे, ’’यहूदियों के राजा प्रणाम!’’ और वे उन्हें थप्पड मारते जाते थे।

4) पिलातुस ने फिर बाहर जा कर लोगों से कहा, ’’देखो मैं उसे तुम लोगों के सामने बाहर ले आता हूँ, जिससे तुम यह जान लो कि मैं उस में कोई दोष नहीं पाता’’।

5) तब ईसा काँटों का मुकुट और बैगनी कपडा पहने बाहर आये। पिलातुस ने लोगों से कहा, ’’यही है वह मनुष्य!’’

6) महायाजक और प्यादे उन्हें देखते ही चिल्ला उठे, ’’इसे क्रूस दीजिये! इसे क्रूस दीजिये!’’ पिलातुस ने उन से कहा, ’’इसे तुम्हीं ले जाओ और क्रूस पर चढाओ। मैं तो इस में कोई दोष नहीं पाता।’’

7) यहूदियों ने उत्तर दिया, ’’हमारी एक संहिता है और उस संहिता के अनुसार यह प्राणदंण्ड के योग्य है, क्योंकि इसने ईश्वर का पुत्र होने का दावा किया है।’’

8) पिलातुस यह सुनकर और भी डर गया।

9) उसने फिर भवन के अन्दर जा कर ईसा से पूछा, ’’तुम कहाँ के हो?’’ किन्तु ईसा ने उसे उत्तर नहीं दिया।

10) इस पर पिलातुस ने उन से कहा, ’’तुम मुझ से क्यों नहीं बोलते? क्या तुम यह नहीं जानते कि मुझे तुम को रिहा करने का भी अधिकार है और तुम को क्रूस पर चढ़वाने का भी?

11) ईसा ने उत्तर दिया, ’’यदि आप को ऊपर से अधिकार न दिया गया होता तो आपका मुझ पर कोई अधिकार नहीं होता। इसलिये जिसने मुझे आपके हवाले किया, वह अधिक दोषी है।’’

12) इसके बाद पिलातुस ईसा को मुक्त करने का उपाय ढूँढ़ता रहा, परन्तु यहूदी यह कहते हुये चिल्लाते रहे, ’’यदि आप इसे रिहा करते हैं, तो आप कैसर के हितेषी नहीं हैं। जो अपने को राजा कहता है वह कैसर का विरोध करता है।’’

13) यह सुनकर पिलातुस ने ईसा को बाहर ले आने का आदेश दिया। वह अपने न्यायासन पर उस जगह, जो लिथोस-त्रोतोस, और इब्रानी में गबूबथा, कहलाती है, बैठ गया।

14) पास्का की तैयारी का दिन था। लगभग दोपहर का समय था। पिलातुस ने यहूदियों से कहा, ’’यही ही तुम्हारा राजा!’’

15) इस पर वे चिल्ला उठे, ’’ले जाइये! ले जाइए! इसे क्रूस दीजिये!’’ पिलातुस ने उन से कहा क्या, ’’मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढवा दूँ?’’ महायाजकों ने उत्तर दिया, ’’कैसर के सिवा हमारा कोई राजा नहीं’’।

16) तब पिलातुस ने ईसा को कू्रस पर चढाने के लिये उनके हवाले कर दिया।

17) वे ईसा को ले गये और वह अपना कू्रस ढोते हुये खोपडी की जगह नामक स्थान गये। इब्रानी में उसका नाम गोलगोथा है।

18) वहाँ उन्होंने ईसा को और उनके साथ और दो व्यक्तियों को कू्रस पर चढाया- एक को इस ओर, दूसरे को उस ओर और बीच में ईसा को।

19) पिलातुस ने एक दोषपत्र भी लिखवा कर क्रूस पर लगवा दिया। वह इस प्रकार था- ’’ईसा नाज़री यहूदियों का राजा।’’

