चक्र - स - पेंतेकोस्त इतवार - दिन



पहला पाठ : प्रेरित-चरित 2:1-11

1) जब पेंतेकोस्त का दिन आया और सब शिष्य एक स्थान पर इकट्ठे थे,

2) तो अचानक आँधी-जैसी आवाज आकाश से सुनाई पड़ी और सारा घर, जहाँ वे बैठे हुए थे, गूँज उठा।

3) उन्हें एक प्रकार की आग दिखाई पड़ी जो जीभों में विभाजित होकर उन में से हर एक के ऊपर आ कर ठहर गयी।

4) वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये और पवित्र आत्मा द्वारा प्रदत्त वरदान के अनुसार भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलने लगे।

5) पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों से आये हुए धर्मी यहूदी उस समय येरुसालेम में रहते थे।

6) बहुत-से लोग वह आवाज सुन कर एकत्र हो गये। वे विस्मित थे, क्योंकि हर एक अपनी-अपनी भाषा में शिष्यों को बोेलते सुन रहा था।

7) वे बड़े अचम्भे में पड़ गये और चकित हो कर बोल उठे, ’’क्या ये बोलने वाले सब-के-सब गलीली नहीं है?

8) तो फिर हम में हर एक अपनी-अपनी जन्मभूमि की भाषा कैसे सुन रहा है?

9) पारथी, मेदी और एलामीती; मेसोपोतामिया, यहूदिया और कम्पादुनिया, पोंतुस और एशिया,

10 फ्रुगिया और पप्फुलिया, मिश्र और कुरेने के निकवर्ती लिबिया के निवासी, रोम के यहूदी तथा दीक्षार्थी प्रवासी,

11) क्रेत और अरब के निवासी-हम सब अपनी-अपनी भाषा में इन्हें ईश्वर के महान् कार्यों का बख़ान करते सुन रहे हैं।’’

दूसरा पाठ : रोमियों 8:8-17

8) जो लोग शरीर की वासनाओं से संचालित हैं, उन पर ईश्वर प्रसन्न नहीं होता।

9) यदि ईश्वर का आत्मा सचमुच आप लोगों में निवास करता है, तो आप शरीर की वासनाओं से नहीं, बल्कि आत्मा से संचालित हैं। जिस मनुष्य में मसीह का आत्मा निवास नहीं करता, वह मसीह का नहीं।

10) यदि मसीह आप में निवास करते हैं, तो पाप के फलस्वरूप शरीर भले ही मर जाये, किन्तु पापमुक्ति के फलस्वरूप आत्मा को जीवन प्राप्त है।

11) जिसने ईसा को मृतकों में से जिलाया, यदि उनका आत्मा आप लोगों में निवास करता है, तो जिसने ईसा मसीह को मृतकों में से जिलाया वह अपने आत्मा द्वारा, जो आप में निवास करता है, आपके नश्वर शरीरों को भी जीवन प्रदान करेगा।

12) इसलिए, भाइयो! शरीर की वासनओं का हम पर कोई अधिकर नहीं। हम उनके अधीन रह कर जीवन नहीं बितायें।

13) यदि आप शरीर की वासनाओं के अधीन रह कर जीवन बितायेंगे, तो अवश्य मर जायेंगे।

14) लेकिन यदि आप आत्मा की प्रेरणा से शरीर की वासनाओें का दमन करेंगे, तो आप को जीवन प्राप्त होगा।

15) जो लोग ईश्वर के आत्मा से संचालित हैं, वे सब ईश्वर के पुत्र हैं- आप लोगों को दासों का मनोभाव नहीं मिला, जिस से प्रेरित हो कर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को गोद लिये पुत्रों का मनोभाव मिला, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, "अब्बा, हे पिता!

