चक्र - स - वर्ष का बीसवाँ इतवार



पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 38:4-6,8-10

4) पदाधिकारियों ने राजा से कहा, “यिरमियाह को मार डाला जाये। वह येरूासालेम की हार की भवियवाणी करता है और इस प्रकार शहर में रहने वाले सौनिकों और सारी जनता की हिम्मत तोड़ता है। वह प्रजा का हित नहीं, बल्कि अहित चाहता है“।

5) राजा सिदकीया ने उत्तर दिया, “वह आप लोगों के वश में है। राजा आप लोगों के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता।“

6) इस पर वे यिरमियाह को ले गये और उन्होंने उस को रक्षादल के प्रांगण में स्थित राजकुमार मलकीया के कुएँ में डाल दिया। उन्होंने यिरमियाह को रस्सी से उतार दिया। कुएँ में पानी नहीं था, उस में केवल कीच था और यिरमियाह कीच में धँस गया।

8) एबेद-मेलेक ने राजमहल से निकल कर राजा से कहा,

9) “राजा! मेरे स्वामी! उन लोगों ने नबी यिरमियाह के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया- उन्होंने उन को कुएँ में डाल दिया। वह वहाँ भूखे मर जायेंगे, क्योंकि नगर में रोटी नहीं बची है।“

10) इस पर राजा ने कूशी एबेद-मेलेक को यह आदेश दिया, “यहाँ के तीन आदमियों को अपने साथ ले जाओ और इस से पहले कि यिरमियाह मर जाये, उसे कुएँ में से खींच निकालो।“

दूसरा पाठ : इब्रानियों 12:1-4

1) जब विश्वास के साक्षी इतनी बड़ी संख्या में हमारे चारों ओर विद्यमान हैं, तो हम हर प्रकार की बाधा दूर कर अपने को उलझाने वाले पाप को छोड़ कर और ईसा पर अपनी दृष्टि लगा कर, धैर्य के साथ उस दौड़ में आगे बढ़ते जायें, जिस में हमारा नाम लिखा गया है।

2) ईसा हमारे विश्वास के प्रवर्तक हैं और उसे पूर्णता तक पहुँचाते हैं। उन्होंने भविष्य में प्राप्त होने वाले आनन्द के लिए क्रूस पर कष्ट स्वीकार किया और उसके कलंक की कोई परवाह नहीं की। अब वह ईश्वर के सिंहासन के दाहिने विराजमान हैं।

3) कहीं ऐसा न हो कि आप लोग निरूत्साह हो कर हिम्मत हार जायें, इसलिए आप उनका स्मरण करते रहें, जिन्होंने पापियों का इतना अत्याचार सहा।

4) अब तक आप को पाप से संघर्ष करने में अपना रक्त नहीं बहाना पड़ा।

सुसमाचार : लूकस 12:49-53

49) "मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे!

50) मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ!

51) "क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ।

52) क्योंकि अब से यदि एक घर में पाँच व्यक्ति होंगे, तो उन में फूट होगी। तीन दो के विरुद्ध होंगे और दो तीन के विरुद्ध।

53) पिता अपने पुत्र के विरुद्ध और पुत्र अपने पिता के विरुद्व। माता अपनी पुत्री के विरुद्ध होगी और पुत्री अपनी माता के विरुद्ध। सास अपनी बहू के विरुद्ध होगी और बहू अपनी सास के विरुद्ध।"

मनन-चिंतन

साधारणतः हम देखते हैं कि प्रभु येसु की छवि एक शांतिप्रिय एवं परहित की भावना से ओत-प्रोत की छवि है। जो भी निराश, परेशान व्यक्ति प्रभु येसु के पास आया, उनका हृदय उसके प्रति करुणा से भर गया। उन्होंने दूसरों की बीमारियों को दूर किया, उनके दुःख-दर्द और कष्टों को मिटाया और आपसी प्रेम और भाईचारे का सन्देश दिया। लेकिन आज के सुसमाचार में हम प्रभु येसु के मुख से बड़े अजीब शब्द सुनते हैं। प्रभु येसु कहते हैं,- “मैं पृथ्वी पर आग लेकर आया हूँ, और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे” (लूकस 12:49)। उसके बाद के शब्द और भी अधिक डरावने हैं - “क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति लेकर आया हूँ? मैं तुमसे कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ।” (लूकस 12:51) क्या ऐसे भड़काऊ शब्द प्रभु येसु के मुख से शोभा देते हैं? यदि हम प्रभु के इन शब्दों को गहराई से नहीं समझेंगे तो हम भ्रमित और गुमराह हो सकते हैं।

