चक्र - स - वर्ष का उन्तीसवाँ इतवार



पहला पाठ :निर्गमन 17:8-13

8) अमालेकी लोगों ने आकर रफीदीम में इस्राएलियों पर आक्रमण किया।

9) मूसा ने योशुआ से कहा, ''अपने लिए आदमी चुन लो और कल सुबह अमालेकियों से युद्ध करने जाओ।

10) मैं हाथ में ईश्वर का डण्डा लिये पहाड़ी की चोटी पर खड़ा रहूँगा।'' मूसा के आदेश के अनुसार योशुआ अमालेकियों से युद्ध करने निकला और मूसा, हारून तथा हूर पहाड़ी की चोटी पर चढ़े।

11) जब तक मूसा हाथ ऊपर उठाये रखता था, तब तक इस्राएली प्रबल बने रहते थे और जब वह अपने हाथ गिरा देता था, तो अमालेकी प्रबल हो जाते थे।

12) जब मूसा के हाथ थकने लगे, तो उन्होंने एक पत्थर ला कर भूमि पर रख दिया और मूसा उस पर बैठ गया। हारून और हूर उसके हाथ सँभालते रहे, पहला इस ओर से और दूसरा उस ओर से।

13) इस तरह मूसा ने सूर्यास्त तक अपने हाथ ऊपर उठाये रखा। योशुआ ने अमालेकियों और उनके सैनिकों को तलवार के घाट उतार दिया।

दूसरा पाठ : 2तिमथी 3:14-4:2

14) तुम्हें जो शिक्षा मिली है और तुमने जिस में विश्वास किया है, उस पर आचरण करते रहो। याद रखो कि तुम्हें किन लोगों से यह शिक्षा मिली थी और

15) यह कि तुम बचपन से धर्मग्रन्थ जानते हो। धर्मग्रन्थ तुम्हें उस मुक्ति का ज्ञान दे सकता है, जो ईसा मसीह में विश्वास करने से प्राप्त होती है।

16) पूरा धर्मग्रन्थ ईश्वर की प्रेरणा से लिखा गया है। वह शिक्षा देने के लिए, भ्रान्त धारणाओं का खण्डन करने के लिए, जीवन के सुधार के लिए और सदाचरण का प्रशिक्षण देने के लिए उपयोगी है।

17) जिससे ईश्वर-भक्त सुयोग्य और हर प्रकार के सत्कार्य के लिए उपयुक्त बन जाये।

4:1) मैं ईश्वर को और जीवितों तथा मृतकों के न्यायकर्ता ईसा मसीह को साक्षी बना कर मसीह के पुनरागमन तथा उनके राज्य के नाम पर तुम से यह अनुरोध करता हूँ-

2) सुसमाचार सुनाओ, समय-असमय लोगों से आग्रह करते रहो। बड़े धैर्य से तथा शिक्षा देने के उद्देश्य से लोगों को समझाओ, डाँटो और ढारस बँधाओ;

सुसमाचार : सन्त लूकस 18:1-8

1) नित्य प्रार्थना करनी चाहिए और कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए-यह समझाने के लिए ईसा ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया।

2) "किसी नगर में एक न्यायकर्ता था, जो न तो ईश्वर से डरता और न किसी की परवाह करता था।

3) उसी नगर में एक विधवा थी। वह उसके पास आ कर कहा करती थी, ‘मेरे मुद्दई के विरुद्ध मुझे न्याय दिलाइए’।

4) बहुत समय तक वह अस्वीकार करता रहा। बाद में उसने मन-ही-मन यह कहा, ‘मैं न तो ईश्वर से डरता और न किसी की परवाह करता हूँ,

5) किन्तु वह विधवा मुझे तंग करती है; इसलिए मैं उसके लिए न्याय की व्यवस्था करूँगा, जिससे वह बार-बार आ कर मेरी नाक में दम न करती रहे’।"

6) प्रभु ने कहा, "सुनते हो कि वह अधर्मी न्यायकर्ता क्या कहता है?

7) क्या ईश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था नहीं करेगा, जो दिन-रात उसकी दुहाई देते रहते हैं? क्या वह उनके विषय में देर करेगा?

8) मैं तुम से कहता हूँ - वह शीघ्र ही उनके लिए न्याय करेगा। परन्तु जब मानव पुत्र आयेगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास बचा हुआ पायेगा?"

मनन-चिंतन

आज के पाठ लगातार प्रार्थना और पवित्र वचन की घोषणा की आवश्यकता पर जोर देते हैं। हम देखते हैं कि जब इस्राएली लोग अमालेकियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे, तब मूसा इस्राएलियों के लिए हाथ उठा कर प्रार्थना करने लगे। जब तक उनके हाथ ऊपर उठाये हुए थे, तब तक योशुआ के नेतृत्व में इस्राएलियों ने लड़ाई जीत ली, लेकिन जब भी उन्होंने अपने हाथ नीचे किये, तब अमालेकियों ने जीत हासिल की। जब मूसा शारीरिक रूप से थक गये, तब हारून और हूर की मदद से, उन्होंने भगवान के सामने अपने हाथों को ऊपर उठाये रखा। वे शारीरिक रूप से तो थके थे, परन्तु आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली थे। हमारे जीवन में हम लगातार बुराई के खिलाफ लड़ाई में लगे हुए हैं, हमें प्रार्थना में अपने घुटने टेकने और अपने हाथ उठाने की जरूरत है, ताकि हम शैतान के विरुध्द लड़ाई जीत सकें। सुसमाचार का पाठ हमें अपने कार्य में बने रहने वाली एक महिला के बारे में बताता है और उसे न्याय मिलता है। दूसरे पाठ में संत पौलुस ईश्वर के वचन की अथक घोषणा पर जोर देते हैं। वे तिमथी से कहते हैं, "सुसमाचार सुनाओ, समय-असमय लोगों से आग्रह करते रहो। बड़े धैर्य से तथा शिक्षा देने के उद्देश्य से लोगों को समझाओ, डाँटो और ढारस बँधाओ"। हमारे जीवन में, अगर हम इन दो बातों पर ध्यान दे सकते हैं, तो हम पवित्रता में बढ़ने में एक लंबा रास्ता तय कर सकते हैं - लगातार प्रार्थना और सुसमाचार की अथक घोषणा।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


SHORT REFLECTION

Today’s readings emphasise the need for persistent prayer and proclamation. We find Moses lifting his hands up in prayer for the Israelites when they were fighting the battle against Amalekites. As long as his hands were raised, the Israelites under the leadership of Joshua won the battle, but whenever he let his arms fall, the Amalekites won. When Moses was physically tired, with the help of Aaron and Hur his arms remained lifted up before God for God’s people. Moses was physically tired, but spiritually strong. In our life we are continually engaged in a battle against the evil one, we need to bend our knees and lift our hands in prayer, so that we can win the battle. The Gospel passage too tells us about a woman persistent in prayer and as a result she gets justice. In the second reading St. Paul insists on relentless proclamation of the Word of God. He tells Timothy, “preach the word, be urgent in season and out of season, convince, rebuke, and exhort, be unfailing in patience and in teaching” (2Tim 4:2). In our lives, if we can pay attention these two things, we can go a long way in growing in holiness – persistent prayer and relentless proclamation.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!