16) आत्मा स्वयं हमें आश्वासन देता है कि हम सचमुच ईश्वर की सन्तान हैं।

17) यदि हम उसकी सन्तान हैं, तो हम उसकी विरासत के भागी हैं-हम मसीह के साथ ईश्वर की विरासत के भागी हैं। यदि हम उनके साथ दुःख भोगते हैं, तो हम उनके साथ महिमान्वित होंगे।

सुसमाचार : योहन 14:15-16,23-26

15) यदि तुम मुझे प्यार करोगे तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे।

16) मैं पिता से प्रार्थना करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक प्रदान करेगा, जो सदा तुम्हारे साथ रहेगा।

23) ईसा ने उसे उत्तर दिया यदि कोई मुझे प्यार करेगा तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम उसके पास आकर उस में निवास करेंगे।

24) जो मुझे प्यार नहीं करता, वह मेरी शिक्षा पर नहीं चलता। जो शिक्षा तुम सुनते हो, वह मेरी नहीं बल्कि उस पिता की है, जिसने मुझे भेजा।

25) तुम्हारे साथ रहते समय मैंने तुम लोगों को इतना ही बताया है।

26) परन्तु वह सहायक, वह पवित्र आत्मा, जिसे पिता मेरे नाम पर भेजेगा तुम्हें सब कुछ समझा देगा। मैंने तुम्हें जो कुछ बताया, वह उसका स्मरण दिलायेगा।

मनन-चिंतन

आज कलीसिया का जन्मदिन है। और इस दृष्टिकोण से हम सब का भी जन्मदिन हैं जो कि कलीसिया रूपी शरीर के अंग हैं। आज जब हम कलीसिया का जन्मदिन मनाते हैं तब आईये हम कलीसिया की प्रकृति के बारे में मनन करें। हम ने बचपन में धर्मशिक्षा में पढा है और हर रविवार को धर्मसार में हम बोलते हैं - ‘‘मैं एक ही, पवित्र, कैथोलिक और प्रेरितिक कलीसिया में विश्वास करता हूँ।“ जी हॉं कलीसिया जिसके हम सब अंग हैं वह ‘एक’ है, ‘पवित्र’ है, ‘कैथोलिक’ है, और ‘प्रेरितिक’ है। ये चारों बातें कलीसिया के प्रारम्भ याने पेंतेकोस्त के दिन से ही कलीसिया में देखी जा सकती हैं। जब प्रभु येसु स्वर्ग में आरोहित हो गये शिष्यगण अटारी में ‘‘सब एक हृदय होकर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाईयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।“ (प्रे.च. 1:14)। वे सब प्रार्थना में एक हृदय थे। प्रभु येसु ने अपने अंतिम भोज के समय यही प्रार्थना की थी - ‘‘पिता जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें” (योहन 17:21)। कलीसिया जिसकी पेंतेकोस्त के दिन शुरूआत हुई वो एक थी। विभाजित कलीसिया सच्ची कलीसिया की पहचान नहीं। जहॉं एकता है, एकरूपता है, मसीह प्रेम का बंधन है, भाईचारा और मेल-मिलाप है वही सच्ची कलीसिया है। विभाजनकारी मानसिकता आज कलीसिया के टुकडे-टुकडे कर कलीसिया के मौलिक रूप को बिगाड रही है। आज पेंतेकोस्त का यह दिन सारे विश्वासियों को एक ही चरागाह में लौटने का दिन हो।

दूसरा- कलीसिया पवित्र है, क्योंकि कलीसिया पेंतेकोस्त के दिन पवित्र आत्मा से भरपूर हो जाती है। पवित्र आत्मा जो कि पिता और पुत्र को एक करने वाला प्यार है कलीसिया के ऊपर उतर आता है। यह वही आत्मा है जो सृष्टि से पहले अथाह गर्त पर विचरता था। उसी आत्मा को आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपने पुनरूत्थान के बाद शिष्यों को फूँककर प्रदान करते हैं और कहते हैं - ‘‘पवित्र आत्मा को ग्रहण करो” (योहन 20:22)। संत योहन 3:5 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘जब तक कोई जल और पवित्र आत्मा से जन्म न ले, तब तक वह ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता”। संत योहन प्रकाशना ग्रंथ 21:27 में कहते हैं कि स्वर्ग में कोई भी, जो कि अपवित्र है प्रवेश नहीं कर सकता। इसलिए पवित्र आत्मा के द्वारा अपने को पवित्र करना कलीसिया के लिए बहुत जरूरी है। अपने प्रथम दिन याने पेंतेकोस्त के दिन कलीसिया पवित्र आत्मा से भरकर पवित्र हो जाती है और बदले में दूसरों को भी इस पवित्रता का हिस्सा बनाने के लिए वचन व विश्वास का प्रचार करने निकल पडती है।

