चक्र - स - वर्ष का पांचवां सामान्य रविवार



पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 6:1-2a,3-8

1) राजा उज़्ज़ीया के देहान्त के वर्ष मैंने प्रभु को एक ऊँचे सिंहासन पर बैठा हुआ देखा। उसके वस्त्र का पल्ला मन्दिर का पूरा फ़र्श ढक रहा था।

2) उसके ऊपर सेराफ़म विराजमान थे, उनके छः-छः पंख थेः

3) और वे एक दूसरे को पुकार-पुकार कर यह कहते थे, “पवत्रि, पवत्रि, पवत्रि है विश्वमडल का प्रभु! उसकी महिमा समस्त पृथ्वी में व्याप्त है।“

4) पुकारने वाले की आवाज़ से प्रवेशद्वार की नींव हिल उठी और मन्दिर धुएँ से भर गया।

5) मैंने कहा, “हाय! हाय! मैं नष्ट हुआ; क्योंकि मैं तो अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हूँ और अशुद्ध होंठों वाले मनुष्यों को बीच रहता हूँ और मैंने विश्वमण्डल के प्रभु, राजाधिराज को अपनी आँखों से देखा“।

6) एक सेराफ़ीम उड़ कर मेरे पास आया। उसके हाथ में एक अंगार था, जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से ले लिया था।

7) उस से मेरा मुँह छू कर उसने कहा, “देखिए, अंगार ने आपके होंठों का स्पर्श किया है। आपका पाप दूर हो गया और आपका अधर्म मिट गया है।“

8) तब मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी “मैं किसे भेजूँ? हमारा सन्देश-वाहक कौन होगा?“ और मैंने उत्तर दिया, “मैं प्रस्तुत हूँ, मुझ को भेज!“

दूसरा पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 15:1-11

1) भाइयो! मैं आप लोगेां को उस सुसमाचार का स्मरण दिलाना चाहता हूँ, जिसका प्रचार मैंने आपके बीच किया, जिसे आपने ग्रहण किया, जिस में आप दृढ बने हुये हैं,

2) और यदि आप उसे उसी रूप में बनाये रखेंगे, जिस रूप में मैंने उसे आप को सुनाया, तो उसके द्वारा आप को मुक्ति मिलेगी। नहीं तो आपका विश्वाश व्यर्थ होगा।

3) मैंने आप लोगों को मुख्य रूप से वही शिक्षा सुनायी, जो मुझे मिली थी और वह इस प्रकार है- मसीह हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए मरे, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है।

4) वह कब्र में रखे गये और तीसरे दिन जी उठे, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है।

5) वह कैफ़स को और बाद में बारहों में दिखाई दिये।

6) फिर वही एक ही समय पाँच सौ से अधिक भाइयों को दिखाई दिये। उन में से अधिकांश आज भी जीवित हैं, यद्यपि कुछ मर गये हैं।

7) बाद में वह याकूब को और फिर सब प्रेरितों को दिखाई दिये।

8) सब के बाद वह मुझे भी, मानों ठीक समय से पीछे जन्में को दिखाई दिये।

9) मैं प्रेरितों में सब से छोटा हूँ। सच पूछिए, तो मैं प्रेरित कहलाने योग्य भी नहीं; क्योंकि मैंने ईश्वर की कलीसिया पर अत्याचार किया है।

10) मैं जो कुछ भी हूँ, ईश्वर की कृपा से हूँ और मुझे उस से जो कृपा मिली, वह व्यर्थ नहीं हुई। मैंने उन सब से अधिक परिश्रम किया है- मैंने नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा ने, जो मुझ में विद्यमान है।

11) ख़ैर, चाहे मैं होऊँ, चाहे वे हों - हम वही शिक्षा देते हैं और उसी पर आप लोगों ने विश्वास किया।

सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 5:1-11

1) एक दिन ईसा गेनेसरेत की झील के पास थे। लोग ईश्वर का वचन सुनने के लिए उन पर गिरे पड़ते थे।

2) उस समय उन्होंने झील के किनारे लगी दो नावों को देखा। मछुए उन पर से उतर कर जाल धो रहे थे।

3) ईसा ने सिमोन की नाव पर सवार हो कर उसे किनारे से कुछ दूर ले चलने के लिये कहा। इसके बाद वे नाव पर बैठे हुए जनता को शिक्षा देते रहे।

4) उपदेश समाप्त करने के बाद उन्होंने सिमोन से कहा, ’’नाव गहरे पानी में ले चलो और मछलियाँ पकड़ने के लिए अपने जाल डालो’’।

5) सिमोन ने उत्तर दिया, ’’गुरूवर! रात भर मेहनत करने पर भी हम कुछ नहीं पकड़ सके, परन्तु आपके कहने पर मैं जाल डालूँगा’’।

6) ऐसा करने पर बहुत अधिक मछलियाँ फँस गयीं और उनका जाल फटने को हो गया।

7) उन्होंने दूसरी नाव के अपने साथियों को इशारा किया कि आ कर हमारी मदद करो। वे आये और उन्होंने दोनों नावों को मछलियों से इतना भर लिया कि नावें डूबने को हो गयीं।

8) यह देख कर सिमोन ने ईसा के चरणों पर गिर कर कहा, ’’प्रभु! मेरे पास से चले जाइए। मैं तो पापी मनुष्य हूँ।’’