20) बहुत-से यहूदियों ने यह दोषपत्र पढा क्योंकि वह स्थान जहाँ ईसा कू्स पर चढाये गय थे, शहर के पास ही था और दोष पत्र इब्रानी, लातीनी और यूनानी भाषा में लिखा हुआ था।

21) इसलिये यहूदियों के महायाजकों ने पिलातुस से कहा, ’’आप यह नहीं लिखिये- यहूदियों का राजा; बल्कि- इसने कहा कि मैं यहूदियों का राजा हूँ’’।

22) पिलातुस ने उत्तर दिया, ’’मैंने जो लिख दिया, सो लिख दिया।’’

23) ईसा को कू्रस पर चढाने के बाद सैनिकों ने उनके कपडे ले लिये और कुरते के सिवा उन कपडों के चार भाग कर दिये- हर सैनिक के लिये एक-एक भाग। उस कुरते में सीवन नहीं था, वह ऊपर से नीचे तक पूरा-का-पूरा बुना हुआ था।

24) उन्होंने आपस में कहा, ’’हम इसे नहीं फाडें। चिट्ठी डालकर देख लें कि यह किसे मिलता है। यह इसलिये हुआ कि धर्मग्रंथ का यह कथन पूरा हो जाये- उन्होंने मेरे कपडे आपस में बाँट लिये और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली। सैनिकेां ने ऐसा ही किया।

25) ईसा की माता, उसकी बहिन, क्लोपस की पत्नि मरियम और मरियम मगदलेना उनके कू्रस के पास खडी थीं।

26) ईसा ने अपनी माता को और उनके पास अपने उस शिष्य को, जिसे वह प्यार करते थे देखा। उन्होंने अपनी माता से कहा, ’’भद्रे! यह आपका पुत्र है’’।

27) इसके बाद उन्होंने उस शिष्य से कहा, ’’यह तुम्हारी माता है’’। उस समय से उस शिष्य ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया।

28) तब ईसा ने यह जान कर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका है, धर्मग्रन्थ का लेख पूरा करने के उद्देश्य से कहा, ’’मैं प्यासा हूँ’’।

29) वहाँ खट्ठी अंगूरी से भरा एक पात्र रखा हुआ था। लेागों ने उस में एक पनसोख्ता डुबाया और उसे जूफ़े की डण्डी पर रख कर ईसा के मुख से लगा दिया।

30) ईसा ने खट्ठी अंगूरी चखकर कहा, ’’सब पूरा हो चुका है’’। और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिये।

31) वह तैयारी का दिन था। यहूदी यह नहीं चाहते थे कि शव विश्राम के दिन कू्रस पर रह जाये क्योंकि उस विश्राम के दिन बड़ा त्यौहार पडता था। उन्होंने पिलातुस से निवेदन किया कि उनकी टाँगें तोड दी जाये और शव हटा दिये जायें।

32) इसलिये सैनिकेां ने आकर ईसा के साथ क्रूस पर चढाये हुये पहले व्यक्ति की टाँगें तोड दी, फिर दूसरे की।

33) जब उन्होंने ईसा के पास आकर देखा कि वह मर चुके हैं तो उन्होंने उनकी टाँगें नहीं तोडी;

34) लेकिन एक सैनिक ने उनकी बगल में भाला मारा और उस में से तुरन्त रक्त और जल बह निकला।

35) जिसने यह देखा है, वही इसका साक्ष्य देता है, और उसका साक्ष्य सच्चा है। वह जानता है कि वह सच बोलता है, जिससे आप लोग भी विश्वास करें।

36) यह इसलिये हुआ कि धर्मग्रंथ का यह कथन पूरा हो जाये- उसकी एक भी हड्डी नहीं तोडी जायेगी;

37) फिर धर्मग्रन्थ का एक दूसरा कथन इस प्रकार है- उन्होंने जिसे छेदा, वे उसी की ओर देखेगें।