सन्त मत्ती के सुसमाचार 13:24-30 में हम जंगली बीज का दृष्टान्त सुनते हैं, जिसमें फसल का स्वामी चाहता है और आदेश देता है कि ‘कटनी तक दोनों तरह बीजों, अर्थात् अच्छे और जंगली बीजों को साथ-साथ बढ़ने देना है। (देखें मत्ती 13:29) और इसी अध्याय के पद संख्या 36-43 में हम उपरोक्त दृष्टान्त का अर्थ स्वयं प्रभु येसु से सुनते हैं, जिसमें प्रभु येसु अपने शिष्यों को समझाते हुए कहते हैं कि “खेत संसार है; अच्छा बीज राज्य की प्रजा है; जंगली बीज दुष्टात्मा की प्रजा है; बोने वाला बैरी शैतान है...” (मत्ती 13:38-39अ)। अर्थात् ईश्वरीय राज्य की प्रजा और दुष्टात्मा या शैतान की प्रजा, इस संसार में दोनों साथ-साथ बढ़ते हैं। अथवा सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो इस संसार में दोनों तरह के लोग- अच्छे और बुरे, साथ-साथ आगे बढ़ते हैं, लेकिन समय आने पर ईश्वर उन्हें अलग-अलग करेंगे, और उनका एक दूसरे से अलग-अलग होना बहुत ज़रूरी है।

हम आज की दुनिया में देखते हैं कि लोगों के मन में अच्छाई और बुराई का अन्तर बहुत कम होता जा रहा है। अक्सर लोग अच्छाई और बुराई में अंतर नहीं कर पाते हैं, और अच्छाई को छोड़कर बुराई का साथ देने लग जाते हैं। आप कल्पना कीजिए कि आपके ऊपर दुनिया के सारे लोगों को बुराई से बचाने की जिम्मेदारी है, और ऐसे में आप पाते हैं कि अच्छे लोग बुरे लोगों में शामिल होते जा रहे हैं। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, वैसे-वैसे अच्छाई और बुराई का अंतर ख़त्म होता जा रहा है, तो ज़रूर आपको लगेगा कि आप जल्द से जल्द अच्छे लोगों को बुरे लोगों से अलग कर दें। प्रभु येसु भी इस दुनिया में वही करने आये हैं - अच्छे और बुरे लोगों को एक दूसरे के विरुद्ध करने।

सन्त लूकस के सुसमाचार 3:16 में हम पढ़ते हैं, सन्त योहन बप्तिस्ता कहते हैं कि “मैं तो तुम लोगों को जल से बप्तिस्मा देता हूँ; परन्तु एक आने वाले हैं जो मुझसे अधिक शक्तिशाली हैं... वह तुम लोगों को पवित्र आत्मा और आग से बप्तिस्मा देंगे।” प्रभु येसु पवित्र आत्मा और आग के द्वारा इस संसार को शुद्ध करना चाहते हैं। आगे सन्त योहन इंगित करते हैं कि “वह हाथ में सूप ले चुके हैं, जिससे वह अपना खलिहान ओसा कर साफ करें, और अपना गेहूँ अपने बखार में जमा करें...”(लूकस 3:17)। इसलिए प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि “मैं पृथ्वी पर आग लेकर आया हूँ”। यही आग हमें शुद्ध करती है, यही आग अच्छे और बुरे लोगों को अलग-अलग करती है, तीन को दो के विरुद्ध और दो को तीन के विरुद्ध, पिता को पुत्र के विरुद्ध और पुत्र को पिता के विरुद्ध, माता, पुत्री, सास-बहु आदि को एक दूसरे के विरुद्ध करती है, क्योंकि अच्छे बीज और बुरे बीज हमेशा एक साथ नहीं रह सकते।

हम अपने मन में झाँककर देखें, क्या हम उस आग से पवित्र किये जाने के लिये तैयार हैं? क्या हमारे मन में बुराई और अच्छाई के प्रति स्पष्ट अन्तर है या नहीं? क्या प्रभु येसु के इस कार्य में हमारी कोई भूमिका हो सकती है? क्या हम प्रभु येसु के साथ हैं या संसार के साथ हैं? इन सब बातों को समझने के लिए प्रभु हमें आशीष दें। आमेन।

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


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