चक्र - स - वर्ष का ग्यारहवाँ इतवार



पहला पाठ : समूएल का दुसरा ग्रन्थ 12:7-10,13

7) नातान ने दाऊद से कहा, "आप ही वह धनी व्यक्ति हैं। प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है - मैंने तुम्हारा अभिशेक इस्राएल के राजा के रूप में किया।

8) मैंने तुम को साऊल के हाथ से बचाया। मैंने तुम्हें अपने स्वामी का घर और उसकी पत्नियाँ दे दीं। मैंने इस्राएल तथा यूदा का घराना भी दिया और यदि वह पर्याप्त नहीं, तो मैं तुम को और भी देने के लिए तैयार हूँ।

9) तो, क्यों तुमने प्रभु का तिरस्कार किया और ऐसा कार्य कर डाला, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है? तुमने ऊरीया हित्ती को तलवार से मरवा डाला और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया है। तुमने उसे अम्मोनियों की तलवार से मारा है।

10) इसलिए अब से तलवार तुम्हारे घर से कभी दूर नहीं होगी; क्योंकि तुमने मेरा तिरस्कार किया और ऊरीया हित्ती की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया।

13) दाऊद ने नातान से कहा, "मैनें प्रभु के विरुद्ध पाप किया है।" इस पर नातान ने दाऊद से कहा, "प्रभु ने आपका यह पाप क्षमा कर दिया है। आप नहीं मरेंगे।

दूसरा पाठ : गलातियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:16,19-21

16) फिर भी, हम जानते हैं कि मनुष्य संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा नहीं, बल्कि ईसा मसीह में विश्वास द्वारा पापमुक्त होता है। इसलिए हमने ईसा मसीह में विश्वास किया है, जिससे हमें संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा नहीं, बल्कि मसीह में विश्वास द्वारा पाप से मुक्ति मिले; क्योंकि संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा किसी को पापमुक्ति नहीं मिलती।

19) क्योंकि संहिता के अनुसार मैं संहिता की दृष्टि में मर गया हूँ, जिससे मैं ईश्वर के लिए जी सकूँ। मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ।

20) मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित हैं। अब मैं अपने शरीर में जो जीवन जीता हूँ, उसका एकमात्र प्रेरणा-स्रोत है-ईश्वर के पुत्र में विश्वास, जिसने मुझे प्यार किया और मेरे लिए अपने को अर्पित किया।

21) मैं ईश्वर के अनुग्रह का तिरस्कार नहीं कर सकता। यदि संहिता द्वारा पापमुक्ति मिल सकती है, तो मसीह व्यर्थ ही मरे।

सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 7:36-8:3

36) किसी फ़रीसी ने ईसा को अपने यहाँ भोजन करने का निमन्त्रण दिया। वे उस फ़रीसी के घर आ कर भोजन करने बैठे।

37) नगर की एक पापिनी स्त्री को यह पता चला कि ईसा फ़रीसी के यहाँ भोजन कर रहे हैं। वह संगमरमर के पात्र में इत्र ले कर आयी

38) और रोती हुई ईसा के चरणों के पास खड़ी हो गयी। उसके आँसू उनके चरण भिगोने लगे, इसलिए उसने उन्हें अपने केशों से पोंछ लिया और उनके चरणो को चूम-चूम कर उन पर इत्र लगाया।

39) जिस फ़रीसी ने ईसा को निमन्त्रण दिया था, उसने यह देख कर मन-ही-मन कहा, "यदि वह आदमी नबी होता, तो जरूर जान जाता कि जो स्त्री इसे छू रही है, वह कौन और कैसी है-वह तो पापिनी है"।

40) इस पर ईसा ने उस से कहा, "सिमोन, मुझे तुम से कुछ कहना है"। उसने उत्तर दिया, "गुरूवर! कहिए"।

41) "किसी महाजन के दो कर्जदार थे। एक पाँच सौ दीनार का ऋणी था और दूसरा, पचास का।

42) उनके पास कर्ज अदा करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए महाजन ने दोनों को माफ़ कर दिया। उन दोनों में से कौन उसे अधिक प्यार करेगा?"

43) सिमोन ने उत्तर दिया, "मेरी समझ में तो वही, जिसका अधिक ऋण माफ हुआ"। ईसा ने उस से कहा, "तुम्हारा निर्णय सही है।"।

44) तब उन्होंने उस स्त्री की ओर मुड़ कर सिमोन से कहा, "इस स्त्री को देखते हो? मैं तुम्हारे घर आया, तुमने मुझे पैर धोने के लिए पानी नहीं दिया; पर इसने मेरे पैर अपने आँसुओं से धोये और अपने केशों से पोंछे।

45) तुमने मेरा चुम्बन नहीं किया, परन्तु यह जब से भीतर आयी है, मेरे पैर चूमती रही है।

46) तुमने मेरे सिर में तेल नहीं लगाया, पर इसने मेरे पैरों पर इत्र लगाया है।

47) इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, इसके बहुत-से पाप क्षमा हो गये हैं, क्योंकि इसने बहुत प्यार दिखाया है। पर जिसे कम क्षमा किया गया, वह कम प्यार दिखाता है।"

48) तब ईसा ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं"।

49) साथ भोजन करने वाले मन-ही-मन कहने लगे, "यह कौन है जो पापों को भी क्षमा करता है?"

50) पर ईसा ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है। शान्ति प्राप्त कर जाओ।"

8:1) इसके बाद ईसा नगर-नगर और गाँव-गाँव घूम कर उपदेश देते और ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते रहे। बारह प्रेरित उनके साथ थे

2) और कुछ नारियाँ भी, जो दुष्ट आत्माओं और रोगों से मुक्त की गयी थीं-मरियम, जिसका उपनाम मगदलेना था और जिस से सात अपदूत निकले थे,

3) हेरोद के कारिन्दा खूसा की पत्नी योहन्ना; सुसन्ना और अनेक अन्य नारियाँ भी, जो अपनी सम्पत्ति से ईसा और उनके शिष्यों की सेवा-परिचर्या करती थीं।


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