38) इसके बाद अरिमथिया के यूसुफ ने जो यहूदियों के भय के कारण ईसा का गुप्त शिष्य था, पिलातुस से ईसा का शब ले जाने की अनुमति माँगी। पिलातुस ने अनुमति दे दी। इसलिये यूसुफ आ कर ईसा का शव ले गया।

39) निकोदेमुस भी पहुँचा, जो पहले रात को ईसा से मिलने आया था। वह लगभग पचास सेर का गंधरस और अगरू का सम्मिश्रण लाया।

40) उन्होंने ईसा का शव लिया और यहूदियों की दफन की प्रथा के अनुसार उसे सुगंधित द्रव्यों के साथ छालटी की पट्टियों में लपेटा।

41) जहाँ ईसा कू्रस पर चढाये गये थे, वहाँ एक बारी थी और उस बारी में एक नयी कब्र, जिस में अब तक कोई नहीं रखा गया था।

42) उन्होंने ईसा को वहीं रख दिया, क्योंकि वह यहूदियों के लिये तेयारी का दिन था और वह कब्र निकट ही थी।

मनन-चिंतन

एक गैरख्रीस्तीय व्यक्ति अपनी पत्नी को लेकर ख्रीस्तीय मिशनरियों द्वारा संचालित एक अस्पताल गया। उसकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार थी। इसलिए वह बहुत चिंतित और बेचैन था। उसने वहाँ एक प्रार्थनालय देखा। उसने सोचा कि मन को शान्त करने के लिए थोडी देर प्रार्थनालय में बैठ जाता हूँ। उसने प्रार्थनालय में प्रवेश किया। उसने क्रूसित प्रभु की मूर्ति की ओर देखा और सोचने लगा कि यह तो मुझ से भी ज़्यादा परेशान दिख रहा है, यह मेरी मदद कैसे कर सकता है? परन्तु, कुछ ही क्षण में उसकी सोच बदल गयी। उसे लगा कि यह मुझ से भी ज़्यादा परेशान है, इसने मुझ से भी ज़्यादा दुख-दर्द का अनुभव किया। इसलिए यह मेरी परेशानी को आसानी से समझेगा, यह मेरे दुख-दर्द को ठीक से जानता है। फिर वह जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर अपनी समस्याओं को क्रूसित प्रभु के सामने रखने लगा। उसे एक प्रकार की शांति महसूस हुयी। उसे लगा कि उसका बोझ हलका हो गया।

पवित्र वचन कहता है, “हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है। इसलिए हम भरोसे के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास जायें, जिससे हमें दया मिले और हम वह कृपा प्राप्त करें, जो हमारी आवश्यकताओं में हमारी सहायता करेगी।” (इब्रानियों 4:15-16)

यह सच है कि इतिहास में प्रभु येसु के समान किसी ने इतना दुख-दर्द नहीं सहा। कई धर्मों के देवी-देवताएं शारीरिक रीति से ही बहुत शक्तिशाली दिखते हैं। किसी के कई हाथ होते हैं, किसी के कई सिर और कई देवताओं के हाथों में भाले या तलवार जैसे हथियार भी होते हैं। अगर कोई वर्तमान युग में देवी-देवताओं की कल्पना करता है तो वे शायद ए.के-47 राइफल लेकर खडे होते नजर आयेंगे। यह सच नहीं है कि हमारे प्रभु ईश्वर के पास कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं हैं। उनके पास एक अन्य प्रकार के अस्त्र शस्त्र हैं। हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के अस्त्र-शस्त्र आध्यात्मिक जीवन के अस्त्र-शस्त्र होते हैं। वे हमारे पास प्यार, दया और अनुकम्पा लेकर आते हैं। संत पौलुस हमें बताते हैं कि प्रभु येसु के अनुयायियों को किस प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण करना चाहिए। “आप ईश्वर के अस्त्र-शस्त्र धारण करें, जिससे आप दुर्दिन में शत्रु का सामना करने में समर्थ हों और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें। आप सत्य का कमरबन्द कस कर, धार्मिकता का कवच धारण कर और शान्ति-सुसमाचार के उत्साह के जूते पहन कर खड़े हों। साथ ही विश्वास की ढाल धारण किये रहें। उस से आप दुष्ट के सब अग्निमय बाण बुझा सकेंगे। इसके अतिरिक्त मुक्ति का टोप पहन लें और आत्मा की तलवार - अर्थात् ईश्वर का वचन - ग्रहण करें।” (एफेसियों 6:13-17)

