चक्र - स - वर्ष का छ्ब्बीसवाँ इतवार



पहला पाठ : आमोस 6:1,4-7

1) "धिक्कार उन लोगों को, जो सियोन में भोग-विलास का जीवन बितातें हैं! धिक्कार उन्हें, जो समारिया के पर्वत पर अपने को सुरक्षित समझते हैं! तुम, उत्तम राष्ट्र के गण्यमान्य नेताओ! तुम्हारे ही पास इस्त्राएली जनता न्याय के लिए आती है।

2) कलने जा कर देखो तो सही, और फिर वहाँ से महानगर हमात भी चले जाओ; उसके बाद फिलिस्तियों के गत नगर भी जा कर देखो। क्या तुम इन राज्यों से श्रेष्ठतर हो? क्या तुम्हारा देश इनके देश के बड़ा है?

3) अरे, तुम दुर्दिन टालना चाहते हो; टालना तो दूर रहे, तुम हिंसा का शासन समीप ला रहे हो।

4) वे हाथीदांत के पलंगो पर सोते और आराम-कुर्सियों पर पैर फैलाये पडे रहते हैं। वे झुण्ड के मेमरे और बाड़े के बछड़े चट कर जाते हैं।

5) वे सारंगी की ध्वनि पर ऊँचे स्वर में गाते और दाऊद की तरह नये वाद्यों का आविष्कार करते हैं।

6) वे प्याले-पर-प्याला मदिरा पीते और उत्तम सुगन्धित तेल से अपने शरीर का विलेपन करते हैं; किन्तु उन्हें यूसुफ़ के विनाश की चिंता नहीं है।

7) इसलिए उन्हें सब से पहले निर्वासित किया जायेगा।" और उनके भोग-विलास का अन्त हो जायेगा।"

दूसरा पाठ : 1तिमथि 6:11-16

11) ईश्वर का सेवक होने के नाते तुम इन सब बातों से अलग रह कर धार्मिकता, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धैर्य तथा विनम्रता की साधना करो।

12) विश्वास के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहो और उस अनन्त जीवन पर अधिकार प्राप्त करो, जिसके लिए तुम बुलाये गये हो और जिसके विषय में तुमने बहुत से लोगों के सामने अपने विश्वास का उत्तम साक्ष्य दिया।

13) ईश्वर जो सब को जीवन प्रदान करता है और ईसा मसीह, जिन्होंने पोंतियुस पिलातुस के सम्मुख अपना उत्तम साक्ष्य दिया, दोनों को साक्षी बना कर मैं तुम को यह आदेश देता हूँ।

14) कि हमारे प्रभु ईसा मसीह की अभिव्यक्ति के दिन तक अपना धर्म निष्कलंक तथा निर्दोष बनाये रखो।

15) यह अभिव्यक्ति यथासमय परमधन्य तथा एक मात्र अधीश्वर के द्वारा हो जायेगी। वह राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है,

16) जो अमरता का एकमात्र स्रोत है, जो अगम्य ज्योति में निवास करता है, जिसे न तो किसी मनुष्य ने कभी देखा है और न कोई देख सकता है। उसे सम्मान तथा अनन्त काल तक बना रहने वाला सामर्थ्य! आमेन!

सुसमाचार : सन्त लूकस 16:19-31

19) "एक अमीर था, जो बैंगनी वस्त्र और मलमल पहन कर प्रतिदिन दावत उड़ाया करता था।

20) उसके फाटक पर लाज़रूस नामक कंगाल पड़ा रहता था, जिसका शरीर फोड़ों से भरा हुआ था।

21) वह अमीर की मेज़ की जूठन से अपनी भूख मिटाने के लिए तरसता था और कुत्ते आ कर उसके फोड़े चाटा करते थे।

22) वह कंगाल एक दिन मर गया और स्वर्गदूतों ने उसे ले जा कर इब्राहीम की गोद में रख दिया। अमीर भी मरा और दफ़नाया गया।

23) उसने अधोलोक में यन्त्रणाएँ सहते हुए अपनी आँखें ऊपर उठा कर दूर ही से इब्राहीम को देखा और उसकी गोद में लाज़रूस को भी।

24) उसने पुकार कर कहा, ‘पिता इब्राहीम! मुझ पर दया कीजिए और लाज़रुस को भेजिए, जिससे वह अपनी उँगली का सिरा पानी में भिगो कर मेरी जीभ ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूँ’।