9) जाल में मछलियों के फँसने के कारण वह और उसके साथी विस्मित हो गये।

10) यही दशा याकूब और योहन की भी हुई; ये जेबेदी के पुत्र और सिमोन के साझेदार थे। ईसा ने सिमोन से कहा, ’’डरो मत। अब से तुम मनुष्यों को पकड़ा करोगे।’’

11) वे नावों को किनारे लगा कर और सब कुछ छोड़ कर ईसा के पीछे हो लिये।

मनन-चिंतन

‘‘मैं किसको भेजूं, मेरा संदेश कौन लेके जाएगा,

फिर मैंने कहा - मैं यहाँ प्रस्तुत हूँ मुझे लीजिए।’’

आज सामान्य काल का पांचवाँ रविवार है। आज के पाठों के द्वारा प्रतीत होता है कि अपने सन्देश/सुसमाचार को दूसरों तक पहुँचाने के लिए, ईश्वर को हमारी आवश्यकता है - चाहे वह एक सहभागी के तौर पर हो या फ़िर शिष्य के तौर पर या एक सन्देशवाहक के तौर पर।

पहले पाठ में नबी इसायाह के दिव्य दर्शन या बुलावे के बारे में वर्णन है तो वहीं आज दूसरे पाठ में संत पौलुस उनकी खुद की बुलाहट का वर्णन करते हैं और सुसमाचार में हम येसु के प्रारंभिक शिष्यों के बुलावे का वर्णन पाते हैं।

ईसा पूर्व सातवीं सदी में तत्कालीन यूदा के राजा उज़्ज़ीया के मृत्यु वर्ष में, नबी इसायाह को बुलावा मिला। इस पाठ के अनुसार नबी इसायाह को ईश्वर का दर्शन मिलता है और इसका संदर्भ है मंदिर का वातावरण तथा पूजा अर्चना का मुहूर्त। नबी इसायाह को एहसास होता है कि ईश्वर अति पवित्र, शक्तिशाली, और मनुष्य से परे है। उनकी वाणी से सब कुछ काँपता है वे सर्वशक्तिमान है। धुआँ उनकी पूर्ण उपस्थिति को प्रतीत करता है । ईश्वर के पवित्र होने के ठीक विपरीत, नबी इसायाह को अपनी मानवीय स्थिति जो कि बिल्कुल पापमय, अपवित्र है का एहसास होता है। लेकिन स्वर्ग दूत, नबी इसायाह की जिव्हा में अंगार से स्पर्श कर उन्हें पवित्र करते हैं तथा उन्हें नबी बनने के लिए आह्वान करते हैं। ईश्वर अति पवित्र है, और पवित्रतम् ईश्वर के कार्य करने के लिए पवित्र व्यक्ति चाहिए, शुध्दीकरण नितांत आवश्यक है।

संत पौलुस कहते हैं, “मैं जो हूँ वह प्रभु की कृपा से, और ईश्वर की कृपा मेरे प्रति व्यर्थ नहीं”। दूसरा पाठ कुरिन्थयों के पहले पत्र अध्याय 15:1-11 से लिया गया है जहाँ हम पाते हैं कि प्रभु येसु ख्रीस्त ने संत पौलूस को सुसमाचार की घोषणा करने के लिए चुन लिया है और जो सुसमाचार वह घोषित करता है वह उन्हें ईसा मसीह से मिला है और यह ईश्वर की कृपा है तथा इस बुलावे को क्रियान्वित करने के लिए वह लगन से परिश्रम करता है। प्रभु की कृपा से कोई भी सुसमाचार प्रचारक बन सकता है इसके लिए प्रभु का बुलावा आवश्यक है साथ-साथ जीवन में परिवर्तन या बदलाव भी जरूरी है।

प्रभु अयोग्य को भी योग्य बनाता, जो अपने आप को खाली, नगण्य करता उसे ईश्वर संपूर्ण करता है। “जाल गहरे पानी में डालो”। संत लूकस के सुसमाचार अध्याय 5:1-11 में संत लूकस येसु के प्रारंभिक शिष्यों के बुलावे के बारे में वर्णन करते हुये बताते हैं कि वे व्यवसाय से मछुवारे थे। चमत्कारिक तरीके से, येसु के आदेशानुसार, "आपके कहने पर..." जाल डालने पर उन्हें अनोखा अनुभव होता है।

येसु मसीह सभी व्यवसाय में माहिर हैं पारिवारिक पेशे से बढ़ाई होते हुए भी उन्हें मछली मारने का सूत्र और मंत्र मालूम है। इससे हमें येसु सिखाते है कि वे हमारे जीवन में चमत्कार करते हैं, यदि हम उनकी सुनते हैं।

इस घटना के द्वारा उन्होंने येसु को पहचान लिया और सब कुछ छोड़ कर येसु के शिष्य हो गये और उनके पीछे हो लिये। इसके पूर्व वे किसी और व्यवसाय, धन्धे के पीछे जाते थे। अब वे येसु के पीछे जाएगें और उनकी बातों पर ध्यान देगें। ईश्वर जिनको चाहता है उनको बुलाता है किसी भी परिस्थिति में और परिस्थिति से। येसु के हस्तक्षेप के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिये। ईश्वर हमें अपने व्यवसाय के लिए कुशल और खुशहाल बनाते हैं। ईश्वर आपको भी बुला रहे हैं; क्या आप ईश्वर को एक मौका देगें?

-फादर पयस लकड़ा एस.वी.डी


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