क्रूस पर टंगे प्रभु येसु हमारे लिए केवल एक आदर्श नहीं हैं। वह हमारे ईश्वर है जो हमारे सामने हमारे अपने जीवन के रहस्यों को प्रकट करते हैं। जो जीवन हमने उनसे पाया है, उस जीवन को हमें किस प्रकार निभाना चाहिए – यह भी प्रभु हमें बताते हैं। क्रूस विश्वासियों के दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है। इसी कारण प्रभु ने अपने शिष्यों से अपने प्रतिदिन के क्रूस उठा कर उनके पीछे चलने को कहा है (देखिए लूकस 9:23)। क्रूस हमारी मुक्ति का मार्ग है। प्रवक्ता ग्रन्थ, अध्याय 4 इस बात पर प्रकाश डालता है कि ईश्वर की प्रज्ञा की खोज में निकलने वालों के साथ क्या होता है। ईश्वर उन्हें प्यार करते हैं, उन्हें आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करते हैं। लेकिन यह सब प्रदान करने की प्रक्रिया उतनी सरल नहीं है। पवित्र वचन कहता है, “प्रारम्भ में प्रज्ञा उसे टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर ले चलेगी और उसकी परीक्षा लेगी। वह उस में भय तथा आतंक उत्पन्न करेगी। वह अपने अनुशासन से उसे उत्पीड़ित करेगी और तब तक अपने नियमों से उसकी परीक्षा करती रहेगी, जब तक वह उस पूर्णतया विश्वास नहीं करती। इसके बाद वह उसे सीधे मार्ग पर ले जा कर आनन्दित कर देगी और उस पर अपने रहस्य प्रकट करेगी। वह उसे ज्ञान और न्याय का विवेक प्रदान करेगी।” (प्रवक्ता 4:18-21) अगर हम इन वचनों पर ध्यान देंगे तो हमें पता चलेगा कि मुक्ति का मार्ग क्रूस का मार्ग है और क्रूस के बिना हमें मुक्ति नहीं मिल सकती। जो ईश्वर की प्रज्ञा की इस प्रक्रिया में सकारात्मक रवैया नहीं अपनायेगा, वह मुक्ति से वंचित रह जायेगा। इसलिए पवित्र वचन आगे कहता है, “किन्तु यदि वह भटक जायेगा, तो वह उसका त्याग करेगी और उसे विनाश के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए छोड़ देगी” (प्रवक्ता 4:22)। यही प्रभु येसु की शिक्षा का सारांश भी है। प्रभु येसु कहते हैं, “सॅकरे द्वार से प्रवेश करो। चौड़ा है वह फाटक और विस्तृत है वह मार्ग, जो विनाश की ओर ले जाता है। उस पर चलने वालों की संख्या बड़ी है। किन्तु सॅकरा है वह द्वार और संकीर्ण है वह मार्ग, जो जीवन की ओर ले जाता है। जो उसे पाते हैं, उनकी संख्या थोड़ी है।” (मत्ती 7:13-14)

आईए, आज के दिन हम अपने क्रूस के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें, क्योंकि वह हमारी मुक्ति का मार्ग है। हम पिता ईश्वर से निवेदन करें कि वे हमें अपने क्रूस को ढोने की शक्ति प्रदान करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


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