तीसरा- कलीसिया कैथोलिक है। कैथोलिक का अर्थ है सार्वभौमिक अथवा विश्वव्यापी। प्रभु येसु अपने अंतिम आदेश के रूप में संत मत्ती के सुसमाचार 28:19 में कहते हैं - ‘‘तुम जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ।” पेंतेकोस्त के दिन ‘‘पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों से आये हुए . . . हर एक अपनी-अपनी भाषा मंष शिष्यों को बोलते सुन रहा था” (प्रे.च. 2:5-6)। याने मसीह का संदेश किसी विशेष देश या भाषा के लोगों के लिए नहीं बल्कि समस्त संसार के लोगों के लिए है। इसे पवित्र आत्मा ने पेंतेकोस्त के दिन साबित कर दिया कि कलीसिया का दायरा सिर्फ येरूसालेम अथवा यहूदियों तक ही सीमित नहीं पर यह हर भाषा, हर देश व हर जाति के लिए है। जैसा कि प्रभु येसु ने अपने शिष्यों से अपने स्वर्गारोहण से पहले कहा था - ‘‘पवित्र आत्मा तुम लोगों पर उतरेगा और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा और तुम लोग येरूसालेम, सारी यहूदिया और समारिया में तथा पृथ्वी के अंतिम छोर तक मेरे साक्षी होंगे” (प्रे.च. 1:8) पोंतियुस पिलातुस ने भी किसी न किसी रूप में मुक्तिदाता के क्रूस पर ‘येसु नाज़री यहूदियों का राजा’इस लेख को विभिन्न भाषाओं में लिखवाकर यह साबित किया कि येसु सारी दुनिया के राजा हैं।

चौथा - कलीसिया प्रेरितिक है। संत पौलुस एफेसियों 2:20 में कलीसिया के विषय में कहते हैं - ‘‘आप लोगों का निर्माण उस भवन के रूप में हुआ है, जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खडा है और जिसका कोने का पत्थर स्वयं येसु मसीह है।” कलीसिया का निर्माण 12 प्रेरितों की नींव पर किया गया है जो कि नये इस्राएल के बारह कुलपति हैं।

प्रेरित का मतलब होता है - भेजा हुआ। इस दृष्टि से हर एक विश्वासी येसु मसीह द्वारा भेजा गया है। इसलिए हर बपतिस्माधारी एक मिशनरी बन जाता है। मिशन कार्य सिर्फ किन्हीं गिने चुने लोगों का काम नहीं पर हर एक विश्वासी जो कि कलीसिया का अंग है एक मिशनरी है अथवा एक प्रेरित है।

जैसे ही पवित्र आत्मा प्रेरितों पर उतरा वे वचन के प्रचार में जुट गये। वे लोगों को बतलाने लग गये कि येसु मसीह कौन हैं, उनके कार्य क्या हैं, वे क्यों इस संसार में आये, और उनमें विश्वास करने से हमें क्या मिलेगा आदि। हमें भी हमारे बपतिस्मा में, दृढीकरण संस्कार में, हमारे पुरोहिताई संस्कार में तथा अन्य अवसरों पर जब हमने पवित्र आत्मा के अभिषेक की प्रार्थना की है हमें पवित्र आत्मा का अभिषेक भरपूर मिला है। पर क्या हमने अब तक उन शिष्यों की तरह येसु का संदेश लोगों तक पहुँचाने की पहल की है? उन्होंने बिना समय गवॉंये सुसमाचार सुनाना प्रारम्भ कर दिया। हमने कितना समय अब तक गॅंवा दिया है। यदि हम इस कार्य में असफल हैं तो हमने कलीसिया के प्रेरितिक स्वभाव को खो दिया है।

आज फिर से येसु हम सबों पर अपना पवित्र आत्मा भेज रहे हैं और हमें एक ही, पवित्र, कैथोलिक एवं प्रेरितिक कलीसिया के रूप में गठित कर रहे हैं। तो आईये हम सब येसु मसीह में एक बनें, पवित्र बनें, कैथोलिक बनें याने सब प्रकार के लोगों को कलीसिया में मिलायें और प्रेरितिक बनें याने बिना वक्त गॅंवाए येसु मसीह के सुसमाचार के प्रचार में लग जायें। आमेन।

-फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


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