25) इब्राहीम ने उस से कहा, ‘बेटा, याद करो कि तुम्हें जीवन में सुख-ही-सुख मिला था और लाज़रुस को दुःख-ही-दुःख। अब उसे यहाँ सान्त्वना मिल रही है और तुम्हें यन्त्रणा।

26) इसके अतिरिक्त हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गत्र्त अवस्थित है; इसलिए यदि कोई तुम्हारे पास जाना भी चाहे, तो वह नहीं जा सकता और कोई भ़ी वहाँ से इस पार नहीं आ सकता।’

27) उसने उत्तर दिया, ’पिता! आप से एक निवेदन है। आप लाज़रुस को मेरे पिता के घर भेजिए,

28) क्योंकि मेरे पाँच भाई हैं। लाज़रुस उन्हें चेतावनी दे। कहीं ऐसा न हो कि वे भी यन्त्रणा के इस स्थान में आ जायें।’

29) इब्राहीम ने उस से कहा, ‘मूसा और नबियों की पुस्तकें उनके पास है, वे उनकी सुनें‘।

30) अमीर ने कहा, ‘पिता इब्राहीम! वे कहाँ सुनते हैं! परन्तु यदि मुरदों में से कोई उनके पास जाये, तो वे पश्चात्ताप करेंगे।’

31) पर इब्राहीम ने उस से कहा, ‘जब वे मूसा और नबियों की नहीं सुनते, तब यदि मुरदों में से कोई जी उठे, तो वे उसकी बात भी नहीं मानेंगे’।’

मनन-चिंतन

इस दुनिया में हमारा जीवन 70 या 80 साल का होता है (देखें स्तोत्र 90:10)। अगर कोई 100 वर्ष पार करता है तो हम उसे आश्चर्यजनक मानते हैं। पवित्र ग्रन्थ कहता है, “यदि मनुष्य की आयु एक सौ वर्ष है, तो वह बहुत मानी जाती है; किन्तु अनन्त काल की तुलना में ये थोड़े वर्ष समुद्र में बूँद की तरह, रेतकण की तरह हैं” (प्रवक्ता 18:8)। इस दुनिया में हमारे जीवन-काल की तुलना परलोक में हमारे जीवन-काल से करते हुए पवित्र वचन हमें बताता है कि परलोक में हमारा जीवन-काल समुद्र के समान है जबकि इस दुनिया में हमारा जीवन-काल पानी की एक बूँद के समान है। गौरतलब है, हमें परलोक के जीवन पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। इस दुनिया में हमारा जीवन-काल परलोक के जीवन की तैयारी का समय है। इसलिए हमें सतर्कता तथा ईमानदारी से परलोक के जीवन की तैयारी करनी चाहिए। अमीर और लाज़रूस के दृष्टान्त में अमीर व्यक्ति इस लोक में रहते समय बैंगनी व मलमल के वस्त्र, स्वादिष्ट भोजन, विशाल तथा सुन्दर घर और अपने मनोरंजन पर ध्यान देते हुए एक आलीशान ज़िन्दगी बिताता है। वह परलोक को भूल कर इस दुनिया की सुख-सुविधाओं पर ही ध्यान देता है। उसे मार्गदर्शन देने के लिए पवित्र ग्रन्थ भी उपल्ब्ध था, परन्तु उसने उस पर भी ध्यान नहीं दिया। मरने के बाद ही उसे अपनी बेवकूफ़ी का एहसास हुआ, तब तक तो वह अस्सहाय बन जाता है। वह न तो अपनी और न ही अपनों की मदद कर पाता है। इस लोक में रहते समय परलोक के जीवन के लिए तैयारी करना ही समझदारी है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


Our life-span is 70 to 80 years (cf. Ps 90:10). If, by chance, we cross 100 years, it is considered as something amazing. The Word of God tells us, “The number of a man’s days is great if he reaches a hundred years. Like a drop of water from the sea and a grain of sand so are a few years in the day of eternity” (Sir 18:9-10). Our eternal life-span is compared to an ocean while our earthly life-span is like a drop of water. In the parable of the rich man and Lazarus (Lk 16:19-31), we find the rich man caring for sumptuous meals, luxurious clothing and material pleasures and he is thus engrossed in this world losing sight of the eternal life. He has the Scriptures to guide him to his destination, but he does not bother to pay attention to the guidance given by the Word of God. Only after his death his folly is revealed and he realizes that he has caused irreparable damage to himself. Now, he is not able to rectify the situation, nor is he capable of coming to the aid of those whom he loves. The wisdom of the Word of God reminds us to be wise while living in the world and prepare for the life to come.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!